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भोपाल

अवैध कब्जे बने मुश्किल, प्रदेश के बाहर 1 लाख करोड़ की संपत्ति, बेचना बना सिरदर्द

  • 07 Dec 2022

भोपाल। मप्र सरकार की प्रदेश से बाहर करीब एक लाख करोड़ रुपए की संपत्ति है। लेकिन, अवैध कब्जों के कारण इन्हें बेचना सिरदर्द बन गया है। राज्य की सबसे ज्यादा संपत्ति मुंबई में है जो बाजार मूल्य के हिसाब से 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की है। हालांकि सरकार ने इनमें से चुनिंदा गैरविवादित संपत्तियों की कीमत 1 हजार करोड़ रुपए लगाई है। इनके लिए बोली में 5 हजार करोड़ रुपए मिल सकते हैं।
राज्य सरकार की मुंबई में सबसे ज्यादा 365 एकड़ जमीन मुंबई में ठाणे में है। इसमें से 90 एकड़ जमीन एयरफोर्स ने अधिगृहित कर ली है। कोलाबा काचवे में 4256 स्क्वायर यार्ड, 10-12 मांगलिक रोड पर 590.69 स्क्वायर यार्ड में दो बिल्डिंग हैं। इसके अलावा माधार पागड़ी रोड 12274 स्क्वायर यार्ड, प्रापर्टी एंड चौपाटी 5666 स्क्वायर यार्ड और एडवर्ड विला प्रमुख संपत्तियों में है।
सरकार अभी मुंबई की जिन जमीनों को बेच रही है, उनमें प्रिंसेस बिल्डिंग 2294.66 वर्ग मीटर और टेंक बंदर रोड 10460 वर्गमीटर शामिल हैं। टेंक बंदर रोड की जमीन बेचे जाने के लिए टेंडर में कीमत 86 करोड़ रुपए लगाई गई थी, लेकिन इसकी नीलामी नहीं हो सकी और सरकार ने अर्नेस्ट मनी जब्त कर ली है।
1 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति है प्रदेश से बाहर
50 हजार हजार करोड़ रुपए की संपत्ति सिर्फ मुंबई में
550 एकड़ जमीन है केरल के वायनाड जिले में
केरल में हजारों करोड़ की जमीन पर कॉफी की खेती की जा रही
सरकार ने बेचने के लिए 466 संपत्तियों में से महाराष्ट्र, केरल, दिल्ली और उप्र में जमीनों को शामिल किया है। केरल के वायनाड में मप्र की हजारों करोड़ रु. की 550 एकड़ जमीन हैै। यहां कॉफी की खेती हो रही है। इसके मालिकाना हक को लेकर केरल और मप्र के बीच विवाद था, लेकिन बातचीत के बाद सुलझा लिया गया है।
मप्र की ओर से 1950 से इस जमीन को लीज पर दिया जाता रहा था, जिस पर लीज धारक ने कब्जा जमा लिया। सुप्रीम कोर्ट ने 1977 में मप्र के हक में फैसला दिया। नागपुर और झांसी में मप्र सड़क परिवहन निगम की जमीनें हैं। नागपुर में 3 एकड़ की कीमत 150 करोड़ रुपए लगाई गई है, जबकि झांसी की जमीन पर कब्जा है।
संपत्ति बेचने के लिए बनाई गई है प्रोविडेंट इनवेस्टमेंट कंपनी
प्रदेश से बाहर की इन संपत्तियों को बेचे जाने के लिए प्रोविडेंट इनवेस्टमेंट कंपनी बनाई गई है जो अभी वित्त विभाग के अधीन है। दरअसल, यह कंपनी 1926 में स्वर्गीय सर जेएम सिंधिया के द्वारा स्थापित की गई थी। इस कंपनी का उद्देश्य मुंबई में पैसा निवेश कर लाभ कमाकर ग्वालियर राज्य के निकायों में विकास कार्य करना था। मप्र का गठन होने के बाद इस कंपनी में 73 प्रतिशत शेयर मप्र, 26 प्रतिशत छत्तीसगढ़ और 1 प्रतिशत शेयर सिंधिया राजघराने के वारिसों के पास हैं। इन तीनों की सहमति के बाद ही संपत्तियों को बेचा जा सकता है। फिलहाल इस कंपनी में नए मैनेजर की नियुक्ति को लेकर भी खींचतान मची हुई है।
कागजों पर हैं संपत्तियां...
ये संपत्तियां सिर्फ कागजों पर है, इन्हें मुक्त कराए जाने के लिए हमारी सरकार ने प्रयास किए थे, लेकिन सरकार चली गई। जब इन संपत्तियों का प्रदेश के लोगों को एक पैसे का फायदा नहीं हो रहा है तो इसका सरकार को कोई उचित समाधान निकालना चाहिए।
-तरुण भानोत, पूर्व वित्त मंत्री