सागर। हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में सोमवार को विश्वविद्यालय की 28वीं कार्य परिषद की बैठक हुई। इसमें रखे गए करीब डेढ़ दर्जन विषयों में सबसे महत्वपूर्ण था वर्ष 2013 में नियुक्त हुए शिक्षकों के नियमितीकरण का। इसी पर सबकी निगाहें थीं क्योंकि स्वीकृति से अधिक पद भरे जाने के कारण यह मामला सीबीआई तक पहुंचा। देशभर में चर्चित रहा। एफआईआर हुईं। हालांकि बैठक में कार्य परिषद सदस्यों के इनकार के बाद शिक्षकों का नियमितीकरण का मामला अगली बैठक तक के लिए टल गया।
कार्यपरिषद के जो एक्सटर्नल मेंबर थे, उन सभी ने नियमितीकरण पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई। उन्होंने कहा नियमितीकरण का मामला लंबे समय से अटका है। अनियमितता हुई हैं। भर्ती का मामला कोर्ट में भी है। इस मामले को अभी ईसी से पास कराना जल्दबाजी होगी। जल्दबाजी में गलती सुधारने में कहीं कोई और गलती न हो जाए। इससे विश्वविद्यालय को ही नुकसान होगा। इसे अगली बैठक में रखा जाए। ईसी सदस्य ने बैठक में जब पूछा कि क्या शिक्षकों का भर्ती मामला न्यायालय में भी चल रहा है? इस पर उन्हें बताया गया कि कोई मामला लंबित नहीं है।
हालांकि ईसी सदस्यों के पास पहले से ही तमाम दस्तावेज शिकायतकर्ताओं ने पहुंचा दिए थे। यही वजह रही कि उन्होंने इस मुद्दे पर तुरंत निर्णय लेने से इनकार कर दिया। हालांकि बैठक में इसके अलावा अन्य जो मुद्दे रखे गए, उन पर निर्णय लिए गए।
राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री को एक और शिकायत
डॉ. वेदप्रकाश दुबे ने ईसी की बैठक के बाद एक शिकायती पत्र राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालय में भेजा है। इसमें लिखा है कि 2013 में हुई शिक्षक भर्ती के संबंध में 2012 में जो विज्ञापन निकला था, उसको लेकर मेरी एक याचिका डब्ल्यूपी- 19508-2012 हाईकोर्ट जबलपुर में लंबित है। इसमें उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश में सारी नियुक्तियां प्राविधिक रखी गई हैं।
उन्होंने मांग की है कि न्यायालय का अंतिम निर्णय आने तक नियमितीकरण न किया जाए। वहीं बैठक के एक दिन पहले व्हिसल ब्लोअर अरविंद भट्ट ने भी राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री सहित कुलपति को पत्र भेजकर कहा था कि मामले में मेरी जनहित याचिका हाईकोर्ट में लंबित है। ऐसे में नियमितीकरण नहीं किया जाए।
यह है पूरा मामला
82 पद के विरुद्ध कर दी थी 157 नियुक्तियां, 7 विभाग के लिए पद ही नहीं निकले थे
विश्वविद्यालय में वर्ष-2013 में तत्कालीन कुलपति प्रो. एनएस गजभिए के कार्यकाल में शिक्षकों की नियुक्तियां की गई थीं। इनमें असिस्टेंट प्रोफेसर के 82 पद के लिए विज्ञापन निकला था। हालांकि रोस्टर 76 पद का ही डाला गया था। परंतु जब नियुक्तियां सार्वजनिक हुईं तो पता चला कि 157 पद पर नियुक्तियां कर ली गईं। रोस्टर का तो खुला उल्लंघन हुआ ही, स्वीकृति से दोगुने पद भर दिए गए। डॉ. अनिल किशोर पुरोहित ने आरटीआई से इसकी जानकारी निकाली। दैनिक भास्कर ने 7 जून 2013 को प्रकाशित 'आखिर कितने पद, कितनी भर्ती, कितने रिजर्वÓ खबर के माध्यम से इस घोटाले को उजागर किया था।
इसके बाद इसकी शिकायत प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तक से हुई। 30 मई 2014 को सीबीआई ने देशभर के 9 शहर में छापा मारते हुए इस मामले में एफआईआर दर्ज की। तत्कालीन कुलपति प्रो. गजभिए को गिरफ्तार कर जेल भी भेजा। कई सेवानिवृत्त एवं कार्यरत शिक्षकों पर भी एफआईआर हुई। 3 में चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी हैं। वर्तमान में करीब 101 असिस्टेंट प्रोफेसर ही कार्यरत हैं। अधिकांश नौकरी छोड़कर जा चुके हैं। शिक्षक भर्ती में न्यायालय के आदेशों का पालन नहीं करने को लेकर एक जनहित याचिका भी हाईकोर्ट जबलपुर में लंबित है।
सागर
चर्चित मामला:शिक्षकों का नियमितीकरण टला, ईसी सदस्य बोले- अनियमितता हुई है, जल्दबाजी न करें, गलतियां सुधारने में गलती दोहरा न जाए
- 15 Nov 2022