कोई आदमी किसी की हत्या करना चाहे, तब तुम यह नहीं कहते कि इस व्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधा पड़ रही है, करने दो हत्या!
जब यह करना चाहता है तो करने दो! इसकी स्वतंत्रता में बाधा क्यों डाल रहे हो?
किसी व्यक्ति को किसी के घर में आग लगा कर होली जलानी है। इसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में बाधा नहीं पड़ती, जब तुम इस को रोकते हो, पुलिस पकड़ कर ले जाती है?
किसी को आत्महत्या करनी है, उसको भी तुम नहीं करने देते! यह तो हद हो गई! दूसरे को न मारने दो, चलो ठीक है भई कि दूसरा भी इसमें सम्मिलित है।
एक आदमी अपने को ही मारना चाहता है, वह भी पकड़ जाए तो सजा काटेगा।
अपने को भी मारने की स्वतंत्रता नहीं है; और तुम्हें बच्चे पैदा करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए! जो कि मारने से भी खतरनाक काम है।
क्योंकि तुम हो सकता है ऐसा बच्चा पैदा कर जाओ, जो जिंदगी भर दुख भोगे।
और फिर वह बच्चे पैदा करेगा। तुम एक सिलसिला शुरू कर जाओ जिसका शायद कभी अंत न हो सके। और तुम्हें इसकी स्वतंत्रता चाहिए!
एकाध आदमी को मार दो, इस में कुछ बड़ा खतरा नहीं है। ऐसे आदमियों की भीड़ बहुत है। मगर एक बच्चे को पैदा करना ज्यादा खतरनाक काम है। उसकी तुम्हें व्यक्तिगत स्वतंत्रता चाहिए कि हम तो जिसे पैदा करना है करेंगे।
नहीं, यह बात ठीक नहीं है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का यह अर्थ नहीं होता।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता का यह गलत अर्थ हो गया।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता का क्या अर्थ होता है? तुम्हें हक है कि तुम किसी भी तरह का बच्चा पैदा करो? उस बच्चे के संबंध में क्या? तुम कौन हो उस बच्चे का भविष्य बिगाड़ने वाले? अगर वह बुद्धू होगा, तो तुम जिम्मेवार हो। अगर वह अपाहिज होगा, तो तुम जिम्मेवार हो।
अगर अंधा होगा, तो तुम जिम्मेवार हो। अगर वह बुद्धिहीन होगा, तो कौन जिम्मेवार है? अगर वह जीवन भर परेशान होगा, तो कौन जिम्मेवार है?
हमें ये सब धारणाएं बदलनी पड़ेंगी। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात मूढ़तापूर्ण है।
बुद्ध के जमाने में दो करोड़ आबादी थी इस देश की; अब इस देश की आबादी सत्तर करोड़ है। और अगर हम पाकिस्तान और बंगला देश को भी जोड़ लें, तो नब्बे करोड़ के करीब पहुंच रही है।
दो करोड़ आबादी से नब्बे करोड़! तुम अगर दीन हो, दरिद्र हो तो कौन जिम्मेवार है? और फिर तुम कहते हो व्यक्तिगत स्वतंत्रता! तो तुम्हें दरिद्र होने की व्यक्तिगत स्वतंत्रता है। तो तुम्हें भूखे मरने की व्यक्तिगत स्वतंत्रता है।
फिर शोरगुल क्यों मचाते हो? फिर क्यों चिल्लाते हो कि हम भूखे हैं, कि हम दीन हैं, कि हम दरिद्र हैं, कि दुनिया हमारी फिक्र करें? बच्चे तुम पैदा करो और फिक्र दुनिया तुम्हारी करे! सारी दुनिया पर नाराज हो।
और नाराजगी का कारण? जिम्मेवारी तुम्हारी है। कोई और कारण नहीं है।
चिंतन और संवाद
ओशो : व्यक्ति की स्वतंत्रता ...!
- 08 May 2021