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Think  It…. दया धार्मिक होने की पहली सीढ़ी है.. दया के बिना धार्मिक होने का दावा करना पाखण्ड है...

  • 23 Sep 2021

अण्डा" केवल इतना ही नहीं है जो मुर्गी ने दिया और बहुत आसानी से थाली में परोस दिया गया।इसके पीछे एक लंबा प्रोसेस है।एक दिन की आयु वाले सभी नर चूजों को मार दिया जाता है, क्योंकि वे अण्डे नहीं दे सकते। उनको कूड़ों की तरह पालीथिन में भर दिया जाता है। फिर या तो गैस चैंबर में राख बनने तक छोड़ दिया जाता है, या फिर जमीन में जिंदा गाड़ दिया जाता है। आजकल उससे भी भयावह तरीका अपनाया जाता है, यांत्रिक चक्की में पीसने का।

यहां तक की मुर्गे मुर्गियों को भी टॉर्चर किया जाता है। मुर्गियों को कृत्रिम प्रजनन के लिए बाध्य किया जाता है। इसके लिए यातनापूर्ण विधियाँ और दवाएं उपयोग की जाती हैं। उनका स्वतन्त्र जीवन छीनकर न रहने योग्य जगह में भी रहने को विवश किया जाता है।

अण्डा-उद्योग एक क्रूर उद्योग है।

इस क्रूरता के भागी वे सभी लोग हैं जो जीभ के स्वाद के लिए अण्डे सेवन करते हैं।

पशु-पक्षियों में भी मनुष्यों की तरह दर्द अनुभव करने की क्षमता होती है। उनकी माताओं में भी उनके शिशुओं के प्रति अपार ममता होती है। पर मनुष्य के दाँतों तले न जाने कितनी ममताएँ, कितने शरीर, कितने सम्बन्ध और न जाने कितने "सुन्दर जीवन" क्रूरता से कुचले जाते हैं।

आओ किसी के जीवन का दर्द अनुभव करें। मनुष्य बनें।

दयाहीन व्यक्ति एक अच्छा वक्ता हो सकता है, पर धार्मिक नहीं हो सकता। 

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