भोपाल। मध्यप्रदेश के मंदिरों में शिव तो एक है, लेकिन इनके नाम अलग-अलग हैं। अधिकांश के नामकरण के पीछे रोचक किस्से भी हैं। कुछ के नाम मान्यताओं की वजह से पड़े, तो कुछ के पीछे घटनाएं जिम्मेदार रहीं। महाशिवरात्रि पर प्रदेश के ऐसे ही 6 शिव मंदिरों के बारे में हम आपको बता रहे हैं, जिनके नामकरण के पीछे रोचक किस्से हैं। जानते हैं इनके बारे मेंज्
सागर में हैं चोरेश्वर महादेव
चोरेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी यशोवर्धन चौबे बताते हैं कि सरस्वती मंदिर से करीब 200 मीटर दूर स्थित रिंगे बाड़ा में वामनराव रिंगे, सुधाकर आठले, यशवंत राव आठले के परिवार रहते थे। बाड़े में भोलेनाथ का निजी मंदिर था। सन् 1961-62 भोलेनाथ को बाहर लाकर स्थापना करने का विचार रखा गया। इसके बाद भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा की चोरी करने की योजना बनाई गई। खास बात थी कि प्रतिमा चोरी करने से पहले वामनराव रिंगे और अन्य परिवार की सहमति ली गई। इसके बाद रातोंरात भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा की चोरी की गई। जिस स्थान पर सरस्वती मंदिर बना है, वहां वट वृक्ष लगाकर भोलेनाथ की स्थापना की गई। तभी से भोलेनाथ का नाम चोरेश्वर महादेव पड़ा।
भिंड का बोरेश्वर महादेव- भूतों ने बनाया था मंदिर
भिंड के अटेर के बोरेश्वर गांव में स्थित मंदिर का नाम गांव के नाम पर बोरेश्वर महादेव पड़ गया। यह जिले का सबसे बड़ा शिवलिंग है। यहां प्रसाद के साथ चावल चढ़ाने का रिवाज है। मान्यता है कि इस शिवलिंग को आज तक कोई भी श्रद्धालु चावलों से नहीं ढंक सका है। वहीं, मंदिर के बारे में किवदंती है कि इस मंदिर को एक रात में भूतों ने बनाया था। जिला पुरातत्व विभाग के अनुसार इसका निर्माण 10वीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहार और गुप्त राजवंश ने कराया था। शिव मंदिर की ऊंचाई 125 मीटर है, जो कोणीय आकार का है।
जमीन के अंदर मिले, तो नाम पड़ा पातालेश्वर
छिंदवाड़ा में भगवान शिव पातालेश्वर रूप में विराजे हैं। यहां भगवान भोलेनाथ जमीनी सतह से करीब 8 से 10 फीट नीचे हैं। मंदिर का इतिहास करीब 250 साल पुराना है। यह स्थान नागा साधुओं की तपोस्थली भी माना जाता है। मान्यता है कि सैकड़ों वर्षों पहले यहां नागा साधु तप करते थे। उन्हें अहसास हुआ कि जमीन के अंदर भगवान शिव का लिंग है। खुदाई करने पर जमीन के अंदर से शिवलिंग मिला। इसके बाद से मंदिर का नाम पातालेश्वर धाम पड़ गया।
सिंदूर चढ़ाने से तिलक सिंदूर कहलाए
सतपुड़ा के जंगलों से लगे पहाड़ों में एक शिवालय ऐसा भी है, जहां शिवजी को सिंदूर चढ़ाने की परंपरा है। इसी परंपरा के कारण मंदिर का नाम तिलक सिंदूर पड़ गया। यहां आदिवासी समाज के भोमा पूजन करते हैं। किवदंती है कि जब शिवजी के पीछे भस्मासुर पड़ गया था, तो वे छिपने के लिए सतपुड़ा की पहाडिय़ों में ही शरण ले रहे थे। तिलक सिंदूर भी उन्हीं में से एक स्थान है। इसके अलावा, शिवजी को जटाशंकर में भी छिपना पड़ गया था। माना जाता है कि तिलक सिंदूर से पचमढ़ी तक सुरंग भी बनाई गई थी। मान्यताओं के मुताबिक यह सुरंग आज भी यहां मौजूद है, जो पचमढ़ी में निकलती है। शिवजी इसी रास्ते से पचमढ़ी गए थे।
इलाके में बाघ घूमते थे, इसलिए कहलाए बागेश्वर
जिला मुख्यालय से 60 किमी दूर चांचौड़ा के बीच जंगल में यह मंदिर स्थित है। इलाके में काफी मात्रा में बाघ पाए जाते थे। इस कारण इस मंदिर का नाम बाघ बागेश्वर पड़ गया। शुरुआत में छोटा सा शिवलिंग दिखता था, लेकिन जैसे-जैसे खुदाई की गई। इसके बाद यह बड़ा होता चला गया। गहराई तक खुदाई करने के बाद भी अंत नहीं दिखा। अब यह शिवलिंग अष्टकोणीय मूर्ति के रूप में मंदिर में विराजमान है। एक किवदंती यह भी है कि राजा विक्रमादित्य केवल दो ही शिवलिंग की पूजा करते थे। पहला, उज्जैन के महाकालेश्वर और दूसरे चांचौड़ा के इस मंदिर में।
1001 छिद्रों वाला महामृत्युंजय शिव मंदिर
रीवा के किले में महामृत्युंजय शिव मंदिर है। शिवलिंग की खासियत है कि यह महामृत्युंजय रूप में स्थापित है। अर्थात 1001 छिद्रों वाला शिवलिंग है। वैसे तो यहां रोजाना श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, लेकिन हर सोमवार और अधिकमास में भगवान की झलक पाने के लिए भक्त खुद को नहीं रोक पाते। पुजारियों का दावा है कि रीवा जिले में दुनिया का एकमात्र शिव मंदिर है, जहां शिवजी की मृत्युंजय रूप में पूजा होती है। यहां विराजमान शिवलिंग की बनावट दूसरे शिवलिंगों से अलग है।
यहां शयन के लिए आते हैं शिव
12 ज्योतिर्लिंगों में चौथा स्थान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का है। नर्मदा किनारे ? आकार के पर्वत पर मंदिर के होने और शिवलिंग की ? आकृति के कारण इस ज्योतिर्लिंग को ओंकारेश्वर के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जहां भगवान भोलेनाथ तीन लोकों का भ्रमण कर रात्रि शयन करते हैं। वहीं माता पार्वती भी यहां विराजित हैं। यहां भोलेनाथ और मां पार्वती शयन से पूर्व चौसर-पांसे खेलते हैं। ओंकारेश्वर मंदिर मध्यप्रदेश के निमाड़ में स्थित है। यह खंडवा जिले के मांधाता में आता है और नर्मदा नदी के मध्य में ओंकार पर्वत पर है। यहां ? शब्द की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के श्रीमुख से हुई थी। इसलिए हर धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ? शब्द के साथ किया जाता है। तीर्थ यात्री सभी तीर्थों का जल लाकर ओंकारेश्वर में अर्पित करते हैं, तभी सारे तीर्थ पूर्ण माने जाते हैं। ओंकारेश्वर की महिमा का उल्लेख पुराणों में स्कंद पुराण, शिवपुराण व वायुपुराण में किया जाता है। हिंदुओं में सभी तीर्थों के दर्शन के बाद ओंकारेश्वर के दर्शन व पूजन का विशेष महत्व है।
तीन लोक का भ्रमण कर रात्रि विश्राम करते महादेव
पुजारियों के अनुसार 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जहां महादेव शयन करने आते हैं। वे रोजाना तीन लोकों में भ्रमण के बाद यहां आकर विश्राम करते हैं। भोलेनाथ के साथ यहां माता पार्वती भी रहती हैं। वे रोज रात्रि में यहां चौसर पांसे खेलते हैं। शयन आरती के बाद चौसर-पांसे की बिसात सजाई जाती है। रहस्य की बात यह है कि रात के समय गर्भगृह में कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता, लेकिन जब सुबह देखते हैं, तो वहां पांसे उल्टे मिलते हैं, इसके बारे में कोई नहीं जानता।
मंदिर पांच मंजिला, शिखर से दूर ज्योतिर्लिंग
ओंकारेश्वर मंदिर एक पांच मंजिला इमारत है। यह एक ही शिखर के नीचे स्थित है। पहली मंजिल पर महाप्रसादी वाले भाग में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है। दूसरी मंजिल में भगवान महाकालेश्वर, तीसरी मंजिल पर भगवान परमेश्वर सिद्धनाथ, चौथी पर भगवान भुवनेश्वर (गुप्तेश्वर) और पांचवी मंजिल पर ध्वजेश्वर (राजेश्वर) महादेव विराजमान हैं। पहली मंजिल को छोड़ शेष चारों मंदिर में भगवान भोलेनाथ मुख्य शिखर के नीचे है। नर्मदा के दोनों दक्षिणी और उत्तरी तटों पर मंदिर है। पूरा परिक्रमा मार्ग मंदिरों और आश्रमों से भरा हुआ है।
ममलेश्वर को भी माना जाता है ज्योतिर्लिंग
ओंकारेश्वर और ममलेश्वर दोनों शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यानी एक ही ओंकारलिंग दो स्वरूपों में है। पार्थिवमूर्ति में जो ज्योति प्रतिष्ठित हुई थी, उसे परमेश्वर और ममलेश्वर कहते हैं। ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर को देवी अहिल्याबाई ने बनवाया था। गायकवाड़ राज्य की ओर से नियत किए हुए बहुत से ब्राह्मण यहीं पार्थिव-पूजन करते रहते हैं। ओंकार क्षेत्र में 68 तीर्थ हैं। यहां 33 कोटि देवता परिवार सहित निवास करते हैं और 2 ज्योतिस्वरूप लिंगों सहित 108 प्रभावशाली शिवलिंग हैं।
भोपाल
एमपी में शिव के अलग-अलग नाम- कहीं बाघ थे, तो बाघेश्वर हुए, जमीन के अंदर मिलने से पातालेश्वर कहलाए; एक नाम चोरेश्वर महादेव भी
- 01 Mar 2022