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चिंतन और संवाद

OSHOकहिन : तुमने किसी को ....

  • 31 Jan 2021

तुमने किसी को प्रेम किया, फिर क्या तुम यह कहते हो कि इतना प्रेम किया, हाथ कुछ नहीं लगा? प्रेम में तो मिल गई संपदा। अब और फल क्या चाहिए? जिसने प्रेम किया उसने पा ही लिया—प्रेम में ही पा लिया। प्रेम कोई बाजार तो नहीं है कि धंधा किया, फिर लाभ हुआ; लाभ पीछे हुआ। यह प्रेम का फल तो इसमें ही छिपा है। प्रेम स्वयं अपना फल है।
तुम्हारी पूजा प्रेम—शून्य रही, नहीं तो तुम यह सोचते ही नहीं कि हाथ कुछ न लगा। पूजा लग गई, नाचे, गाये, मग्न हुए—सब मिल गया, आकाश टूट पड़ा।
फल की आकांक्षा लोभ से पैदा होती है, और पूजा लोभ से पैदा नहीं हो सकती। इसलिए फलाकांक्षी कभी पूजा नहीं कर सकता, ध्यान नहीं कर सकता। फलाकांक्षी चूकता ही चला जाता है; उसकी फलाकांक्षा ही बाधा है। वह हमेशा पूछता है : इससे मिलेगा क्या? जीवन में कुछ चीजें ऐसी हैं जिनसे अगर तुमने पूछा कि फल क्या होगा, कि तुम चूके। गुलाब खिला, सुंदर है बहुत, सुबह की अभी ताजी—ताजी बूंदें उस पर चमकती हैं सूरज की किरणों में; और तुम पूछने लगे : हां, ठीक है, सुंदर है, मगर सौंदर्य का लाभ क्या है? तो तुम चूके, वंचित रहे काव्य से। वह जो काव्य झर रहा था गुलाब के उस फूल के आस—पास, अदृश्य, वे जो अदृश्य परीलोक से उतर रही थीं सुंदरियां फूल की पंखडियों पर, तुम उनके प्रति अंधे हो गए। तुमने पूछा, लाभ क्या है? चांद निकला, सुंदर था बहुत, और तुमने पूछा, लाभ क्या है? तुम दुकान छोड़ते ही नहीं; तुम मंदिर में भी दुकान नहीं छोडते!
तुम पूछते हो :
हाथ कुछ भी न आया।
इससे इतना ही पता चलता है कि पूजा का तुम्हें पता ही न चला, हाथ कैसे कुछ आता? पूजा मिली तो सब मिला। भक्तों ने तो भक्ति में इतना पा लिया, फिर बैकुंठ भी नहीं मांगा। कहा. सम्हालों अपना बैकुंठ। हमें तो तुम्हारा पूजन, तुम्हारा अर्चन काफी है। हम तो तुम्हारे गीत गाते रहें, इतना पर्याप्त, यही हमारा स्वर्ग।
कहते हो :
तीर्थ व्रत यात्रा कर चुका हूं पर निष्फल।
वह फल तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ता।
क्या मैं ऐसे ही अकारथ जीऊंगा अकारथ ही मर जाऊंगा?
यह फलाकांक्षा रही तो अकारथ ही जीओगे, अकारथ ही मरोगे। बहुत बार जीये हो, बहुत बार मरे हो। यह कोई तुम्हारी नई आदत नहीं, यह पुरानी तुम्हारी परंपरा है। सदियों—सदियों पुरानी है। यही तुम्हारा अतीत है।
लेकिन अभी भी कुछ हो सकता है। बात बदली जा सकती है। बिगड़ी बात बन सकती है।
नई पूजा सीखो, नया अर्चन सीखो, नई थाप दो ढोलक पर। यह तार टूट गया, इस तार को फिर जमाओ। भूल पूजा की न थी, भूल तुम्हारी थी। भूल अपान की न थी, तुम्हें नाचना ही न आया, और तुम समझे कि आंगन टेढ़ा है। अभी सब संवर सकता है, अभी फिर सब ठीक हो सकता है। अभी कुछ बिगड़ नहीं गया है, कभी कुछ बिगड़ नहीं गया है। जब भी घर लौट आए तभी समझना कि सबेरा है। देर—अबेर सही। अब तुम पुराने पूजा के ढांचे को छोड़ो।
और फिर मैं यह भी नहीं कहता कि ईश्वर को मानो। ईश्वर को मानने की कोई जरूरत ही नहीं है। मानोगे तो कैसे मान पाओगे? लेकिन चांद—तारे बहुत हैं नाचने के लिए। ईश्वर को बीच में लाओ भी क्यों? वृक्षों की हरियाली बहुत है नाचने के लिए। आकाश से उतरती सूरज की रोशनी बहुत है। ईश्वर को बीच में लाओ ही मत। मंदिरों में जाओ क्यों? सृष्टि काफी है। इससे सुंदर मंदिर और बन भी कैसे पाएंगे। नाचना सीखो, गुनगुनाना सीखो। एक खुमार टूट गया, टूट जाने दो—आंख को नया खुमार चाहिए! यहां हम खुमारी ही बांट रहे हैं। यह एक मधुशाला है, यहां थोड़ा पीयो!
और अगर तुम चांद—तारों के नीचे नाच सको, और सागर की उत्ताल तरंगों के साथ उन्मत्त हो सको, और वृक्षों के साथ हवाओं में डोल सको, तुम परमात्मा को पा लोगे, क्योंकि परमात्मा यहीं कहीं छिपा है—इसी हरियाली में, इन्हीं फूलों में, इन्हीं तारों में, इन्हीं चट्टानों की ओट में।
जीसस ने कहा है : उठाओ पत्थर को और उसके नीचे छुपा तुम मुझे पाओगे। तोड़ो इस लकड़ी को और इसके भीतर बसा तुम मुझे पाओगे।