DGR @ एल.एन.उग्र (PRO )
HELP DESK : हेल्प डेस्क जो एक नई व्यवस्था है, कमिश्नर सिस्टम के बाद कमिश्नर साहब द्वारा दिए गए निर्देशों के तहत कार्रवाई की जा रही है। कई बड़े थाने हैं थानों पर ज्यादा रिपोर्ट आती है स्टाफ कम कब पड़ता है। सुनवाई के लिए आदमी इधर-उधर भटकता है तो हमारा यह प्रयास रहता है कि, थाना प्रभारी है, हो सकता है किसी काम से बाहर हो,थाने पर नहीं हो, अन्य कामों में व्यस्त है या हे भी तो कोई डायरी का अवलोकन कर रहे हैं या कोई दूसरे काम में व्यस्त हैं। और फरियादी अब आता है तो उसे यह समझने के लिए उसको क्या काम है,उसकी क्या समस्या है, उसको समझने के लिए एक हेल्प डेस्क बनाई गई है। तो जो फरियादी आता है, उसे इधर उधर न भटकना पड़े, फरियादी हेल्प डेस्क पर आकर अपनी समस्या बताएं। समस्या सुनकर ड्यूटी ऑफिसर जो होता है, वह उसे बताता है कि किस अधिकारी के पास उसको जाकर संपर्क करना है। सत्यापन का काम है या किसी विवेचक से काम है या थाना प्रभारी से काम है तो डेस्क अधिकारी जो होता है,वह उसको मार्गदर्शन करता है, और फरियादी को यह सुविधा हो जाती है। इसी उद्देश्य से हेल्पडेस्क का एक नया प्रोजेक्ट हमने शुरू किया है।
इंदौर में कमिश्नर प्रणाली लागू हुई है इसे आप किस तरह से देखते हैं आपका नजरिया क्या है ?
कमिश्नरी प्रणाली को बहुत सकारात्मक रूप से देखते हैं पुलिस को उत्तरदायित्व के साथ में जिम्मेदारी मिली है, जो शक्तियां मिली है अपराध रोकने के लिए जो अच्छी है, हम पर जो विश्वास जाहिर किया है, हम लोग उसको पूरा करेंगे।
पुलिस प्रशासन को इस से कितना लाभ होगा ?
पुलिस प्रशासन को इस से निश्चित रूप से लाभ होगा पहले अपराधियों पर कार्यवाही करने के लिए प्रतिबंधात्मक कार्यवाही करने के लिए उनको बाउंड ओवर करवाने के लिए फिर बाद में उसका जो उल्लंघन करते थे उनके लिए वे फिर से अपराध करते थे तो उन पर सही एवं प्रतिबंधात्मक कार्रवाई करने के लिए अन्यत्र देखना होता था अभी जो हमारे कमिश्नर साहब और अन्य अधिकारी है वह अपना निर्णय लेकर आसानी से उन पर कार्यवाही कर पाएंगे तो पुलिस प्रशासन को काम करने मेंआसानी होगी।
जो आदतन अपराधी है उन पर आपकी क्या टिप्पणी है ?
जो आदतन अपराधी है हमारा यही सोचना है, कि जो अपराधी है और जेल चले जाते हैं, उसके आने के बाद फिर वह अपराध करते हैं, उनके कारण समाज में भय बना रहता है, एक डर बना रहता है लोगों में। उनकी रिपोर्ट कम करते हैं, इसलिए पुलिस उन पर ज्यादा से ज्यादा प्रतिबंधात्मक कार्यवाही करती है, 110 और 122 की कार्यवाही करती है जिला बदर करती है और रासुका की कार्रवाई भी करती है। यह सब जो कार्यवाही है यह सब आदतन अपराधियों के लिए ही बनी है।
आदतन अपराधी को कड़ी से कड़ी सजा मिलना चाहिए यह आम धारणा है,आपका क्या कहना है ?
जैसा आपका मानना है हमारा भी यही मानना है और हम तो यह मानते भी हैं,कि जो अपराधी है उस को कड़ी से कड़ी सजा मिलना चाहिए और हमारा कर्तव्य भी है, कि ऐसे अपराधियों को अधिकतम सजा दिलवाई जाए। उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करें। और जो सज्जन लोग हैं,वह समाज में निर्भीक होकर विचरण कर सकें। इसलिए अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
वरिष्ठजनों की सुरक्षा के लिए पुलिस के कितने सकारात्मक प्रयास होते हैं ?
वरिष्ठजनों की सुरक्षा के लिए थानानुसार सूचियां बनाई गई है, किस थाने क्षेत्र में कितने सीनियर सिटीजन रहते हैं, अकेले रहते हैं, ऐसे के लिए संवाद के लिए एक सिस्टम बनाया गया है। जब उन्हें आवश्यकता होती है पुलिस की, सहायता की जरूरत होती है, तो उनके साथ संपर्क करके यथासंभव उन से बात करके, हमारे जो कांटेक्ट प्लान है, उसी आधार पर उनकी सुरक्षा की व्यवस्था करते हैं।
ड्रग्स का व्यापार इंदौर में अधिक बढ़ रहा है और युवा वर्ग इस में लिप्त हो रहा है इस पर आप क्या कहेंगे ?
इस पर भी पुलिस की कार्यवाही लगातार जारी है, पहले इस तरह से होता था कि ड्रग्स से जुड़े सूत्र पर जो कार्यवाही होती थी,जो व्यापारी होते थे वही पकड़ में आते थे। लेकिन अब कमिश्नर साहब ने यह निर्देश दिया है कि जो लोग ड्रग्स पीते हैं या कंज्यूम करते हैं,जो एडिक्ट है,उनकी लिस्ट बनाते हैं,उनसे पूछताछ करते हैं। उनके खिलाफ 8 बटा 27 की कार्यवाही करते हैं और जो ड्रगीस्ट है,उनसे जानकारी लेते हैं। कि उनको ड्रग्स उपलब्ध कौन करवाता है,फिर हम उस चैन को पकड़ते हैं और प्रमुख स्रोत तक जाते हैं। जो इसके बड़े वितरक हैं, उनको हम ने मुलजिम बनाया है उन पर इनाम घोषित करवाए हैं और उनके खिलाफ कार्यवाही की गई।
घरेलू हिंसा में आप किसे दोषी मानते हैं ?
घरेलू हिंसा में मानसिक विकार संवंधी प्रमुख कारण होते हैं और इसी कारण परिवार में झगड़े होते हैं। क्रोध में आकर आदमी हिंसा करता है, भावनाएं होती है उसके कारण से झगड़े होते हैं, अगर आपस में व्यवहार अच्छा रखे तो घरेलू हिंसा की संभावनाएं कम रहेगी।
धार्मिक उन्माद भड़काने वाले कौन होते हैं, किस कारण से एक दूसरे के धर्म के लोग आपस में विवाद करते हैं लड़ते हैं और इस पर आपके क्या विचार है ?
बहुत से ऐसे फैक्ट होते हैं, जिनके कारण यह धार्मिक विवाद होता है, उन्माद फैलता है, मीडिया -सोशल मीडिया है या अफवाह फैलती है तब या ऐसे लोग लोगों का ब्रेनवाश करके या अफवाह फैलाकर झगड़े वगैरह कराते हैं , तो पुलिस निष्पक्षता से कार्यवाही करती है। जो उपद्रवी होते हैं उनके खिलाफ कार्रवाई होती।
राजनैतिक समन्वय को आप कैसे देखते हैं? प्रशासनिक हस्तक्षेप कितना रहता है उस पर आप क्या टिप्पणी करेंगे ?
जहां तक मैं समझता हूं कि राजनीतिक प्रेशर पुलिस में बहुत कम है, कि मुझे तो नहीं लगता है कि किसी अपराधी को छुड़ाने के लिए कोई जनप्रतिनिधि का फोन आता हो। किसी चोर के लिए या अपराधी को छुड़ाने के लिए कोई फोन करता है। सामान्य व्यवहार में कभी कोई ऐसा अपराधी, जिससे कभी कबार कोई अपराध हो जाता है, वे जनप्रतिनिधि के पास जाते हैं। तब जनप्रतिनिधि पुलिस को फोन करते हैं। सामान्य प्रजातंत्र के अधिकार के तहत जानकारी मांगते हैं। हमारे द्वारा उनको बताया जाता है कि इसके द्वारा ऐसा ऐसा अपराध किया गया है। तो हमारी बात को मानते हे और पुलिस पर वह अनैतिक कार्य करने के लिए कभी दबाव नहीं बनाते हैं।
न्यायिक प्रक्रिया में पुलिस प्रशासन कितना सहयोगी है ?
न्यायिक प्रक्रिया में सबका अपना अपना रोल है, पुलिस का भी अपना रोल है, पुलिस में वारंट तामील कराने में समंस तामिल कराना पुलिस अपराधी को गिरफतार करती है। चालन प्रोड्यूस करती है। पुलिस का अपना काम है जो पुलिस न्याय प्रक्रिया में सहयोग के रूप में करती है।
आमजन को आप क्या संदेश देना चाहेंगे ?
आमजन के लिए हमारा यही संदेश है कि पुलिस आपकी सेवा और सुरक्षा के लिए है। उसको हमेशा सहयोग करें और जब भी कभी कोई विपत्ति हो या किसी समय या किसी भी तरह की सुरक्षा संबंधी आवश्यकता हो सेवा की आवश्यकता है, तो पुलिस को याद करें और जब पुलिस को किसी और नागरिक की सुरक्षा या सेवा के तारतम्य में आपकी आवश्यकता पड़े तो आप भी पुलिस की सहायता अवश्य करें।.
पुलिस और प्रेस मैं कैसा समन्वय होना चाहिए इनकी भूमिका पर आप क्या विचार रखते हैं ?
देखिए प्रजातांत्रिक देश है यहां पर संवैधानिक व्यवस्था है, सबका समाज में अपना अपना महत्वपूर्ण स्थान है। प्रेस निश्चित रूप से समाज में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है, प्रजातंत्र में वह एक प्रहरी का काम करती है, अगर कोई अनजान हो अन्याय होता है या कानून का उल्लंघन हो रहा है। कोई भी एजेंसी अगर गलत काम कर रही है इस समय प्रेस को भी और पुलिस को भी सहयोग करना चाहिए। और अगर कोई ऐसी संदिग्ध जानकारी है तो उसको बताने में संकोच नहीं करना चाहिए। प्रेस और पुलिस दोनों अपने-अपने डिग्निटी के हिसाब से काम करें यही हमारी अपेक्षा रहती है।
अगर आप पुलिस विभाग में नहीं होते तो कहां होते हैं?
अब तो मैं सोचता हूं कि इतना लंबा समय हो गया है, पुलिस से और वर्दी से इतना प्यार है कि पुलिस के बिना में कल्पना भी नहीं कर सकता। अब तो इसके बिना सोचना भी मुश्किल है कि यदि मैं पुलिस में नहीं होता तो क्या करता? हां पर मैं यह सोचता हूं कि अगर पुलिस में नहीं होता तो शायद कोई खिलाड़ी होता कोई स्पोर्ट्समैन होता खेल खेल रहा होता।