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कहां है हेलमेट शहर के सिर पर...?

  • 25 Jul 2023

(शहर नामा )
हमारा शहर एक विचित्र... तथा ऐतिहासिक शहर है... पूरे देश में सफाई के मामले में... पहले नंबर पर आ रहा है... इसके कारण पूरे देश के... छोटे बड़े शहर इंदौर से ईर्ष्या भाव भी... महसूस कर रहे हैं... हालांकि कई जगह सफाई की स्थिति... बद से बदतर भी है... परंतु जो है वह ही सही है... सफाई में नंबर वन पूरे देश में लगातार बना हुआ है... ! 
राजनीति और सरकार के लिए यह शहर... हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है... शासन के प्रशासन के...समन्वय या असहमति के दौर भी चलते रहे हैं... यहां बड़े से बड़े अधिकारी आते हैं... फिर अपनी ढफली पर अपना राग अलापते हैं... या तो थक हार कर... या राजनीति का शिकार होकर... वे चले जाते हैं...। समय के गरत में समाहित हो जाते हैं...इस शहर में कई अफसर आए... जिन्होंने हमारे शहर में अनेक योजनाओं के साथ-साथ... हेलमेट योजना भी अनिवार्य की... और कुछ दिन ढपली भी बजी... राग भी निकला... किंतु योजना अन्य योजनाओं की तरह... धरी की धरी रह गई... ? पर हमारा शहर का बाशिंदा...नहीं सुधरा तो नहीं ही सुधरा... हेलमेट नहीं लगाया तो नहीं ही लगाया... ! एक या 2% हर बार प्रभावित हुए... कुछ ने हेलमेट सुरक्षा के लिए नहीं... चालान से बचने के लिए अपनाया... ! शहर की फिजा में अब फिर... हेलमेट... हेलमेट की आवाज आ रही है... ! परंतु यह भी विचारणीय है कि... क्या हमारा शहर इस तरह के हालात में है... की यहां पर हेलमेट पहनकर... सुरक्षित रहा जा सके... अगर हम बात करें चौराहे पर सिग्नल की...तो एबी रोड पर ही... एक या 2 किलोमीटर के बीच... तीन - तीन या चार -चार सिग्नल पॉइंट है... फिर ट्राफिक इतना अस्त-व्यस्त है कि... गाड़ी की स्पीड कितनी हो सकती है... जब बार-बार गाड़ी को रोकना है... ट्राफिक रेंगता है... और पुलिस चालान में व्यस्त होती है... पुलिस प्रशासन का यह फरमान की... हेलमेट नहीं पहनने वालों को घर भेजा जाएगा... और भेजा भी गया... ऐसा समाचार पत्रों में छपा... परंतु कितनों को...? यह भी बड़ा प्रश्न है... ?और उससे क्या होता है... ? 
पुलिस प्रशासन बैठी रहे... चौराहे चौराहे पर हम निकल जाते हैं... गली गली से... शहर मैं कितनी योजनाएं बनी... और वह सब धरी की धरी रह गई... ! 
हेलमेट योजना को ही ले लो... परंतु कहा जाता है... प्रशासन चाहे तो क्या संभव नहीं है... हेलमेट योजना तो कुछ भी नहीं... परंतु यह संभव है अफसर चाहे तब...? शेष फिर ...!
एल एन उग्र
स्वतंत्र लेखक