ग्वालियर। दुनिया में चंबल नदी को पहचान दिलाने वाले घडिय़ाल अब दूसरा घर (सेकंड होम) तलाश रहे हैं। 1978 में बने 435 किलोमीटर के राष्ट्रीय चंबल घडिय़ाल अभयारण्य में इसी साल फरवरी में 2176 घडिय़ाल गिने गए हैं। चंबल में घडिय़ालों की ये आबादी सर्वाधिक है। यहां पिछले एक साल में 317 घडिय़ाल बढ़े हैं। यही वजह ये है कि अब घडिय़ाल चंबल में मिलने वाली सहायक नदियों को अपना नया ठिकाना बना रहे हैं। इसकी पुष्टि मद्रास क्रोकोडाइल बैंक ट्रस्ट (एमसीबीटी) की ओर से किए जा रहे रिसर्च में हुई है। पिछले दो साल में चंबल से माइग्रेट कर वीरपुर के पास से कूनो नदी के अपस्ट्रीम में 60 किमी तक यात्रा कर पहुंची मादा घडिय़ाल ने यहां अंडे दिए हैं। कूनो में इस मादा का परिवार सुरक्षित है। इनका रहवास बनने के कारण कूनो में 50 छोटे घडिय़ाल भी छोड़े गए हैं। इसी तरह श्योपुर जिले की सीमा में चंबल में मिलने वाली पार्वती नदी में भी 20 से ज्यादा घडिय़ाल देखे गए हैं। इन घडिय़ालों ने यहां स्थायी घर बना लिया है। जलीय जीवों के मूवमेंट और गतिविधियों पर नजर रखने के लिए विशेषज्ञ रेडियो टेलीमेटरी ट्रांसमीटर का सहारा ले रहे हैं। चंबल नदी में 20 और कूनो में 5 घडिय़ालों की पूंछ पर ये ट्रांसमीटर फिट किया गया है। ट्रांसमीटर के जरिए मिलने वाले सिग्नल को ट्रेस करने पर ही मद्रास क्रोकोडाइल बैंक ट्रस्ट के प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर जेलाब्दीन को ये पता चला कि घडिय़ालों ने कूनो और पार्वती के रहवास को भी एडॉप्ट कर लिया है।
ग्वालियर
एक साल में 317 घडिय़ाल बढ़े
- 12 Jul 2021