बापू
मेरे समान कौन दीन है ....और आप समान कौन दीन हितकारी.....
इस नाते हे रघुवंश मणि हमारी विषम भव भीर को हरो... और मुझे ऐसा लगाव ठाकुर तेरे प्रति हो जाए कि जैसे कामी का स्त्री में लगाव होता है ...और लोभी का धन में होता है.....
वो तो कुछ समय के लिए होता है ....
मुझे तो कामी को स्त्री में लगाव हो ... लोभी का धन में... ऐसा लगाव मुझे 'निरंतर' रहे ....अखंड रहे ...
प्रिय लागहु मोहि राम ....
सीधा-साधा आखिर में इतना ही टुकड़ा ...गुजराती में कहूं तो "तू अपने व्हालो लागे बस"....
(तू हमें प्यारा लगे)...
तू भी हमें कहे कि तू मुझे प्रिय है ...ये अपेक्षा नहीं...
तुम मुझे प्रिय हो ....
तुम मुझे भूल भी जाओ... तो ये हक है तुमको ...
मेरी बात और है ...मैंने तो.. मोहब्बत की है ...
भागवत का भ्रमर गीत पढ़िए साहब ...भ्रमर गीत का अंतिम ...भँवरे को जो संदेश देती है व्रजांगना ज़ार ज़ार रो रही है ...जा कपटी दूत ... निशाना तो उद्धव है... निमित्त भंवरा बना है ...
आखिरी श्लोक भ्रमरगीत का....
हमने बहुत उलाहने दिए... ताने मारे ...हे कपटी के दोस्त ...बुरा मत लगाना... क्या कहती है ?...एक बात बताते जाना ...ये तुम्हारा मित्र कभी नंद यशोदा को याद करता है ?...जवाब दे... ये तुम्हारा मित्र कभी गोप बालकों को याद करता है ?...
नि:शुल्क दासिका... बिना मोल बिक गई हम उसके प्रेम में ....उद्धव बता... कभी कोई बातचीत में वो हमें याद करके हमारी बात छेड़ता है ?....हम जी लेंगे ...इतना बता दे ...हमारा जिक्र कभी करता है ?...तो हम जी लेंगे... वरना मर जाएंगे ....हमें इतनी अपेक्षा में....
उसके अगर जैसा हाथ... चंदनी हाथ ....जिसको चंदन बदन तो बाद में कहा है ...जिसका हाथ निकट आए गले में जाने के लिए ....तो खुशबू आने लगे... आश्लेश में ले तो हमें खुशबू से भर दे... वो चिदानंदी खुशबू ....ये नूरानी महक ...देह की नहीं... प्रेम पूर्ण आत्मा की खुशबू....
वो अगर चंदन जैसा उसका हाथ.... उद्धव बता जा फिर कभी हमारे सिर पर आएगा ?...वो कभी हाथ हमारे सिर पर रखेंगे ?....फिर वो अवसर हमें ...हम व्रजांगनायें ... गरीब महिलाएं ....हमने उसके प्रेम में पति को छोड़ दिया... पुत्रों को छोड़ दिया... पागल बनकर भागे थे.... कभी वो हाथ हमारे सिर पर आएगा ?...
केवल इतनी बात तो कहना...
केवल इतना कहना हम तुम्हें प्यार करते हैं...
तू करे.. ना करे... क्योंकि ...
मेरी बात और है... मैंने तो मोहब्बत की है ....
तुलसी का अंतिम वाक्य ...हमें राम प्रिय लगे ...
हम राम को प्रिय लगे... ना लगे... वो राम जाने... हमें क्या लेना देना ?....