गिग वर्क भी सामाजिक असमानताओं से प्रभावित .. अनारक्षित श्रेणी के 16% ड्राइवर 14 घंटे से अधिक काम, वहीं एससी-एसटी ड्राइवर 60% हैं.
गिग वर्कर्स वे श्रमिक होते हैं जो अस्थायी काम करते हैं. ये लोग किसी काम को टेम्परेरी तौर पर करते हैं और बेहतर अवसर मिलने पर अपने काम को बदल लेते हैं. स्विगी, जोमैटो, उबर जैसे ऐप के जरिये समान डिलीवर करने वाले वर्कर्स इसका उदाहरण हैं.
@DGR VISHESH
लगभग 83% ऐप-आधारित कैब ड्राइवर प्रतिदिन 10 घंटे से अधिक काम करते हैं, जबकि लगभग एक तिहाई के लिए काम के घंटे प्रतिदिन 14 घंटे.से अधिक होते हैं. यह जानकारी 10,000 से अधिक भारतीय गिग वर्कर्स (स्वतंत्र तौर पर काम करने वाले श्रमिकों) के एक अध्ययन से पता चला है
इस अध्ययन में आठ शहरों – दिल्ली, हैदराबाद, बेंगलुरु, मुंबई, लखनऊ, कोलकाता, जयपुर और इंदौर – में 5,302 कैब ड्राइवरों और 5,028 डिलीवरी करने वाले शामिल थे.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अध्ययन में भाग लेने वाले 43 प्रतिशत से अधिक प्रतिभागी सभी खर्चों को काटने के बाद 500 रुपये प्रतिदिन या 15,000 रुपये/महीने से कम कमाते हैं.
इसमें कहा गया है कि लंबे समय तक काम करने के कारण ड्राइवर शारीरिक रूप से थक जाते हैं और सड़क यातायात दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है. कुछ ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों की ‘दरवाजे पर 10 मिनट की डिलीवरी’ नीति से यह और बढ़ गया है.
अध्ययन में यह भी पाया गया कि लगभग 72% कैब ड्राइवर और 76% डिलीवरी कर्मचारी बहुत मुश्किल से गुजरा कर रहे हैं, वहीं 68% ऐसे हैं, जिन्होंने उनकी अपनी आय से कहीं अधिक खर्चे होने की बात स्वीकारी हैं. रिपोर्ट इन ऐप-आधारित श्रमिकों के लिए बेहतर पैसे और समर्थन की पुरजोर वकालत करती हैरिपोर्ट में आईडी डीएक्टिवेट होने और ग्राहकों द्वारा दुर्व्यवहार के मुद्दे पर भी बात की गई है.
सरकार को और अन्य सामाजिक संस्थाओं को चाहिए कि इस रिपोर्ट को दृष्टिगत रखते हुए, श्रमिकों के हितार्थ
ठोस और प्रभावी कदम उठावे