योगी
जितनी आवश्यकता होगी केवल उतना ही भोजन खायेगा।
सुबह से लेकर रात्रि तक उसका नियम होगा।
हर परिस्तिथि को खुशी से स्वीकार करेगा।
किसी एक से भी complaint नहीं होगी।
रोज ध्यान में बैठने का अभ्यास करेगा।
केवल अपने भीतर से सुख की तलाश करेगा।
सबका भला सोचेगा।
केवल वर्तमान का सुख लेगा।
भोगी
जीभा के स्वाद के अनुसार भोजन लेगा।
कभी नियम पर चलेगा और खभी नियम तोड़ेगा।
अपने पुरुषार्थ द्वारा परिस्तिथि में क्यूँ, क्या कैसे के प्रश्नों के उत्तर ढूंढने का प्रयास करेगा।
कभी क्रोध करेगा तो कभी कभी शांत रहेगा।
कभी ध्यान लगेगा तो कभी नहीं लगेगा।
बाहरी दुनिया, पदार्थ और संबंधों में सुख की तलाश करेगा।
दूसरों की बातों का बुरा भी लगेगा, अच्छा भी लगेगा।
कभी स्वार्थ और कभी निस्वार्थ कर्म करेगा।
भविष्य और भूतकाल की चिंता होने के कारण निरंतर वर्तमान का सुख ले नहीं पायेगा।
रोगी
उबला हुआ भोजन और वो भी थोड़ी थोड़ी देर में लेगा।
दवाइयां और भोजन नियम पर लेने होंगे।
हर परिस्तिथि में क्यूँ, क्या कैसे के प्रश्न उठेंगे।
मन को शांत रखने में बहुत पुरुषार्थ करना पड़ेगा।
शारीर में पीड़ा होने के कारण ध्यान में बैठना मुश्किल होगा।
अगर जीवन में सकरात्मक सोच है और अध्यात्म से जुड़े हुए हैं तो बहुत जल्दी रोगी से भोगी बना जा सकता है।
मन बुद्धि की एकाग्रता के द्वारा और अष्टांग योग की विधि के द्वारा भोगी से योगी बना जा सकता है।
- बाबापण्डित, http://www.babapandit.com
विविध क्षेत्र
अंतर क्या होता है - योगी, भोगी और रोगी
- 25 Aug 2021