छोटा सा... दुनिया की दृष्टि में गंदा झरना... गंगा में मिल जाए ...तो पतित पावन हो जाता है ...
वस्तु कहीं की भी हो... उसका यूज़ ...इस्तेमाल कहीं भी हुआ हो... लेकिन जब दिशा बदल दी जाए तब क्या नहीं होता ?....
हम दिशा नहीं बदल पाते ...
एक आदमी दीवार में खिला ठोक रहा था... बहुत पुरानी कहानी अपनी... कैसे भी खिला अंदर जाए ही ना ...इतना हथोड़ा मारे... जाए ना ....तो एक आदमी ने कहा ...चाहता क्या है ?...
बोले ...दीवार में खिला डालना है ...
उसने कहा जाना चाहिए ...
बोले... नहीं जाता ..आध घंटे से मेहनत करता हूँ ...
तब वो आदमी ने आकर कहा ...अरे भाई साहब ...गजब हो तुम... तूने उल्टा खिला रखा है ...खिले का जो टॉप होता है वो दीवार की ओर रखा है... और जो नोंक होती है धड़ ..धड़ ..धड़...
ज़रा सीधी कर ....
ठोकने वाला कहता है ...ओहोहो.. गजब हो गया ..ये खिला इस दीवार का नहीं था ...इस दीवार (सामने वाली दीवार)का है ....
लोगों को दीवार बदलनी है ...नोंक नहीं बदलनी...
वैसे के वैसे ही... घूम ना जाए ...ऐसे ही पकड़ कर (सामने वाली दीवार की ओर )....वहां कोई खिले की जरूरत नहीं थी ...वहां लगाया ....
वहां कहानी रुकती नहीं ...ज़रा और जाती है... कहानी तो यहां रुकी थी... फिर हम और आगे ले जाते हैं....
फिर वो आदमी दुकानदार के पास गया... यार कलियुग आ गया है... मुझे इस दीवार का खिला चाहिए था... तुमने इस दीवार का दे दिया ....
अब व्यापारी इससे भी आगे निकला ....इस बार हमारे यहां स्टॉक इस दीवार का ही आया था...
दीवारें बदलने को तैयार ...लेकिन दिशा बदलने को कोई तैयार नहीं...
दिशा बदल दो... गंदा झरना पावन हो जाएगा...
हमारे जैसे पतित भी ठाकुर का राम नाम लेते प्रसन्न प्रसन्न हो जाते हैं ...सोचिए....
और फिर भी इतने खुलासे के बाद भी... इतने जवाब के बाद भी कोई ना माने तो..." मुझे क्या लेना है"....