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जातिगत जनगणना की मांग फ़िर तेज़ क्यों …

  • 14 Aug 2021

यह साल 2021 है और इसी साल देशभर में राष्ट्रीय जनगणना होना प्रस्तावित है.
समय-समय पर देश में जातिगत जनगणना की मांग तेज होती है, लेकिन यह फिर मंद पड़ जाती है. इस बार भी जाति जनगणना को लेकर क्षेत्रीय पार्टियां मुखर होकर सामने आ रही हैं और सरकार पर दबाव बना रही हैं कि जातिगत जनगणना कराई जाए.
जाति आधारित जनगणना की मांग कोई नई नहीं है. हर बार ऐसी मांग उठती है और केंद्र इससे कन्नी काट लेता है. दरअसल कुछ लोग नहीं चाहते कि जमीनी हकीकत सबके सामने आए
जाति जनगणना को लेकर एक अहम सवाल यह भी खड़ा हुआ है कि आखिर जातियों की अलग से गणना की जरूरत ही क्यों हैं? इसका जवाब देते हुए वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश कहते हैं, ‘पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए उनकी सही गणना का पता चलना बहुत जरूरी है. ओबीसी समुदाय चाहता है कि एससी-एसटी की तर्ज पर उनकी भी अलग से जनगणना हो ताकि इससे संविधान के जरिये अफरमेटिव एक्शन (सकारात्मक कार्रवाई) सुनिश्चित की जा सके. इससे आरक्षण और अन्य सामाजिक योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचने लगेगा.’
सत्तासीन पार्टियों द्वारा जाति आधारित जनगणना के विरोध का एक पैटर्न देखने को मिलता है, जब भी वह पार्टी विपक्ष में होती है तो इसकी पैरवी करते दिखती है, लेकिन सत्ता में आते ही इससे दूर भागती है.
‘भारत का मीडिया भी इसका समर्थन करता है, क्योंकि यहां के मीडिया में भी ऊंची जातियों का प्रभुत्व है. मीडिया में 90 फीसदी से ज्यादा लोग ऊंची जातियों के होंगे. संपादकों में ऊंची जाति के लोग लगभग 100 फीसदी है. मीडिया भी इस मामले को जातिवादी ढंग से देखता है.’