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बाबा पंडित

‘ऋग्वेद’ में भूगोल

  • 22 Jul 2021

ऋग्वेद 1/33/8 में कहा गया है,   ‘चक्राणास: परिणहं पृथिव्या’ यानी पृथ्वी चक्र के जैसी गोल है। 
पृथ्वी से जुड़ा जो भी विषय हम पढ़ते हैं -उस विषय का नाम है - 
'भूगोल'.(भू = पृथ्वी + गोल = वृत्ताकार) 
यह नाम ही साबित करता है कि,पृथ्वी गोल है।फिर हमें #वैदिक ऋषियों ने बताया कि, ‘माता भूमि: पुत्रोस्हं पृथिव्या:’ यानी हम पृथ्वी की संतानें हैं, अर्थात पृथ्वी हमारी माँ है। 
पृथ्वी माता कैसे हैं? 
माँ के गर्भ में हम एक झिल्ली में होते हैं, ताकि माता के शरीर के अंदर के बैक्टीरिया हमें नुकसान नहीं पहुँचा सकें। 
माँ के गर्भ में इस झिल्ली द्वारा ही हमें सुरक्षित रखा जाता है। अन्यथा हम वहीं सड़ - गल जाते...
और कभी जन्म नहीं ले पाते। ठीक इसी प्रकार... पृथ्वी भी एक झिल्ली में सुरक्षित है। इसे हम ‘ओजोन परत’ कहते हैं। 
यह परत हमें सूर्य के हानिकारक अल्ट्रावॉइलेट विकिरणों से सुरक्षित रखती है। बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में नासा ने ओजोन परत का चित्र लिया है। यह सुनहरे रंग की दिखती है।
ऐसा ही उल्लेख ऋग्वेद में पाया जाता है। वहाँ पृथ्वी को ‘#हिरण्यगर्भा’ कहा गया है। 'हिरण्य' अर्थात 'हिरन के जैसा'  या सुनहरे रंग का। मतलब, जिस जिस तथ्य की जानकारी आधुनिक विज्ञान को आज पता चली, उसकी जानकारी हमारे ऋषियों को लाखों साल पहले प्राप्त हो चुकी थी।इस जानकारी का इतनी सूक्ष्मता से वर्णन 
हमारे ऋग्वेद में मिलता है।
आज हम जानते हैं कि,पृथ्वी पश्चिम से पूरब की ओर घूम रही है।इसलिए सूर्योदय हमेशा पूरब में होता है। 
इस सम्बंध में ऋग्वेद (7/992) में ऋषि कहते हैं, कि बूढ़ी महिला की तरह झुकी हुई पृथ्वी पूरब की ओर जा रही है। ऋग्वेद हमें यह भी बताता है कि,पृथ्वी अपने अक्ष पर झुकी हुई है। 
आज आधुनिक विज्ञान भी यही बताता है कि, पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.44 डिग्री पर झुकी हुई है।
इसके अतिरिक्त एक घूमते हुए लट्टू में जो एक लहर सी आती है, उसी प्रकार पृथ्वी के घूर्णन में भी एक लहर आती है। इसके कारण पृथ्वी की एक और गति बनती है। इस चक्र को पूरा करने में 
पृथ्वी को छब्बीस हजार वर्ष लगते हैं। #भास्कराचार्य ने इसे ‘#भचक्र_सम्पात’ कहा है और इसकी कालावधि 25812 वर्ष निकाली थी। यह आज की गणना के लगभग बराबर ही है। 
इस गति के कारण पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव तेरह हजार वर्षों तक सूर्य के सामने और तेरह हजार वर्षों तक सूर्य के विपरीत में होता है। जब यह सूर्य के विपरीत में होता है तो ‘हिम युग’ होता है और जब यह सूर्य के सामने होगा तो यहाँ ताप बढ़ जाएगा जिससे बर्फ पिघलने लगेगी। 
इससे भी यह बात सिद्ध हो जाती है।
तो क्यों न हम गर्व करें स्वयं के सनातनी होने पर।