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अवाबाई वाडिया ने रखी थी भारत में परिवार नियोजन की नींव

  • 23 Jun 2023

इन दिनों सड़क पर दौड़ने वाले परिवहन जैसे, बस या टैक्सी के पीछे परिवार नियोजन के पोस्टर दिख जाते हैं, मेट्रो और टीवी चैनलों पर कंडोम के विज्ञापन नजर आ जाते हैं। शाॅपिंग माॅल या स्टोर में सैनिटरी पैड के कई ब्रांड धडल्ले से बिकते नजर आ जाते हैं। लेकिन कुछ वर्षों पहले यह स्थिति नहीं थी। परिवार नियोजन के बारे में लोग खुल कर बात नहीं करते थे। कंडोम के विज्ञापन देखकर मुंह-नाक सिकोड़ लेते थे। 'हम दो, हमारे दो' या 'छोटा परिवार, सुखी परिवार' की अवधारणा आज आम बात है, लेकिन एक दौर था, जब इस बारे में चर्चा करना शर्म की बात मानी जाती थी। लेकिन क्या आपको पता है कि उस दौर में मुद्दे को उठाने वाली और बेबाकी से परिवार नियोजन की वकालत करने वाली एक महिला ही थी। चलिए जानते हैं भारत में पहली बार परिवार नियोजन की नींव रखने वाली अवाबाई वाडिया के बारे में।
परिवार नियोजन के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की शुरुआत करने वाला भारत दुनिया का पहला देश था। सन् 1952 में भारत में परिवार नियोजन नीतियों को आधिकारिक रूप से लागू किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य जनसंख्या स्थिरीकरण के साथ ही प्रजनन स्वास्थ्य को बढ़ाना, मातृ व शिशु की बेहतर सेहत और बाल मृत्यु दर को कम करना था। हालांकि जब इस कार्यक्रम को देश में लागू कराने का श्रेय अवाबाई वाडिया को जाता है, उनके गर्भपात के बाद पति ने भी अवाबाई से रिश्ता खत्म कर दिया।
अवाबाई वाडिया का जन्म कोलंबो में 1913 को हुआ था। खुले विचारों वाले परिवार में जन्मी अवाबाई ने उच्च शिक्षा हासिल की और अपने तरीके से अपना जीवन जिया। अवाबाई के पिता शिपिंग अधिकारी थे और उनकी माता एक गृहिणी थीं।
पढ़ाई में होनहार अवाबाई ने यूनाइटेड किंगडम से ‘बार परीक्षा’ पास की। उनके नाम एक बड़ी उपलब्धि भी है। बार परीक्षा पास करने वाली अवाबाई श्रीलंका की पहली महिला बनीं। उनकी इस उपलब्धि के बाद श्रीलंका सरकार ने महिलाओं को कानूनी शिक्षा देने का प्रयास तेज कर दिया।
बाद में अवाबाई ने लंदन में काम करना शुरू किया। इस दौरान उन्हें लैंगिक भेदभाव का भी सामना करना पड़ा। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अवाबाई और उनका परिवार भारत आ गया। अवाबाई के परिवार ने बंबई में घर लिया। हालांकि यहां अवाबाई की वकालत पीछे रह गई और वह समाजसेवा के कार्यो में लग गईं। इस बीच 1946 में उनकी शादी बोमनजी खुरशेदजी वाडिया से हुई।
उस दौर में दुनिया आबादी की जरूरतों को पूरा करने की समस्या से जूझ रही थी। मातृ मृत्यु और शिशु मृत्यु दर लगातार बढ़ रही थी। हालांकि उस दौर में परिवार नियोजन पर बात करना अपराध जैसा था। समाज सेवा के काम में लगी अवाबाई ने 1949 में फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया की स्थापना की। साल 1952 में अवाबाई का गर्भपात हो गया और उनके पति ने उनसे रिश्ता तोड़ दिया। अवाबाई ने जाना कि महिलाओं का जीवन कितनी समस्याओं से घिरा हुआ है। अवाबाई ने परिवार नियोजन के कार्यक्रम को तेज करते हुए सरकार तक इस मसले को पहुंचाया और 1952 में परिवार नियोजन नीतियों को आधिकारिक तौर पर लागू किया। भारत इस तरह का कार्यक्रम चलाने वाला पहला देश बना और दुनियाभर में प्रसिद्ध हुआ।
एफपीएआई के प्रयासों के जरिए कर्नाटक क्षेत्र में शिशु मृत्यु दर में कमी देखी गई। विवाह की औसत आयु बढ़ गई। हालांकि परिवार नियोजन मिशन की काफी आलोचना भी हुई। अवाबाई के मिशन में किसी पर जबरन परिवार नियोजन की अवधारणा थोपना नहीं था लेकिन कुछ राज्यों में खास समुदाय के लोगों को जबरदस्ती परिवार नियोजन के लिए कैंप ले जाया गया। कुछ लोगों के मरने की जानकारी भी मिली। इस कारण 1980 में अमेरिका ने इस मिशन को फंड देने से इनकार कर दिया। अवाबाई ने भारत सरकार से साथ मिलकर एक बार फिर मिशन को नए सिरे से शुरू किया। इस मिशन की छवि को सुधारने की प्रयास किया। 1971 में  अवाबाई को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
साभार अमर उजाला