सजा का निर्धारण आप करें,क्योंकि पथभ्रष्ट आपकी आगामी पीढ़ीयों को होना है !
बचपन में रेलवे स्टेशन के बुक स्टॉल में जिस किताब पर सबसे पहले नजर अटकती वो थी "चन्दा मामा" । इसकी कहानियों का अपना ही एक संसार होता ।मनमोहक चित्रों से भरी चन्दा मामा में ...गरीब किसान..लालची जमींदार .. पंडिताइन..दो भाइयों. राजा , मंत्री दरबार और राज्य की कहानियाँ होती ।मोबाइल को अपनी फुर्सत देने वाले आज के बच्चे चंदा मामा की दीवानगी क्या समझे । इन पत्रिकाओं के संग्रह का कितना भी ऊँचा ढेर हो रद्दी में नही जाने देते थे। फिर फिर पढ़ना और इसके चित्रों की गलियों में गहरे पैठ जाना ।
इस पत्रिका के चित्रों में दक्षिण भारत की गौरव शाली परम्परा के दर्शन होते । चित्रों को निहारते हुए आप उसमें दर्शाए नगर , वहाँ की गली में बने घर ,सांमने आँगन में खींची अल्पना , लंबी चोटी और बड़ी आँखों वाली महिला के दालान में रखे कलश , ऊँचे ऊँचे पिल्लर , सिंहासन पर राजमुकुट पहने राजा और दरबारियों के बीच खुद को खड़ा पाते । ‘चंदामामा’ की विक्रम-बेताल वाली सीरीज भी ज़रूर याद होगी। इसके चित्रों में खींचा जंगल , साँप, नरमुंड, कड़कती बिजली एक तिलस्मी दुनिया के अहसास से झुरझुरी लाते थे । कागज में आपकी आँखों के आगे एक दुनिया खींच देने वाले इसके चित्रकारों में से जिन्होंने 50 साल तक चंदामामा की विक्रम बेताल सीरीज के लिए चित्र बनाए वरिष्ठ चित्रकार के सी शिवशंकरन का 97 वर्ष की उम्र में निधन हो गया ... हमारे बचपन को अपने चित्रों से रंग बिरंगी स्मृतियाँ देने वाले शिवशंकरन जी को श्रद्धांजलि
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#संस्कृतिपरआघात
सजा का निर्धारण आप करें,
क्योंकि पथभ्रष्ट
आपकी आगामी पीढ़ीयों को होना है !
आठ-दस चरित्रहीन लम्पट
और उतनी ही कुलटाओं को,
एक घर के अन्दर ठूस दीजिए,
स्वभावतः वह लोग वहां बैठ कर साधना तो करेंगे नहीं
उनकी करतूतों को रिकॉर्ड करके
टीवी पर प्रसारित कीजिए ।
लीजिए बन गया देश का
सबसे बड़ा पसंदीदा शो "बिग बॉस" !!
घर में माताएं, बहनें, बच्चियां, बच्चे, पुरुष
इस शो से चिपके रहते हैं ।
लड़ना, झगड़ना ..गालियाँ बकना ...
कामोद्देपक अठखेलियाँ ..
यही सब तो चरित्र निर्माण के पाठ हैं,
जिसे लोग केबल प्रसारण दाता (Cable Provider) को
"आप के कलर्स " के लिए अतिरिक्त शुल्क देकर खरीदते हैं ।
कुलटाओं की वाचालता को महिमामंडित करते हुए,
पूरे समाज को दूषित करने का षड्यंत्र
अबाध गति से पिछले कई वर्षों से
पूर्ण सफलता के साथ चल रहा है ।
बस एक कमी रह गई थी..
वो थी इस शो के माध्यम से
हिन्दू धर्म को कलंकित नहीं कर पाने की ।
पिछले चार वर्षों में इस काम को विस्तार दिया गया ।
सबसे पहले एक भाड़े के भांड को लाया गया था,
जिसका पुकारने वाला नाम "ओम स्वामी" था ।
ना उसका "ओम" से कोई मतलब है
ना ही किसी दृष्टि से स्वामी है ।
पर वह अपनी लम्बी दाढ़ी, तिलक और बस्त्र से
सच्चे साधु-संतों की छवि को
गहरा धक्का लगाने में सफल अवश्य रहा ।
औसत से कम मानसिक स्तर के तमाम लोग
ऐसे भांडों को संत समझते हैं
और किसी भी कुकृत्य को करने से पहले
बड़ी आसानी से कह देंगे कि,
"अरे देखा नहीं बिग बॉस में
स्वामी जी कैसे लिपट कर ..@#$$ .."
हिन्दू हन्ता शक्तियों का काम
इतने पर भी पूर्ण सफल न हुआ
तो इन्होंने एक नया हथकंडा अपनाया ।
अब बारी भजन की थी ।
अनूप जलोटा कार्यक्रम में आये नहीं थे,
उन्हें लाया गया था ।
वैसे मैं अनूप जलोटा को गायक ही मानता हूँ
पर भजन से जुड़े होने के कारण
उनका गायन तमाम हिन्दुओं के लिए श्रद्धेय अवश्य था ।
श्रद्धेय कार्यों से जुड़े व्यक्तियों को
इस तरह के कार्यक्रमों में लाना,
हिन्दू हन्ताओं की सफल रणनीति का अंग है ।
पैसे और प्रसिद्धि के लालचवश
कच्चा माल उन्हें भरपूर मात्रा में उपलब्ध भी है ।
हर क्षेत्र में कोई न कोई कलंकी मिल ही जाएगा,
जहाँ नहीं मिलेगा वहाँ बना दिया जाएगा ।
धीरे - धीरे श्रद्धेय कार्यों से जुड़े
प्रत्येक कार्य से सम्बंधित किसी न किसी को
शो में लाकर उस कार्य को कलंकित किया जाएगा,
ताकी आपकी श्रद्धा कमजोर होते-होते समाप्त हो जाय।
बस यही तो नास्तिक बनाने की प्रक्रिया है।
अब इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए
पांच लाख देने पर गोदी में बैठने वाली
किसी "अ- राधा" को लाया गया है ।
इस बार लक्ष्य है
हिन्दू साध्वियों को कलंकित करने का,
जो इस कुलटा की अठखेलियों द्वारा संपन्न भी होगा ।
सुना है कि इस काम के लिए
75 लाख दिए गए हैं ।
जो पांच लाख में गोदी में बैठती है
वह 75 लाख में क्या करेगी,
कल्पना से परे है ...।
पर मानसिक चरित्र से पतित
एक पूरा वर्ग उसकी करतूतों को देखने के लिए
टीवी से चिपका रहेगा ।
सूचनाप्रसारणमंत्रालय
मस्तमीठीनीद का आनंद ले रहा है ।
मौज-मस्ती में मस्त,
कोमल मस्तिष्क वाले हिन्दुओं को तो
इस विषय पर चुटकुला बनाने और सुनाने से ही फुरसत नहीं हैं,
चिंतन कहाँ करेंगे ।
मेरे जैसे लोग दो-चार लेख लिख देंगे,
कहीं मौका मिला तो व्याख्यान दे देंगे
पिछले चार वर्षों से यह क्रम चल रहा है
और हर बार शो की टीआरपी भी बढ़ती ही जा रही है ।
इसलिए विरोध और बहिष्कार जैसे शब्दों का भी
अब कोई औचित्य नहीं बचा है ।
पर हम जैसे कमजोर लोगों के पास
बहिष्कार के अतिरिक्त
कोई अन्य विकल्प भी तो नहीं बचा है ।
इसलिए हाथ जोड़कर
सभी जिंदा हिन्दुओं से यही कहूंगा कि,
हो सके तो इस प्रकार के छिछोरे शो को
अपने घर में प्रवेश न होने दें,
यदि आज आपने मौज - मस्ती के चक्कर में
टीवी पर सब कुछ चलने दिया
तो कल वही सब कुछ
आपके घर में घटित होगा !
- Babapandit