जैसे काशी क्षेत्र की पूर्वी सीमा
सोन-गंगा संगम पर के स्थान नाम
उसी क्रम में हैं
जैसे जगन्नाथ पुरी के निकट के क्षेत्र।
विश्वनाथ और जगन्नाथ धाम में अधिक अन्तर नहीं है।
उत्तर भारत में अधिक नाम बदलने से
यह लुप्त हो गया है।
अलीगढ़ का नाम १७१० ई. तक बारन था।
भारत में ३ या अधिक बहिरंग हैं
जो बड़े किले में रसद पानी भेजने के लिये सहायक किले थे।
राजस्थान के कोटा
तथा ओड़िशा के कटक
(कोट, कटक = किला)
दोनों से २० किमी. दूर बारंग (बहिरंग) है।
ओड़िशा के कई किलों के पास
ऐसे छोटे किले थे-
बगालोगढ़-बगालो बहाराणा।
दिल्ली के निकट दो बहिरंग थे-
बारन (वर्तमान अलीगढ़),
अग्रा (आगरा)।
अग्रा गणित ज्योतिष का शब्द है
जो छाया द्वारा
भौगोलिक उत्तर-दक्षिण दिशा जानने के विषय में है
स्तम्भ केन्द्र से छाया शीर्ष की दूरी।
रांगेय राघव ने
इसे अहिगृह का अपभ्रंश माना है
(महागाथा यात्रा)।
दिल्ली मूल रूप से नागों का खाण्डव प्रस्थ नगर
या वन था
जिसकी सीमा के अर्थ में यह अग्रा था।
बाद में युधिष्ठिर ने महाभारत पूर्व
इसे इन्द्रप्रस्थ नाम से बसाया
जो मूलतः इन्द्र काल की छावनी थी।
इन्द्रप्रस्थ नगर में मय निर्मित भवन
तथा १ योजन लम्बा राजसूय भवन था
जिसमें विद्युत् प्रकाश की व्यवस्था थी।
मिर्जापुर का पुराना नाम गिरिजापुर था
जिसे श्री जितेन्द्र कुमार सिंह ने सिद्ध किया है।
दुर्गासप्तशती अध्याय ११ में
इसे विन्ध्यवासिनी कहा गया है।
सम्भवतः सम्पूर्ण नगर या जनपद
विन्ध्याचल था
और मन्दिर भाग गिरिजापुर।
विदेशों से सम्बन्ध भी पुराने नामों से पता चलता है।
भारत की जलवायु में ऊंचे स्थान स्वर्ग हैं-
जैसे हिमालय भाग त्रिविष्टप् (तिब्बत) का अर्थ स्वर्ग होता है।
इसके ३ जलस्रोत क्षेत्र
३ विटप हैं-
पश्चिम में विष्णु विटप से सिन्धु नदी,
मध्य के शिव विटप (शिव जटा) से गंगा नदी
तथा पूर्व के ब्रह्म विटप से ब्रह्मपुत्र का उद्गम है।
सभ्यता केन्द्र रूप में भारत अजनाभ वर्ष था।
अज = विष्णु,
उसका नाभि-कमल मणिपुर
और उससे ब्रह्म देश या ब्रह्मा की उत्पत्ति।
गंगा अवतरण की कथा है कि,
गंगा नदी ब्रह्मा के कमण्डल में समा गयी थी।
साधारण कमण्डल में नदी नहीं समा सकती है,
वह समुद्र में ही मिल सकती है।
ब्रह्मा का स्थान ब्रह्मदेश
(म्याम्मार = महा अमर)
जिसके निकट के समुद्र को
अंग्रेजों ने बंगाल की खाड़ी नाम दिया।
क= जल या ब्रह्मा (कर्त्ता रूप क ब्रह्म),
मण्डल = क्षेत्र।
इसी कमण्डल में गंगा समा गयी थी।
इसका पश्चिमी तट
कर-मण्डल या कारोमण्डल हुआ।
गंगा गिरने के बाद यह गंगा सागर
तथा पश्चिमी समुद्र में सिन्धु नदी मिलने से
यह सिन्धु समुद्र था।
गंगा सागर पर नियन्त्रण करने वाले
ओड़िशा के राजाओं को भी गंग वंश का कहते थे।
उत्तर यूरोप की ठण्ढी जलवायु में
निम्न स्थान स्वर्ग (स्वीडेन का स्थानीय नाम)
तथा पर्वतीय भाग नर्क (नार्वे का स्थानीय नाम) है।
नार्वे की राजधानी ओसलो की तरह उत्तराखण्ड में भी हर की दून में ओसला है।
भारत का पश्चिम पत्तन मुम्बई था।
उसी समुद्र के पश्चिम छोर पर
पूर्व अफ्रीका का पत्तन भी मोम्बासा है।
पश्चिम भारत का सीमान्त आप्रीत (अफरीदी) कहते थे।
भारत के पश्चिम का महाद्वीप कुश को भी
अप्रीक (अफ्रीका) कहते थे।
भारत की कन्या कुमारी का अनुवाद
वर्जिन मेरीसलेम का नया रूप जेरुसलेम
तथा अयप्पन का बाइबिल में इयापेन हो गया।
भारत के मलय क्षेत्र की राजधानी का समुद्रतट कोवलम है।
मलयेसिया की राजधानी भी कोवलमपुर है।
आन्ध्रतट पर अनाम की तरह
वियतनाम का नाम अनाम था
(अ, या वियत = शून्य)।
भागलपुर तथा कम्बोडिया दोनों का नाम चम्पा था।भारतवर्ष के कई नाम थे-भारतवर्ष हिमालय दिशा में पूर्व से पश्चिम दिशा तक था जिसके ९ खण्ड थे। मुख्य भाग भारत या कुमारिका खण्ड कहते थे जो अविभाजित भारत था।
कानपुर नाम कर्ण पुर भी हो सकता है। यह स्वाभाविक उच्चारण परिवर्तन है। इसका क्षेत्र कान्यकुब्ज था।
हैदराबाद के विभिन्न भागों के अलग अलग नाम थे। एक भाग्य नगर था।
इलाहाबाद संगम क्षेत्र प्रयाग था जो प्रायः १०५०० वर्षों से पुरुरवा के समय से चल रहा है। निकट के स्थानों के नाम नहीं बदले हैं-झूंसी आदि।
भोपाल मूल नाम है-भूपाल का अपभ्रंश। इसके ताल को भी भूपाल ताल कहते हैं। इस बड़े ताल से भूमि का पालन होता था, अतः भूपाल हुआ। ज्योतिष में भूप या भूपाल का अर्थ १६ होता है, जिसका कारण स्पष्ट नहीं है। चन्द्रमा को भी राजा कहते थे जिसकी १६ कला होती थी, अमावास्या में शून्य तथा १ से १५ तिथि की कला। राज कार्य के १६ विभाग हो सकते हैं या भूपाल ताल १६ योजन लम्बा होगा।
लखनऊ =लक्ष्मणावती-लखनऊ। इससे लक्ष्मण का काम और इतिहास याद रहता है।
अहमदाबाद का नाम सोलंकी राजा कर्णदेव के समय से कर्णावती है। इसके पूर्व यह भद्रावती था-भद्रकाली मन्दिर का स्थान। इसी २१ अक्षांश पर ओड़िशा के भद्रक में भी भद्रकाली है। आकाश में २१ अहर्गण के भीतर सूर्य का रथ है (पृथ्वी व्यास का २ घात १८ गुणा)। पुरुष सूक्त में यह सहस्राक्ष क्षेत्र है-सूर्य से १००० सूर्य-व्यास दूरी तक के ग्रहों शनि तक का ही दृश्य प्रभाव पड़ता है। अतः पृथ्वी पर २१ उत्तर अक्षांश भद्र हुआ।
फैजाबाद का पुराना नाम अयोध्या था जिसके कई भाग थे-साकेत, नन्दिग्राम (सचिवालय), अयोध्या-राजमहल और सरकारी क्षेत्र। प्राचीन काल में अधिकारियों के १० स्तर थे-आजकल ५० के करीब हैं। सबसे ऊपर राजा १० स्तर पर था। उसके नीचे मन्त्री या सचिव को नन्द कहते थे जो नवम स्तर का था। अतः ज्योतिष में नन्द का अर्थ ९ है। जहां मन्त्री-सचिवों का कार्यालय था वह नन्दिग्राम हुआ। शासन चलाने के लिये भरत को वहां रहना पड़ता था। दूसरा कारण था कि अपने को नन्द स्तर का ही माना, राजा नहीं। किसी भी पुराण में सूर्यवंशी राजाओं की सूची में दशरथ के बाद राम का ही नाम है, १४ वर्ष तक भरत को राजा नहीं कहा गया। यह आदर्श और व्यवस्था प्राचीन नामों से ही प्रकट होगी। बाबरी मस्जिद से यही पता चलेगा कि जो भी लूटमार करे उसकी सम्पत्ति हो जायेगी।
रोहतक का पुराना नाम रोहितक था। यह शून्य देशान्तर रेखा के निकट था जो विषुव रेखा पर प्राचीन लंका तथा उज्जैन से गुजरती थी।
लङ्काकुमारी तु ततस्तु काञ्ची, मानाटमश्वेतपुरी त्वथोदक्।
श्वेतोऽचलोऽस्मादपि वात्स्यगुल्मं, पूः स्यादवन्ती त्वनुगर्गराटम्॥१॥
आश्रमपत्तनमालवनगरे पट्टशिवमेव रोहितकम्।
स्थाण्वीश्वरमस्तु हिमवान् मेरुर्लेखाध्वकर्म नास्त्येषाम्॥२॥
(वटेश्वर सिद्धान्त, १/८/१-२)
मध्य विषुव रेखा के निकट के स्थान-लंका (विषुव पर) से उत्तर कुमारी, काज्ची, मानाट, अश्वेतपुरी, श्वेत पर्वत, वात्स्यगुल्म (वत्स राज्य की छावनी), अवन्ती, गर्गराट्, आश्रमपत्तन (सरस्वती तट पर पत्तन), मालवनगर, पट्टशिव, रोहितक, स्थाण्वीश्वर (थानेश्वर), हिमालय (कैलास निकट), मेरु (उत्तरी ध्रुव)। इस रेखा पर सबसे उत्तर का नगर शिविर (साइबेरिया) का उत्तर कुरु था किसे ओम्स्क कहते हैं (वहां से देशान्तर की माप होती है अतः ॐ नाम)।
पुरबन्दर मूल नाम है। इसी प्रकार का बोरीबन्दर मुम्बई में है। बन्दर = पत्तन। इसके अधिकारियों के वानर कहते थे जो वननिधि (समुद्र) में चलते थे। बान्ध्यो वननिधि नीरनिधि उदधि सिन्धु वारीश। सत्य तोयनिधि कम्पति जलधि पयोधि नदीश॥ (रावण द्वारा रामसेतु बनने पर आश्चर्य व्यक्त कर समुद्र के १० नाम कहना)।
आजमगढ़ = अर्यमागढ़।
उज्जैन के ३ भाग थे-अवन्तिका, उज्जयिनी, विशाला (पुराण संकलन का स्थान भविष्य पुराण-मेघदूत में)
विशाखापत्तनम् मूल नाम है। यहां दो नदियां वंशधारा और नागावली स्रोत से समुद्र तक दो धाराओं (शाखा) में एक साथ चलती हैं।
पटना के कई भाग थे-प्रकाश स्तम्भ क्षेत्र प्रकाशपत्तन (मञ्जुल का लघुमानस), सरकारी कार्यालय और आवास के सेक्टर (पटल)-पाटलिपुत्र, मुख्य बाजार-बृहद् हट्टी-बिहटा, विश्वविद्यालय भाग-कुसुमपुर (फुलवारीशरीफ), खगोल वेधशाला-खगोल।
एक आश्चर्य है कि भारत राष्ट्र है तो उसका छोटा अंश महाराष्ट्र कैसे हुआ? भागवत माहात्म्य में है कि भक्ति से ज्ञान-वैराग्य का जन्म द्रविड़ में हुआ, वृद्धि कर्णाटक में हुयी तथा विस्तार महाराष्ट्र तक हुआ। गुर्जर जाते जाते प्रभाव समाप्त हो गया।
अहं भक्तिरिति ख्याता इमौ मे तनयौ मतौ।
ज्ञान वैराग्यनामानौ कालयोगेन जर्जरौ॥४५॥
उत्पन्ना द्रविडे साहं वृद्धिं कर्णाटके गता।
क्वचित् क्वचित् महाराष्ट्रे गुर्जरे जीर्णतां गता॥४८॥
तत्र घोर कलेर्योगात् पाखण्डैः खण्डिताङ्गका।
दुर्बलाहं चिरं जाता पुत्राभ्यां सह मन्दताम्॥४९॥
वृन्दावनं पुनः प्राप्य नवीनेव सुरूपिणी।
जाताहं युवती सम्यक् श्रेष्ठरूपा तु साम्प्रतम्॥५०॥
(पद्म पुराण उत्तर खण्ड श्रीमद् भागवत माहात्म्य, भक्ति-नारद समागम नाम प्रथमोऽध्यायः)
सृष्टि का आरम्भ अप् से हुआ, अतः उसके शब्द रूप वेद के उद्गम को द्रविड़ कहा (द्रव = अप् = जल)। वेद श्रुति आदि माध्यम से प्राप्त ज्ञान है अतः श्रुति हुआ। इसका ग्रहण कर्ण से होता है अतः इसकी वृद्धि का क्षेत्र कर्णाटक हुआ। वृद्धि का अर्थ है शब्द के अर्थों का विस्तार। शब्दों का मूल अर्थ आधिभौतिक था, उनके आध्यात्मिक तथा आधिदैविक अर्थ बनाना वृद्धि हुआ। आज भी वेद का सबसे अधिक शोध वहीं होता है। इस अर्थ में भी वेद प्रसार की अन्तिम सीमा कर्णावती हो सकती है। इसका उलटा अर्थ अहमदाबाद से आयेगा। अहमद शाह ने इसे बर्बाद किया था, उसके द्वारा आबाद कहना सत्य का उलटा है। प्रभाव या विस्तार क्षेत्र महर् (महल) है। अतः वेद का जहां तक विस्तार हुआ, वह महाराष्ट्र है।
बाद में उत्तर भारत में प्रसार होने पर श्रुति क्षेत्र कर्णपुर, कान्यकुब्ज, बहराइच (बहवृच =ऋग्वेद) उत्तर बिहार का रीगा आदि हुए।
इस ज्ञान के अभाव में कहते हैं कि उत्तर भारत के आर्यों ने दक्षिण भारत पर वेद थोप दिया। स्पष्टतः इन लोगों ने वेद कभी देखा नहीं है। ऋग्वेद के पहले ही सूक्त में ही दो शब्दों का प्रयोग केवल दक्षिण भारत में होता है। दोषा-वस्ता = रातदिन। दोषा काल का मुख्य भोजन दोसा है। सौर मण्डल के धाम वस्त (बस्ती) हैं जिनकी गिनती अहः में होती है। इनका नियन्त्रक सूर्य या दिन का समय वस्ता है। जैसे हिन्दी फिल्मों का एक पुराना तेलुगू गीत था-रमैया वस्ता वैया।
विष्णु ने नगरों का निर्माण किया था अतः उनको उरुक्रम कहते हैं। केवल दक्षिण भारत में ही नगरों को उर या उरु कहते हैं जैसे बंगलूरु, मंगलूर, नेल्लूर, तञ्जाउर आदि। बंगलोर को टीपूसुल्तानाबाद कहने से यह पता नहीं चलेगा।
उरुं हि राजा वरुण श्चकार (ऋग् वेद १/२४/८) शं नो विष्णुरुरुक्रमः (ऋग् वेद १/९०/१)
बाद में वरुण ने भी वैसे ही उर बनाये। अतः इराक का सबसे पुराना नगर ऊर था।