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चिंतन और संवाद

*उपासना'' का तात्पर्य सबकुछ  "कर्मकाण्ड' ही  नहीं मान लिया जाना चाहिए*

  • 27 May 2021

कर्मकाण्ड से ईश्वर को न फुसलाए। 
आत्मसाधना में "ईश्वर उपासना," "आत्मचिंतन," 
"आत्मा" और "परमात्मा" का मिलन 
प्रधान रूप से सम्मिलित रहना चाहिए । 
"जप" "ध्यान," "पूजन-वंदन" की क्रिया 
नियमित रूप से चलनी चाहिए, 
पर उसमें भावनाओं का गहरा पुट रहना चाहिए ।"
लकीर पीटने की चिन्ह पूजा 
अभीष्ट प्रतिफल उत्पन्न नहीं कर सकती । 
"भौतिक महत्वकांक्षाओं" से 
जितनी विरक्ति होगी, 
उतनी ही "आत्मिक विभूतियों" के 
सम्पादन में अभिरुचि एवं तत्परता बढ़ेगी । 
इस तथ्य को भलीभांति समझ लिया जाना चाहिए । 
 अस्तु 
"उपासना'' का तात्पर्य सबकुछ 
"कर्मकाण्ड' ही  नहीं मान लिया जाना चाहिए,
"वरन उसके प्रयोजन की 
उत्कृष्टता बनाए रहनी चाहिए ।
"यदि ईश्वर को 
"रिश्वत" और "खुशामद" के बल पर फुसलाकर 
अपने भौतिक स्वार्थ-साधनों का 
जाल बिछाया जा रहा है 
तो समझना चाहिए कि 
"वह "भक्ति," "साधना," "उपासना" से 
हजारों कोसों दूर भौतिक मायाजाल है," 
जिसमें "आत्मप्रवंचना" के अतिरिक्त 
और कुछ प्रयोजन सिद्ध नहीं होता । 
"आत्मचिंतन, "आत्मसुधार," 
"आत्मनिर्माण" , "आत्मविकास" के लिए 
अंतरंग जीवन को समर्थ बनाने के लिए 
अंतर्मुखी होना अत्यंत आवश्यक है । 
"अपने लक्ष्य, कर्तव्य और उपलब्ध 
जीवन विभूतियों के श्रेष्ठतम सदुपयोग की बात 
निरंतर सोचते रहना चाहिए ।"
अधिक मिले के प्रयास के साथ-साथ 
जो मिला है, 
उसके "उत्कृष्ट उपयोग" की बात पर 
अधिक ध्यान देना चाहिए ।