विभाग में स्टाफ और संसाधन की कमी, 12 साल से नहीं हुई नई भर्ती
इंदौर। शहर में जगह-जगह पर आग लगने की घटनाएं होना आम बात है। कई बार तो इन घटनाओं में लोगों की जान तक चली जाती है। हालांकि यह अच्छी बात है कि अधिकांश घटनाओं में फायर ब्रिगेड के कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर भी लोगों की जान बचाते हुए आग पर काबू पा लेते हैं लेकिन इतने महत्वपूर्ण विभाग में स्टाफ की कमी है। कई वर्षों से यह विभाग स्टाफ की कमी से जूझ रहा है। वर्तमान में हालत यह है कि शहर की आबादी लगभग 30 लाख के पार है। आग लगने की स्थिति में इनकी सुरक्षा के लिए मात्र 120 फायरकर्मी ही विभाग के पास है। वहीं आग बुझाने में उपयोग किए जाने वाले आधुनिक संसाधनों की भी विभाग में कमी बताई जाती है।
शहर में फायर ब्रिगेड की स्थिति सबसे खराब नजर आती है, जबकि आग लगने की घटना में सबसे पहले इसी फायर ब्रिगेड का नंबर डायल किया जाकर फायर कर्मियों को बुलाया जाता है। चाहे आग लगने की छोटी घटना हो या फिर कोई बड़ी घटना। फायर ब्रिगेड के कर्मचारी मौके पर पहुंचकर अपनी जान की परवाह किए बिना आग में फंसे लोगों को रेस्क्यू कर उनकी जान बचाने और आग पर काबू पाने के पूरे प्रयास करते हैं और सीमित संसाधनों के बावजूद वे इसमें कामयाब भी हो जाते हैं। लेकिन इसके बावजूद फायर सेफ्टी के मामले में इंदौर पिछड़ता जा रहा है। लगभग 30 लाख की आबादी वाले शहर में आग से सुरक्षा के लिए मात्र सवा फायरकर्मी ही फायर ब्रिगेड विभाग के पास हैं।
दरअसल तेजी से महानगर और स्मार्ट सिटी का रूप लेते शहर में क्राइम कंट्रोल के लिए पुलिस कमिश्नरी लागू कर दी गई और हर क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है। एजुकेशन और आईटी का हब बनते जा रहे शहर ने सफाई में भी नए आयाम गढ़े हैं और नित नई ऊंचाइयों को छू रहा है, लेकिन विडंबना है कि फायर सेफ्टी के मामले में इस ओर शायद जिम्मेदारों का ध्यान नहीं हैं, ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है कि आग लगने की घटनाओं में सबसे ज्यादा जिस विभाग के कर्मचारियों की जरूरत होती है उसकी विभाग में करीब 12 साल से नई भर्ती नहीं हुई है। स्टाफ के साथ-साथ संसाधनों की कमी के चलते आग पर काबू पाने में कई बार फायरकर्मियों को अपनी जान जोखिम में डालते हुए खासी मशक्कत करना पड़ रही है।
1905 में बना मोती तबेला का फायर स्टेशन
शहर में पहला फायर स्टेशन वर्ष 1905 में स्थापित हुआ था। इंदौर में मोती तबेला में यह फायर स्टेशन बनाया गया था। उस समय शहर की आबादी बहुत ज्यादा नहीं रही होगी, फिर भी आपदा को देखते हुए फायर स्टेशन स्थापित किया गया था। समय के साथ शहर की आबादी बढ़ती गई और विकास होता गया। शहर के कई हिस्सों में औद्योगिक इलाके है, तो बड़ी संख्या में रहवासी क्षेत्र हैं। पुराने शहर में कई जगह सघन इलाकों में रहवासी क्षेत्र हैं। हालांकि, शहर के भौगौलिक विकास के अनुसार आपदा से निपटने के लिए फायर ब्रिगेड का विकास नहीं हो सका।
600 के स्टाफ की जरूरत
एक अनुमान के मुताबिक शहर में हर साल 2100 से 2300 के बीच आगजनी की छोटी-मोटी घटनाएं होती हैं, लेकिन हमारा फायर सेफ्टी सिस्टम पूरी तरह ध्वस्त है। दमकल विभाग में महज 120 कर्मचारियों का स्टाफ है। यानी 35 लाख की आबादी वाले शहर में आग लगने की स्थिति में लोगों की सुरक्षा के लिए नाम मात्र का स्टाफ है। जबकि जरूरत कम से कम 600 फायर सुरक्षा कर्मियों की है।
बढ़ना चाहिए फायर स्टेशन
जिस तेजी से शहर का क्षेत्रफल बढ़ रहा है और आाबादी भी बढ़ती जा रही है। उसे देखते हुए शहर में कम से कम 11 फायर स्टेशन होना चाहिए, लेकिन वर्तमान में केवल 5 ही फायर स्टेशन हैं। शहर के पूर्वी क्षेत्र में तो एक भी फायर स्टेशन नहीं है। ऐसे में पूर्वी इलाकों में आग लगने की घटना के दौरान कई बार देखने में आया है कि जब यहां पर आग पर काबू पाने के लिए जब फायर ब्रिगेड की टीम यहां पर पहुंचती है, तब तक आग तेजी से भड़क जाती है। दरअसल पश्चिम इलाके में स्टेशन होने के चलते यहां पर पहुंचने में फायर कर्मियों को देरी हो जाती है और कई बार आग लगने की छोटी घटनाएं भी बड़ा रूप ले लेती है। शहरी जनसंख्या व क्षेत्रफल के लिहाज से 11 स्टेशनों की जरूरत है।
सीमित संसाधन
सूत्र बताते हैं कि फायर ब्रिगेड में संसाधनों की कमी भी है। यहां आॅक्सीजन मास्क और सर्च व हैवी टार्च लाइट तक अच्छी क्वालिटी की नहीं है। एक फायर सूट है, जिसे विभाग फायर सुरक्षा सप्ताह के दौरान ही डेमोंस्ट्रेशन के लिए उपयोग करता है। बाकी सूट लगभग सड़ कर खराब हो चुके हैं। आग बुझाने में सबसे तेजी से काम करने वाले फायर टेंडर वाहन 4 पुलिस विभाग के और 5 नगर निगम के हैं। इनमें पुलिस विभाग के वाहन कंडम स्थिति में आ गए हैं। इनके प्रेशर पंप कमजोर हैं। ज्यादातर वाहन 30 से 35 साल पुराने हैं।
ड्राइवरों की भी कमी
इन दिनों फायर ब्रिगेड में कई तरह की कमियों से जूझ रहा है। बताया जाता है कि शहर की फायर ब्रिगेड टीम को इंदौर में बने पांच फायर स्टेशनों में लगभग 60 कर्मचारियों की जरूरत है, जिसमें 12 फायर ब्रिगेड ड्राइवर और 48 फायरमैन के पद शामिल हैं। जल्द ही इनकी भर्ती किया जाना फायर ब्रिगेड टीम के लिए बेहद जरूरी है।
लाखों रुपए की गाड़ी नहीं सुधर रही
शहर में बढ़ रही ऊंची इमारतों को देखते हुए वर्ष 1993 में हाइड्रोलिक फायर फाइटर गाड़ी खरीदी गयी थी। इसकी कीमत डेढ़ करोड़ के आसपास थी। इस गाड़ी से लगभग 15 मंजिल तक ऊंची इमारतों से आग बुझाने में मदद मिलती है, बताया जाता है कि लंबे समय से यह गाड़ी खराब पड़ी है। इसको सुधरवाने में करीब 32 लाख रुपये खर्च होंगे। बजट बनाकर भेजने के साथ सूचना पत्र नगर निगम और मुख्यालय को भेजा जा चुका है, लेकिन अब तक इसकी सुध नहीं ली गई है और फायर ब्रिगेड की गाड़ी अब भी खराब पड़ी है।
इसलिए बिगड़ी स्थिति
सूत्र बताते हैं कि फायर ब्रिगेड विभाग के नगरीय निकाय में शामिल होने के गजट नोटिफिकेशन के बाद से विभाग की स्थिति बिगड़ी है। विभाग में काम करने वाले गृह विभाग के अधीन होकर पुलिस फायर सर्विस से आए थे। नगरीय निकाय में जाने से यहां नई भर्ती नहीं हुई।
इंदौर
इंदौर का फायर ब्रिगेड ... 120 फायरकर्मियों के भरोसे 30 लाख लोगों की सुरक्षा
- 20 Jul 2023