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भोपाल

गुजरात की जीत से उत्साह ...  अब भाजपा को मप्र, छग और राजस्थान से ऐसी ही उम्मीद

  • 10 Dec 2022

भोपाल। गुजरात विधानसभा चुनाव में जीत के बाद भाजपा जहां पूरी से उत्साहित हैं, वहीं अब आन ेवाले समय में होने वाले राज्यों के चुनावों में भी ऐसी ही उम्मीद है। दरअसल आदिवासी वोट बैंक ने करवट ली तो एसटी वर्ग के लिए आरक्षित 90 प्रतिशत सीटें भाजपा की झोली में आ गईं। आमतौर पर आदिवासी वोट बैंक का रुझान एक जैसा ही रहता है इसलिए भाजपा को अगले वर्ष होने वाले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और कर्नाटक के चुनाव से भी ऐसी ही उम्मीद है।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में 2018 में भाजपा की हार की बड़ी वजह आदिवासी सीटों पर मिली पराजय भी मानी जाती है। ऐसे में गुजरात ने उम्मीदों को मजबूत किया है। वर्ष 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में जब आदिवासी वोट कांग्रेस के साथ गया था तो वहां की 27 एसटी आरक्षित सीटों में से कांग्रेस को 15 सीटें मिली थीं और भाजपा को नौ। यही मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में वर्ष 2018 के चुनाव में देखने को मिला। गुजरात में एसटी की सीटें कम होने पर भाजपा सत्ता बचाने में सफल रही थी जबकि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी थी। अब 2022 में गुजरात में विधानसभा चुनाव के परिणामों में आदिवासी वोटों ने करवट ली तो परिणाम पलट गए। इस बार भाजपा को 23, कांग्रेस को मात्र तीन सीटें मिलीं, जबकि आम आदमी पार्टी को एक। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि यही रुझान अब मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकते हैं। साथ ही अब यह यात्रा झारखंड सहित लोकसभा चुनाव में भाजपा को बढ़त दिलाएगी। इन राज्यों में भी आदिवासी वोट भाजपा को जा सकता है। गौरतलब है कि मप्र में 21.10 प्रतिशत, गुजरात में 15 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 30.62 प्रतिशत और राजस्थान में 13.48 प्रतिशत आदिवासी जनसंख्या है। लोकसभा में भी आदिवासियों के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं।
असर डालेंगे गुजरात के परिणाम
मप्र से लगे दाहोद की सभी छह जनजातीय सीटें जीतकर भाजपा ने एक बड़ा इतिहास रच दिया है। नतीजे वहां से लगे झाबुआ-आलीराजपुर जिले की कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बजा चुके हैं। अगले साल मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना हैं। ऐसे समय में जनजातीय सीटों से आए परिणामों ने भाजपा को एक नई ऊर्जा दी है। स्थिति दाहोद जिले में हर सीट पर अलग-अलग थी, मगर विपक्षी वोट बिखरने के कारण चार सीट प्रबंधन से वहीं दो सीटों पर भाजपा ने एकतरफा जीत अर्जित कर ली। अब इन हवाओं का असर यहां की जनजातीय सीटों पर भी पड़े बगैर नहीं रहेगा। गुजरात में तो भाजपा का सिक्का 27 साल से चल रहा है लेकिन दाहोद जिले की जनजातीय सीटें उसके हाथ सौ फीसदी नहीं आ रही थीं। यह पहला मौका है जब मजबूत किले भी ढह गए। हालांकि इसकी मुख्य वजह आप की मौजूदगी बनी है। दिल्ली व पंजाब की तर्ज पर मतदाता का एक वर्ग उसे विकल्प के रूप में देख रहा था। इसके चलते कांग्रेस को जबर्दस्त नुकसान उठाना पड़ा।