भोपाल। उपचुनाव में तीन सीटें जीतने के बाद भाजपा सरकार ने राहत की सांस तो ली है, लेकिन कांग्रेस के लिए यह हार पचने वाली नहीं है। दरअसल इस हार ने यह साबित कर दिया कि कांग्रेसी खासकर कमलनाथ एक बार फिर मैनेजमेंट में कमजोर साबित हुए हैं, जबकि शिवराजसिंह चौहान की लोकप्रियता बरकरार है।
जातीय समीकरण का रखा ध्यान
शिवराज ने जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर प्रचार किया। उन्होंने दलित के घर खाना खाया, तो आदिवासी के घर रात्रि विश्राम किया। इतना ही नहीं, मतदान के बाद छतरपुर में एक कुम्हार के घर दिए बनाकर संदेश दिया कि केवल बीजेपी ही सर्वहारा को साथ लेकर चलने वाली पार्टी है। शिवराज के लिए यह चुनाव इस लिहाज से भी फायदेमंद रहा, क्योंकि वे आदिवासी वोट बैंक को बीजेपी की तरफ मोडऩे में काफी हद तक सफल हुए। इससे केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा उनके प्रति बढ़ेगा। बता दें कि 15 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनजातीय दिवस पर भोपाल में होने वाले आयोजन में शिरकत करेंगे।
पाटिल पर लगाया था दांव
खंडवा लोकसभा सीट जीत शिवराज के लिए अहम है। यहां से 25 साल बाद ओबीसी कार्ड खेलकर ज्ञानेश्वर पाटिल पर दांव लगाया था। इस सीट पर पाटिल की लीड भले ही कम हो गई, लेकिन बुरहानपुर में पिछले चुनाव की तुलना में नंद कुमार सिंह चौहान से (14 हजार वोट) ज्यादा वोट लेकर यह साबित करने में सफलता मिली कि बीजेपी का वोट बैंक बढ़ा है। नंदकुमार को यहां से कभी भी 10 हजार से ज्यादा लीड नहीं मिली।
अब होगी निगम-मंडल में नियुक्तियां
निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्तियों के लिए उपचुनाव होने का इंतजार किया जा रहा था। अब जिस तरह से बीजेपी के पक्ष में परिणाम आए हैं, उससे साफ है कि इन नियुक्तियों में शिवराज का प्रभाव ज्यादा दिखेगा। पहले मंत्रिमंडल विस्तार हो या संगठन में नियुक्तियां, शिवराज के समर्थकों को ज्यादा तवज्जो नहीं मिली थी।
सिंधिया का जुडऩा रहा फायदेमंद
जिस तरह से उपचुनाव के रुझान और परिणाम दिख रहे हैं, उससे यह साफ हो गया है कि कहीं न कहीं बीजेपी के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया का जुडऩा फायदेमंद रहा। पहले के उपचुनाव में भी देखा गया कि सिंधिया फैक्टर काफी प्रभावशाली रहा था। इस बार के चुनाव में भी जो सिंधिया के समर्थक थे, उन्होंने बीजेपी को वोट दिया और इसका फायदा हुआ। जोबट में सुलोचना रावत को कांग्रेस से बीजेपी में लाने में सिंधिया की अहम भूमिका बताई जा रही है। यही वजह है कि उनके कट्?टर समर्थक मंत्री गोविंद सिंह राजपूत को यहां का चुनाव प्रभारी बनाया गया था। हालांकि, शिवराज ने यहां भी ताकत लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
कांग्रेस का दावा फेल
सुलोचना रावत को जब कांग्रेस का टिकट नहीं मिला तो उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया। बीजेपी ने उन पर भरोसा किया और उन्हें टिकट दिया. बीजेपी के भरोसे पर सुलोचना रावत खरी उतरीं और उन्होंने कांग्रेस के महेश पटेल को हरा दिया। कमलनाथ को चुनावी मैनेजमेंट का गुरु कहा जाता है, लेकिन उनका यह मैनेजमेंट उपचुनाव में फेल हो गया। कांग्रेस दावा कर रही थी कि भले उनके खेमे से सुलोचना रावत बीजेपी में शामिल हो गई हों, लेकिन जीत उनकी ही होगी।
एकजुट रखने का भी सबक
मध्य प्रदेश उपचुनाव के परिणाम कांग्रेस के लिए एक चेतावनी की तरह हैं। कांग्रेस जिस तरह से मांग रही थी कि कोरोना और महंगाई के कारण जनता बीजेपी से नाराज है और वह उसे वोट नहीं देगी। अब जिस तरह से उपचुनाव के परिणाम आए हैं, वह कांग्रेस के लिए एक झटका के साथ-साथ सबक भी है। साथ ही साथ कांग्रेस के लिए अपने नेताओं को एकजुट रखने का भी सबक है, क्योंकि कहीं न कहीं बीजेपी की जीत में सिंधिया फैक्टर भी कारण बना है।