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उद्योग जगत परेशान : कोरोना काल में महंगी बिजली

  • 03 Apr 2021

बिजली आयोग को भेजा प्रस्ताव : बिगड़े हालातों में मांगी मदद
इंदौर. कोरोना वायरस संक्रमण काल के काल कारण बिगड़े आर्थिक हालातों के बीच प्रदेश में महंगी बिजली से उद्योग जगत परेशान है। विपरीत स्थितियों के बीच फिर बिजली की दरें बढ़ाने के प्रस्ताव के चलते उनकी चिंता और बढ़ी हुई हैं। अब उद्योग जगत से सरकार से मांग की है कि बिजली की दरें बढ़ाने के बजाए उन्हें कम करने की जरूरत है, वरना छोटे और लघु उद्योगों के सामने संचालन की चुनौती खड़ी हो जाएगी।
उद्योगपतियों का कहना है कोरोना के लॉकडाउन के दौरान उद्योगों को बिजली के बिलों से लेकर फिक्स चार्ज तक में कोई राहत नहीं दी गई, ऐसे में अब दर बढाने का प्रस्ताव नहीं दिया जा सकता। लघु उद्योग भारती की ओर से मप्र विद्युत नियामक आयोग के सामने बिजली दरें बढ़ाने के बजाए कम करने की मांग रखी है। अध्यक्ष महेश गुप्ता का कहना है, आत्मनिर्भर बनाने का सपना साकार करने के लिए उद्योगों को बिजली के मामले में राहत देने की जरूरत है। अभी उद्योगों को बिजली आठ से 10 रुपये प्रति यूनिट मिल रही है। अधिक दरों के कारण लगातार उत्पादन कम हो रहा है और लागत बढ़ रही है।
संजय पटवर्धन का कहना है सोलर पैनल लगाने के लिए उद्योगों के रूफटॉप का उपयोग पॉवर एनर्जी का उत्पादन कर उद्योगों को बहुत कम दरों पर यूनिट उपलब्ध हो सकते हैं। सोलर पैनल नीति में बदलाव कर अधिक से अधिक उपयोग हो ऐसा नियम बनाया जाना चाहिए। 11 केवी एवं 33 केवी के फिक्स चार्ज में बहुत अंतर है। इसे कम किया कर भी सरकार उद्योगो को राहत दे सकती है।
सीजनल उद्योगों के लिए छह माह का जो कनेक्शन कॉटन प्रोसेस करने वाले लेते हैं उसमें बदलाव की आवश्यकता है। रुई उद्योग का समय अक्टूबर से जून तक चलता है। उन्हें एक अप्रैल से जो नया बिल दिया है वह गलत है, इस नीति में बदलाव की जरूरत है। फिक्स चार्ज एवं मिनिमम चार्ज को समाप्त किया जाना अति आवश्यक है तथा यूनिट खपत पर ही बिल दिया जाना चाहिए।
आयोग को ये भी दिए सुझाव
बिजली बिलों में जीएसटी लगाना चाहिए ताकि उपभोक्ता को जीएसटी का बेनिफिट मिल सके।
विद्युत के रेट का कैपिंग किया जाना अतिआवश्यक है यूनिट का रेट छह रुपये से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
नए विद्युत कनेक्शन लेने की भी समय सीमा तय की जाना चाहिए, अधिक से अधिक 30 दिन।
कई राज्यों में 11 केवी एक मेगावाट तक अर्थात 1000 किलो वाट तक माना जाता है। मध्य प्रदेश में सिर्फ 300 किलो वाट को ही मानते हैं। इसमें बदलाव लाकर 300 से 1000 किया जाना अतिआवश्यक है।