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'अजन्मे बच्चे की मौत' के लिए मुआवजा देने का दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया आदेश, हादसे में गई थी जान

  • 17 Aug 2023

नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने एक सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाली  27 वर्षीय गर्भवती महिला (पुलिस कांस्टेबल) के पति को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है. अदालत ने कहा कि व्यक्ति, महिला के गर्भ में पल रहे भ्रूण के खोने के लिए भी मुआवजे का हकदार है. हादसे के समय, महिला के गर्भ में पल रहा भ्रूण आठ महीने का था और महिला उत्तर प्रदेश में पुलिस कांस्टेबल थी.
जस्टिस नवीन चावला ने कहा कि भ्रूण एक महिला के अंदर एक और जीवन होता है और इसे गंवाना असल में जन्म लेने वाली संतान को खो देना है और मृतका के पति ने हादसे में अपने पूरे परिवार को खो दिया. उत्तर प्रदेश पुलिस कांस्टेबल की जुलाई 2013 में उस समय मौत हो गई थी जब तेज गति से आ रहे एक ट्रक ने एक मोटरसाइकिल को पीछे से टक्कर मार दी थी. इस मोटरसाइकिल पर महिला कांस्टेबल अपने सहकर्मी के साथ सवार थी.
अदालत ने कहा कि पति "उचित" मुआवजे का हकदार है. अदालत ने कहा कि आठ माह के अजन्मे बच्चे की मौत के लिए 2.5 लाख रुपये मुआवजा देने का मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण का फैसला पर्याप्त नहीं है. न्यायाधीश ने निर्देश दिया कि बीमाकर्ता द्वारा मुआवजे की बढ़ाई गई राशि पांच लाख रुपये अदा की जाए.
अदालत ने हाल के एक आदेश में कहा, 'इसमें कोई संदेह नहीं है कि अपीलकर्ता मुआवजे का हकदार है. वर्तमान मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, मुझे लगता है कि न्यायाधिकरण द्वारा दिया गया 2,50,000 रुपये का मुआवजा अपर्याप्त है. इसे बढ़ाकर 5,00,000 रुपये किया जाएगा.'
अदालत का आदेश न्यायाधिकरण द्वारा दी गई मुआवजे की राशि के खिलाफ पति की अपील पर आया. न्यायाधिकरण ने माना था कि लापरवाही से गाड़ी चलाने के कारण कांस्टेबल की मौत हो गई और पति को 'संपत्ति के नुकसान' के आधार पर मुआवजा दिया गया जो मृतक की आय का एक तिहाई हिस्सा था.
इसके अलावा भ्रूण की मृत्यु के लिए 2.50 लाख रुपये का मुआवजा भी दिया गया. अपीलकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि ट्रिब्यूनल ने भ्रूण की मृत्यु के मुआवजे को केवल 2.50 लाख रुपये तक सीमित करके गलती की है क्योंकि वह अपनी मृत पत्नी के साथ अपने पहले बच्चे की उम्मीद कर रहा था और उसका पूरा परिवार दुर्घटना में खत्म हो गया.
साभार आज तक