Highlights

देश / विदेश

कोरोना : लापरवाह सिस्टम, कई राज्यों में बेकार पड़े हैं प्राणरक्षक वेंटिलेटर

  • 11 May 2021

नई दिल्ली. कोरोना वायरस की इस ताज़ा लहर ने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है. देश के अलग-अलग राज्यों में अभी जितनी मौत कोरोना से हो रही हैं, उसमें एक बड़ा हिस्सा महामारी से लड़ने में नाकामयाब सरकारी प्रबंधन, सरकारी अस्पतालों की फेल व्यवस्था और कोरोना से बचाव में मृत सरकारी इच्छाशक्ति के कारण है.
आम लोगों के प्राण कोरोना तब छीन ले रहा है, जब उन जिंदगियों को बचाने वाले वेंटिलेटर कमरों में बंद पड़े हैं, धूल खा रहे हैं. देश के अलग-अलग राज्यों से जो सच्चाई निकलकर सामने आई है, आप भी उससे रू-ब-रू होइए... 
बिहार...
बिहार इस वक्त कोरोना संकट की दूसरी लहर का सामना कर रहा है, यहां पर मरीजों के लिए हालात किस तरह के हैं, उसे समझने के लिए बिहार की राजधानी पटना से छह घंटे की दूरी पर मौजूद अररिया के सरकारी सदर अस्पताल का हाल जानिए. यहां अस्पताल के कमरा नंबर 76 पर ताला लटका है, जब ताला खुलता है तो पता लगता है करीब 6 वेंटिलेटर यहां पर पड़े हुए हैं. 
इस वक्त सांसों के लिए तरसते कोरोना के मरीजों के लिए वेंटिलेटर किसी चमत्कार से कम नहीं है, लेकिन बिहार के इस अस्पताल में ये सभी धूल खा रहे हैं. सिर्फ यहां कमरे में ही नहीं, बल्कि अस्पताल के शौचालय के पास भी बिना इस्तेमाल किए गए वेंटिलेटर पड़े हैं. यहां के सिविल सर्जन डॉ. एमपी गुप्ता के मुताबिक, अभी अस्पताल में कोई लैब टेक्निशियन या एनस्थिसिया देने वाला नहीं है. इन वेंटिलेटर को चलाने वालों के लिए विज्ञापन निकाले गए हैं. 
सिर्फ अररिया ही नहीं, बल्कि बिहार के सुपौल का भी यही हाल है. यहां के सरकारी अस्पताल की बिल्डिंग पर शीशे लगे हैं, लेकिन अंदर कुछ व्यवस्था नहीं है. यहां वेंटिलेटर का इस्तेमाल ही नहीं हो रहा है, हालात तो ये हैं कि नए वेंटिलेटर से पैकिंग की पॉलिथीन तक नहीं उतारी गई है, वहीं मरीजों के इस्तेमाल में आने वाले बेड्स भी खराब पड़े हैं. यहां के डॉक्टर का भी वही जवाब है कि स्टाफ की कमी है. 
महाराष्ट्र...
बिहार से अलग अगर महाराष्ट्र का रुख करें, जो इस वक्त कोरोना की मार झेलने वाला सबसे प्रभावित राज्य है. यहां पर भी वही हाल है, जिस वेंटिलेटर के लिए लोग दर-दर भटक रहे हैं, वही यहां नासिक के अस्पताल में धूल फांक रहा है. नासिक म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन को पीएम केयर्स फंड से 60 वेंटिलेटर मिलते हैं, लेकिन हफ्ते भर बाद भी नासिक में वेंटिलेटर किसी काम के नहीं है. दावा है कि वेंटिलेटर के आधे अधूरे पार्ट ही मिले हैं.
नासिक नगर निगम के कमिश्नर कैलाश जाधव के मुताबिक, जिस कंपनी ने वेंटिलेटर दिए हैं, उसी कंपनी को वेंटिलेटर के सभी उपकरण जोड़कर चलवाना है. कंपनी ने पहले तो सिर्फ वेंटिलेटर बॉक्स भेजे लेकिन उसके कनेक्टर नहीं भेजे, जब से यह वेंटिलेटर आए हैं उस दिन से कंपनी को ईमेल कर रहे हैं, फोन कर रहे हैं, लेकिन उनके पास टेक्निशियन की कमी है. 
झारखंड...
कोरोना की मार झेल रहे झारखंड का हाल भी कुछ अलग नहीं है. यहां दावा है कि जनता की जान बचाने के लिए दिए गए 38 में से 35 वेंटिलेटर खराब पड़े हैं. ऐसे में आम मरीजों को सुविधाओं के लिए भटकना पड़ रहा है. 
राजस्थान...
राजस्थान के भरतपुर की कहानी भी कुछ यही है. यहां के जिंदल हॉस्पिटल में जो वेंटिलेटर हैं, ये सरकारी वेंटिलेटर हैं. लेकिन आरोप है कि प्राइवेट अस्पताल कई गुना दाम ले रहे हैं और तब इलाज कर रहे हैं. यहां बात ये भी सामने आई है कि पीएम केयर्स फंड से जितने वेंटिलेटर भरतपुर में सरकारी प्रशासन को जनता के जीवन की रक्षा के लिए दिए, उतने प्वाइंट ही लगाकर चलाने की व्यवस्था सरकारी सिस्टम नहीं कर सका.
भरतपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के मुताबिक, पीएम केयर फंड से जिला अस्पताल में 40 वेंटिलेटर आए हुए हैं, जिसमें से 19 वेंटिलेटर का उपयोग किया जा रहा है. बाकी इसलिए इस्तेमाल में नहीं आ रहे हैं, क्योंकि ऑक्सीजन प्वाइंट की कमी है. 
उत्तर प्रदेश...
बता दें कि वेंटिलेटर एक ऐसी मशीन है जो किसी मरीज़ की सांस लेने में मदद करती है. ये फेफड़ों में ऑक्सीजन डालती है और कार्बन डाई-ऑक्साइड निकालती है. लेकिन उन्हीं मरीजों को उत्तर प्रदेश के इटावा में भी कैसे लंबे वक्त तक सांस लेने के लिए तरसाया गया, यहां की हकीकत जानने पर आपको पता लगेगा. 
इटावा के सरकारी अस्पताल में बने कोविड सेंटर में कुल 18 वेंटिलेटर हैं. लेकिन इस्तेमाल नहीं हो रहे हैं. वो भी तब जब इटावा में जहां रोज 200 से ज्यादा मरीज की जान कोरोना के कारण खतरे में पड़ रही है. जब खबर को प्रमुखता से दिखाया गया, तब जाकर सरकारी अस्पताल ने वेंटिलेटर को इंस्टाल करवाया और उसका उपयोग करना शुरू किया.
ये तो देश के चंद राज्यों का हाल है, लेकिन हालात हर जगह ऐसे ही हैं. कई राज्यों में संसाधन की कमी हो, तो कुछ राज्यों में संसाधन हैं और उसका इस्तेमाल करने वाला कोई नहीं है. लेकिन दोनों ही जगह एक बात जो कॉमन है वो ये कि आम आदमी इलाज के लिए तरस रहा है. कोरोना जो सबकी जान लेने पर तुला हुआ है, उससे लड़ने के लिए हर कोई कोशिश कर रहा है, लेकिन सिस्टम उसे हर बार फेल कर दे रहा है.
credit- aajtak.in