ब्रिटिश सरकार अंतरिक्ष में सोलर पावर स्टेशन बनाने की योजना बना रही है. माना जा रहा है कि इसकी लागत करीब 1.58 लाख करोड़ रुपये आएगी. इसके पीछे मकसद है, अंतरिक्ष से सीधे ऊर्जा हासिल करने की ऐसी तकनीक जिसमें एक बार के बाद कोई लागत न लगे. साथ ही देश के नेट जीरो इनोवेशन पोर्टफोलियो को मजबूत किया जा सके.
ब्रिटिश सरकार अंतरिक्ष में सोलर पावर स्टेशन को ऊर्जा के क्षेत्र की ऐसी नई तकनीक मान रही है, जिससे एनर्जी तो मिलेगी ही, प्रदूषण भी नहीं होगा. साथ ही 2050 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन हासिल करने का लक्ष्य भी पूरा हो जाएगा. लेकिन मुद्दा ये है कि अंतरिक्ष में ये सोलर पावर स्टेशन काम कैसे करेंगे? इनसे किस तरह के फायदा मिल सकता है या फिर नुकसान हो सकता है.
अंतरिक्ष में सोलर पावर स्टेशन
अंतरिक्ष से सौर ऊर्जा को जमा करके उसे धरती की तरफ ट्रांसफर करने वाले स्टेशन को अंतरिक्ष में स्थित सोलर पावर स्टेशन कहते हैं. ये आइडिया कोई नया नहीं है लेकिन लगातार हो रहे तकनीकी विकास की वजह से इसे हासिल करना अब आसान होता जा रहा है. इसके लिए एक सोलर पावर सैटेलाइट यानी एक बड़ी सैटेलाइट जिसपर ढेर सारे सोलर पैनल्स लगे हो. जो धरती पर हाई फ्रिक्वेंसी की रेडियो वेव्स तेजी से भेज सके. एक ग्राउंड एंटीना जिसे रेक्टीना कहा जा रहा है, वो तैनात हो. यह एंटीना ही रेडियो तरंगों को बिजली में बदलकर उसे पावर ग्रिड तक ट्रांसफर कर दे.
24 घंटे मिलती रहेगी सूरज से एनर्जी
अंतरिक्ष में सोलर पावर स्टेशन को लगातार सूरज से ऊर्जा मिलती रहेगी. रात होने या मौसम बदलने का नुकसान नहीं होगा. यानी जमीन की तुलना में लगातार ज्यादा ऊर्जा का संवर्धन और सरंक्षण. जबकि धरती पर सौर ऊर्जा से सिर्फ दिन में बिजली पैदा की जा सकती है. साल 2050 तक पूरी दुनिया में ऊर्जा की मांग 50 फीसदी बढ़ने वाली हैं. अंतरिक्ष में सोलर पावर स्टेशन बनाने से बिजली उत्पादन की किल्लत, लागत, प्रदूषण, खर्च आदि से राहत मिल जाएगी.
कुछ नुकसान भी हो सकते हैं
अंतरिक्ष में सोलर पावर स्टेशन एक मॉड्यूलर डिजाइन पर आधारित होगा. जिसे धरती की कक्षा में रोबोट्स जोड़ेंगे. इन सभी को अंतरिक्ष तक पहुंचाना एक बेहद कठिन काम है. फिर उसे वहां पर जोड़ना. इस काम में शुरुआती लागत ही काफी ज्यादा आती है. इसके अलावा अंतरिक्ष में तकनीकी सामान पहुंचाने से धरती पर पर्यावरणीय असर भी पड़ता है. सोलर सेल्स हल्के होते जा रहे हैं, इसलिए अंतरिक्ष में पैनल लगाना आसान होगा. लेकिन इन सभी चीजों को अंतरिक्ष में जोड़ने के लिए कई उड़ानें भरनी होंगी.
कौन सा यान कर सकता है सोलर स्टेशन बनाने में मदद
अंतरिक्ष में सोलर पावर स्टेशन बनाने के लिए भारी मात्रा में सामान ऊपर पहुंचाना होगा. सैटेलाइट तो रॉकेट से चला जाएगा. लेकिन पैनल्स को ऊपर ले जाकर जोड़ने के लिए स्पेस शटल की जरूरत होगी. लेकिन अमेरिका का स्पेस शटल प्रोग्राम बंद हो चुका है. वैसी सुविधा अब किसी देश के पास नहीं है. इस काम में स्पेस एक्स जैसी कंपनियों के रॉकेट और स्पेसक्राफ्ट मदद करते हैं. इनकी वजह से लॉन्चिंग की लागत भी कम आएगी.
किस तरह की चुनौतियां आएंगी
चलिए मान लेते हैं कि इंसानों ने अंतरिक्ष में सोलर पावर स्टेशन बना लिया. इसके बाद भी कई तरह की चुनौतियों का सामना करना होगा. जैसे सोलर पैनल्स को अंतरिक्ष के कचरे से टूटने और खराब होने की आशंका बनी रहेगी. धरती की तरह सोलर पैनल्स को वायुमंडलीय सुरक्षा कवच नहीं मिलेगा. इससे वो भयानक सोलर रेडिएशन की शिकार होंगे. वो जल्दी ही खराब हो सकते हैं. उनकी ऊर्जा उत्पादन क्षमता कम हो जाएगी. इसके अलावा वायरलेस तरीके से ऊर्जा को धरती पर भेजना भी एक बड़ी चुनौती है. वर्तमान तकनीक के साथ बहुत कम ऊर्जा तरंगों को धरती पर पहुंचाया जा सकता है.
और कहां-कहां हैं ऐसे प्रोजेक्ट्स की योजनाएं
यूएस नेवल रिसर्च लेबोरेटरी ज्यादा ताकत वाले हाई-फ्रिक्वेंसी सोलर सेल्स का निर्माण कर रहे हैं. जिनका परीक्षण साल 2020 में अंतरिक्ष में किया जा चुका है. उधर, चीन ने भी घोषणा की है कि वह भी अंतरिक्ष में अपना सोलर पावर स्टेशन बनाएगा. यह 2035 तक बनकर तैयार हो जाएगा. इसका नाम होगा बिशन स्पेस सोलर एनर्जी स्टेशन. अब ब्रिटिश सरकार ने फ्रेजर-नैश कंस्लटेंसी रिपोर्ट के अनुसार सोलर पावर स्टेशन बनाने की ठानी है. अगर सब सही रहा तो इस स्टेशन को 2040 तक शुरु करने की योजना है.
कितना बड़ा होगा ब्रिटिश सोलर पावर स्टेशन
ब्रिटिश सरकार का सोलर पावर स्टेशन के सैटेलाइट का व्यास 1.7 किलोमीटर होगा. इसका वजन 2000 टन होगा. इसके टेरेस्ट्रियल एंटीना का फैलाव जमीन पर 6.7 से 13 किलोमीटर तक हो सकता है. यहीं पर सैटेलाइट से आने वाली हाई-फ्रिक्वेंसी रेडियो तरंगें रिसीव की जाएंगी. सैटेलाइट अंतरिक्ष से 2जीडब्ल्यू ऊर्जा डिलीवर करेगा. जबकि, इंग्लैंड में सालाना जमीन पर पैदा होने वाली बिजली 76जीडब्ल्यू है. कुल मिलाकर मामला ये है कि इस प्रोजेक्ट में शुरुआती खर्च, रिसर्च, तकनीक और मेहनत बहुत ज्यादा है. इससे फायदा बेहद धीरे-धीरे होगा.
साभार आज तक
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अंतरिक्ष में सोलर पावर स्टेशन बनाने की तैयारी...
- 06 Apr 2022