।। राम कथा ।। मानस हरिद्वार ।।
रामायण में भरत संत हैं.... श्री हनुमान जी हनुमंत हैं .....और राम भगवंत हैं ....
तीनों को समस्या आई ....है ना ?....
संत को पांच समस्या आई ...हनुमंत को 6 समस्या आई.... और भगवंत राम को सात आई....
5... 6.... 11..... 7.... 18....
18 समस्या मानस में है ....इसमें संत को भी लगी है... हनुमंत को भी लगी है ...और साक्षात भगवंत को भी समस्या ने घेर रखा था.... जो मानस में ....मेरे गुरु का मुख कहता है वो मैं आपको बताता हूँ ...18 है ....
(संक्षेप में )
भरत संत की समस्या....
1... व्रत छोड़ना पड़ा लोकमंगल के लिए
2... समाज गैरसमझ पैदा करे
3...संपदा.. भोग.. सुविधाएं...ये कसौटी करें
4... देवताओं ने विरोध किया... विक्षेप किया...
5... परिवार के लोग विरोध करें... और इतना विरोध करें कि हम हत्या कर दें ...
हनुमंत की समस्या.....
1.... सीता को खोजने निकले तब जंगल में रास्ता भूल गए
2... भूख प्यास लगी
3... बमुश्किल निकले तो समुद्र के तट पर संपाती मिला कि मैं तुम्हें खा जाऊं
4...कूदे तो सोने का पहाड़ रास्ता रोकने आ गया
5...सुरसा आई... सिंहिका आई...
6... लंका में प्रवेश किया तो लंकिनी आई
भगवंत की समस्या.......
1... ताड़का
2...मारीच सुबाहु
3... परशुराम
4...शूर्पणखा
5...खरदूषण त्रिशलादि
6...कबंध
7... साक्षात रावण.. समस्या का केंद्र बिंदु
अब ये समस्या मिटे कैसे ?... 18 मणके का बेरखा फेरा करो तो 18 की ऐसी तैसी... मैं नहीं कहता... प्रस्तुति मेरी है... लेकिन कृष्ण बोला है... अर्जुन ...कोई भी काल आए तू मेरा स्मरण कर ...मेरा नाम जप बेटा... जगत की कोई समस्या तुझे छुएगी नहीं.... कोई भी काल हो ....तमाम काल में जब भी मौका मिले मेरा स्मरण कर.... मुझे याद कर..... मुझे याद कर .....
18 मणके की माला... समस्या की ऐसी तैसी ....हल्की हो जाएगी ...और फिर तो समस्या श्रृंगार बनने लगती है....
ये जब हो तो साधकों को समझना कि अब राम दूर नहीं है ....
18 मणके का बेरखा.... बस ....वो धन्य कर देगा.... कृतकृत्य करेगा....
इसलिए ....श्री राम जय राम ...जय जय... राम ..जय जय राम...