देवी के रुष्ठ होने के डर से नहीं होता होलिका दहन, 100 साल में बच गए 1000 पेड़
सागर। सागर जिले के देवरी के आदिवासी बाहुल्य हाथखोय गांव में होलिका दहन नहीं होता। यहां के लोग पीढिय़ों से यही सुनते आ रहे हैं कि बहुत पहले गांव में होलिका दहन का प्रयास किया था, लेकिन एक दिन पहले ही गांव में भीषण अग्निकांड हो गया। इस अग्निकांड को गांव के लोग आदिवासियों की कुलदेवी झारखंडन माता का प्रकोप मानते हैं।
इसके बाद से कभी होली जलाने की किसी ने कोशिश भी नहीं की। गांव में झारखंडन माता का प्राचीन मंदिर हैं। मान्यता है कि होलिका दहन और भूतप्रेत भगाने के लिए गांव में किसी भी तरह के टोने-टोटके करने से देवी रुष्ठ हो जाएंगी। इस अंधविश्वास के चलते हाथखोय गांव में पिछले 100 साल में 1 हजार हरे पेड़ कटने से बच गए। करीब 1 लाख कंडों का ईंधन भी बच गया।
होलिका दहन पर आसपास के तीन गांवों में जाते हैं लोग
1000 की आबादी और 60-70 परिवारों के हाथखोय गांव के लोग धुरेड़ी अपने गांव में ही मनाते हैं लेकिन होलिका दहन के लिए आसपास के गोपालपुरा, चिरचिटा गांवा में जाते हैं। आदिवासी, लोधी व सेन इन तीन जातियों के लोग यहां निवास करते हैं। गांव में कई बुजुर्ग लोग हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी इसी परंपरा का निर्वाहन करते आ रहे हैं। गांव के कंपोटर सेन बताते हैं कि बुजुर्गों से सुना है कि कभी इस गांव में होली नहीं जली। कई साल पहले होलिका दहन की तैयारी के बीच ही गांव में आग लग गई थी। गांव के लोगों ने झारखंडन माता के यहां जाकर गुहार लगाई तब आग बुझी थी। इसके बाद से होलिका दहन के बारे में कोई सोचता भी नहीं है।
देवी की गांव पर कृपा इसलिए यहां नहीं होते टोने-टोटके
उप सरपंच कोमल ठाकुर बताते हैं कि यहां सदियों से होली नहीं जली। हथखोय गांव में विराजमान मां झारखंडन के प्रति यहां के लोगों की अटूट आस्था है। वे गांव के लोगों की रक्षा करती हैं। गांव पर कोई बाधा नहीं आने देती। उनके यहां विराजमान रहते गांव में होलिका दहन या फिर हांका (बुरी आत्माओं से रक्षा के लिए किया जाने वाला एक प्रकार का टोना-टोटका) नहीं होता।
पहले काट देते हैं हरे पेड़ ताकि होली तक सूख जाएं
आमतौर पर गांवों में होली से कुछ दिन पहले जंगल व आसपास लगे हरे पेड़ काटकर सूखने के लिए डाल दिए जाते हैं। होलिका दहन पर काटे गए इन्हीं पेड़ की लकड़ी और सूखी झाडिय़ां के साथ कंडों का इस्तेमाल होता है। एक अनुमान के मुताबिक होलिका दहन में 8 क्विंटल लकड़ी और 1000 कंडों का उपयोग होता है। जंगलों में लगे छोटे बड़े 8-10 पेड़ एक होली दहन पर भेंट चढ़ जाते हैं।
सागर
एक गांव में अंधविश्वास से सुरक्षित है हरियाली
- 17 Mar 2022