नई दिल्ली. कोरोना महामारी का प्रकोप बढ़ने के बावजूद कृषि कानून वापसी की मांग को लेकर दिल्ली बार्डर पर धरना दे रहे किसानों के तेवर बरकरार हैं. तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन बुधवार को 180 दिन यानी छह महीने पूरे हो रहे हैं. इस दौरान किसान संगठन और मोदी सरकार के बीच 11 बार बातचीत हुई, लेकिन वो भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंची. आंदोलन के छह महीने पूरे होने पर किसान संगठन 26 मई को काला दिवस मना रहे हैं.
बता दें कि केंद्र सरका द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ 26 नवंबर 2020 से दिल्ली की सीमा पर किसानों का आंदोलन शुरू हुआ था. पंजाब और हरियाणा के बाद उत्तर प्रदेश के किसानों के सीमाओं पर पहुंचने के बाद आंदोलन ने शुरुआती दौर में रफ्तार पकड़ ली. मांगें पूरी होने तक घर न लौटने के फैसले पर अडिग किसानों को सीमाओं से बुराड़ी ग्राउंड पर प्रदर्शन के लिए जगह की सिफारिश की गई, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया था.
आंदोलन को तितर-बितर करने की कोशिश
आंदोलनकारी किसानों को तितर-बितर करने के लिए 27 नवंबर को सिंघु बॉर्डर पर आंसू गैस के गोले छोड़ गए, लेकिन विरोध के स्वर और तेज होने लगे. 27 नवंबर को उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में किसान गाजीपुर बॉर्डर पहुंचे, जिसकी अगुवाई भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत और नरेश टिकैत कर रहे थे. पश्चिम यूपी के किसानों ने यहां अपना डेरा जमा दिया, जहां तमाम किसान संगठन भी जुड़ गए.
आखिरकार एक दिसंबर को केंद्र सरकार ने किसानों को पहले दौर की बातचीत के लिए बुलाया, जो बेनतीजा रही. इससे पहले पंजाब में विरोध के दौरान ही 14 अक्तूबर, 2020 को किसानों और सरकार की पहली बार वार्ता हुई थी. तीसरी बैठक तीन दिसंबर को हुई, लेकिन बेनतीजा रही. इसके बाद पांच दिसंबर को किसानों के साथ केंद्र सरकार की चौथे दौर की बैठक हुई. आठ दिसंबर को पांचवीं वार्ता हुई, इसी दिन किसानों ने भारत बंद का आह्वान किया था.
30 दिसंबर को छठे दौर, चार जनवरी को सातवें दौर की जबकि आठ जनवरी को आठवें दौर की किसानों और सरकार के बीच वार्ता हुई. 15 जनवरी को नौवीं बार सरकार के साथ वार्ता हुई. 20 जनवरी को 10वें दौर की वार्ता हुई, जिसमें सरकार ने कृषि कानूनों को डेढ़ से दो साल के लिए निलंबित करने और कानूनों पर विचार करने के लिए समिति के गठन का सुझाव दिया. हालांकि, किसानों ने इसे खारिज कर दिया. इसके बाद 22 जनवरी, 2021 को किसानों और सरकार के बीच 11वें दौर की वार्ता हुई.
26 जनवरी को बिगड़ा माहौल
केंद्र की मोदी सरकार के साथ 11 दौर की वार्ता के सफल न होने पर किसान संगठन ने 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकालने की चेतावनी दी. गणतंत्र दिवस के दिन बड़ी संख्या में ट्रैक्टर-ट्रॉली पर पहुंचकर किसानों ने विरोध जताया, जिसे कभी नहीं भूला जा सकता. जब पूरी दिल्ली में किसानों के हजारों ट्रैक्टर दौड़े थे. इससे पहले भी दिसंबर और जनवरी में किसानों की भीड़ हजारों की संख्या में यूपी गेट पर जमी रही.
किसान संगठनों ने दिल्ली में 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली के लिए पुलिस से इजाजत मांगी. दिल्ली पुलिस और किसान संगठनों के बीच हुई वार्ता में आउटर रिंग रोड पर रैली निकालने की अनुमति मिली. पुलिस ने टैक्ट्रर रैली के लिए बाहरी दिल्ली के रूट तय किए, लेकिन आंदोलनकारियों में से कुछ लोग उग्र हो गए. दिल्ली के आईटीओ, लालकिला, नांगलोई समेत दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में हुई हिंसा और उपद्रव हुआ. इस दौरान लाल किले पर धार्मिक झंडा भी फहराया गया, जिसे लेकर काफी विवाद हुआ.
राकेश टिकैत के आंसुओं से मिली आंदोलन को धार
26 जनवरी की घटना के बाद किसान आंदोलन में यू-टर्न आया. उपद्रवियों के खिलाफ मामले दर्ज होने के बाद गिरफ्तारियां भी हुईं. 26 जनवरी को हुए उपद्रव के बाद दिल्ली पुलिस ने 59 मामले दर्ज, 158 किसान गिरफ्तार किए गए. घटना के बाद आंदोलन से कई किसान संगठनों ने 27 जनवरी को अपने आपको अलग कर लिया, जिसमें किसान नेता वीएम सिंह भी शामिल थे.
वहीं, भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख नरेश टिकैत ने भी आंदोलन को समाप्त करने का मन बना लिया था, लेकिन 28 जनवरी की शाम होते-होते पूरा माहौल ही बदल गया. राकेश टिकैत की आंख से निकले आंसुओं ने आंदोलन को दोबारा से जिंदा कर दिया. इसके बाद किसान आंदोलन ने दिल्ली की सीमा तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि तमाम राज्यों में पहुंच गया. बड़ी संख्या में राकेश टिकैत के समर्थन में लोग गाजीपुर बॉर्डर पहुंचने लगे और पांच किलोमीटर तक तंबू लगा दिए गए.
credit- aajtak.in