पुष्पांजलि..!
" तमसो मा ज्योतिर्गमय "
अंधेरा हमारा स्वभाव नहीं है। अंधेरे में हम पड़े हैं, यह हमारी मजबूरी है। अंधेरे में हम पड़े हैं क्योंकि प्रकाश से हमारी अभी पहचान नहीं हुई। लेकिन प्राणों के गहनतम में प्यास तो प्रकाश की है।
तमसो मा ज्योतिर्गमय! कोई भीतर पुकार ही रहा है कि ले चलो, प्रकाश की तरफ ले चलो! अंधकार नहीं, आलोक।
इसलिए सारे धर्मो ने परमात्मा को प्रकाश कहा है। सारे धर्मो ने जीवन की परम अनुभूति को प्रकाश की अनुभूति कहा है। प्रकाश से ही भरा है सारा अस्तित्व, क्योंकि सारा अस्तित्व परमात्ममय है।
लेकिन मनुष्य की यह स्वतंत्रता है कि चाहे तो आंख खोले और देखे रोशनी को। और चाहे तो आंख बंद रखे और न देखे रोशनी को। मनुष्य की यह स्वतंत्रता है कि फूल खिले हों तो उन्मुख होकर खड़ा हो जाए या विमुख होकर खड़ा हो जाए, फूलों को देखे या न देखे, पीठ कर ले।
ऋषि प्रार्थना करते हैं : ले चलो अंधकार से आलोक की तरफ। ले चलो असत् से सत् की तरफ। मृत्योर्मा अमृतं गमय। ले चलो मृत्यु से अमृत की तरफ। अंधकार मृत्यु भी है।
क्योंकि जो अंधकार में जिएगा,
अंधकार हो जाएगा। जिसके साथ रहोगे वैसे हो जाओगे। यह जीवन का आधारभूत नियम है : जिसके साथ संबंध जोड़ोगे वैसे हो जाओगे। अंधकार से नाता जोड़ोगे, अंधकार हो जाओगे; प्रकाश से नाता जोड़ोगे, प्रकाश हो जाओगे ।
।। श्रीहरि ।।
(...आज इतनी ही 'हरिकथा' )