उपवास दरअसल शरीर और मस्तिष्क को सत्व की स्थिति में रखने की एक कोशिश है। यह कोशिश एक दिन से शुरू हो कर तीन चार, आठ दस दिन या महीने साल बाहर तक किसी भी अवधि के लिए भी हो सकती हैं।
मूल बात है समर्पण और अनुशासन। उपवास के दौरान बीच में कुछ खाया भी जा सकता है- जैसे फलाहार या दिन में एक समय भोजन। उपवास के दौरान राजसी-तामसी वस्तुओं के इस्तेमाल से पूरा परहेज बरतने का अनुशासन बताया गया है।
उपवास में दूध घी मेवे फल आहार इसलिए मान्य है कि ये भगवान को अर्पित की जाने वाली वस्तुएं हैं। प्रकृति प्रदत्त यह भोजन शरीर में सात्विकता बढ़ाता है। उपवास के दौरान किए जाने वाले अनुष्ठानों का भी व्यापक अभिप्राय है।
डॉ. केके अग्रवाल के अनुसार असल में इस तरह के अनुष्ठानों से शरीर में पैदा होने वाले विषैले पदार्थों के प्रभाव को समाप्त किया जा सकता है। शारीरिक शुद्धि के लिए तुलसी जल, अदरक का पानी या फिर अंगूर इस दौरान ग्रहण किया जा सकता है।
मानसिक शुद्धि के के लिए जप, ध्यान, सत्संग, दान और धार्मिक सभाओं में भाग लेना चाहिए। उपवास की प्रक्रिया सिर्फ कम खाने या सात्विक भोजन से ही पूर्ण नहीं हो जाती। इस दौरान सुबह-शाम ध्यान करना भी जरूरी है। इससे मन शांत होता है और अच्छाई के संस्कार बढ़ते है।
बाबा पंडित
आखिर ऐसा क्यों?
- 25 Dec 2019