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जानिए शुक्र ग्रह की रोचक जानकारियां

  • 18 May 2022

शुक्र ग्रह पर इसरो (इसरो) शुक्रयान भेजने वाला है इसकी घोषणा इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने कर दी है उन्होंने कहा कि इसरो नए तरीके से शुक्र ग्रह की स्टडी करेगा नई जानकारियां हासिल करेगा लेकिन उससे पहले आप शुक्र ग्रह के बारे में कुछ रोचक तथ्यों को जान लीजिए जो आपको हैरान कर देंगे 
सबसे पहले शुक्र ग्रह से जुड़ी गणित शुक्र ग्रह (शुक्र) की सूरज से दूरी करीब 10.82 करोड़ किलोमीटर है। इसका ध्रुवीय व्यास 12,014 किलोमीटर है। इसका कोई उपग्रह यानी चांद नहीं है। इसका एक साथ धरती के 224.7 से 243.02 दिन के बराबर होता है। इसका इक्वेटर यानी भूमध्य रेखा 38,025 किलोमीटर है। वजन 486,732 अरब-अरब किलोग्राम है। इसके कोर यानी केंद्र का व्यास 7000 किलोमीटर है, यानी धरती के कोर के व्यास 6970 किलोमीटर से ज्यादा शुक्र ग्रह अपने एक्सिस पर 2.64 डिग्री झुका है, जबकि धरती 23.5 डिग्री. 
सूर्य से दूरी के हिसाब से यह सौर मंडल का दूसरा ग्रह है। संरचनात्मक रूप से मिलता-जुलता होने की वजह से इसे धरती का जुड़वा ग्रह भी कहा जाता है। यह सौर मंडल का सबसे गर्म ग्रह भी है। यहां पर तापमान 425 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जो लेड को पिघलाने के लिए काफी है। 
शुक्र ग्रह तक सूरज की रोशनी पहुंचने में करीब 6 मिनट लगते है।ं हैरानी की बात ये है कि यह सौर मंडल का इकलौता ऐसा ग्रह है जो सूरज के चारों तरफ सबसे ज्यादा गोलाकर कक्षा में चक्कर लगाता है। यहां पर कोई मौसम नहीं है, क्योंकि यह अपने एक्सिस पर सिर्फ 2.64 डिग्री झुका है। 
शुक्र ग्रह (शुक्र) पर पहाड़, घाटियां, सैकड़ों ज्वालामुखी मौजूद है। सौर मंडल में शुक्र ग्रह इकलौता ऐसा ग्रह है। जिसके पास सबसे ज्यादा ज्वालामुखी हैं हालांकि इसमें से कई अभी शांत हैं। इस ग्रह पर सबसे ऊंचा पहाड़ मैक्सवेल मॉन्टस  है। यह करीब 8.8 किलोमीटर ऊंचा है। धरती के माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई के लगभग बराबर।  
शुक्र ग्रह पर वायुमंडल काफी सघन और विषाक्त है, जिसमें मुख्य रूप से कार्बन डाइआॅक्साइड गैस और सल्फ्यूरिक एसिड के बादल हैं। शुक्र ग्रह पर लगातार रनवे ग्रीन हाउस इफेक्ट दिखता है। यानी तापमान 471 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। रनवे ग्रीन हाउस इफेक्ट तब होता है, जब कोई ग्रह सूर्य से अधिक ऊर्जा खुद में छिपा ले फिर उसे अंतरिक्ष में वापस भेजे
सौर मंडल में सिर्फ दो ही ग्रह हैं जो पूर्व से पश्चिम की ओर घूमते हैं, पहला शुक्र ग्रह और दूसरा यूरेनस शुक्र के पास अपनी कोई रिंग्स नहीं हैं। शुक्र ग्रह की चुंबकीय शक्ति धरती की तुलना में बहुत कम है। शुक्र और धरती, दोनों ग्रहों पर क्रेटर कम हैं और घनत्व तथा रासायनिक संरचना समान है।
शुक्र ग्रह पर सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों की मोटी परत है। यानी कई किलोमीटर लंबी-चौड़ी ये सतह को पूरी तरह से ढंक लेती हैं। इस वजह से शुक्र ग्रह की सतह दिखाई नहीं देती। इन बादलों के बीच 350 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से तेज हवाएं चलती हैं यानी हवा तो है लेकिन वो जहरीली है।
शुक्र ग्रह (शुक्र) का वायुमंडलीय दबाव धरती के वायुमंडलीय दबाव से 92 गुना ज्यादा है। इतना ज्यादा दबाव धरती पर समुद्र की सतह से एक किलोमीटर नीचे महसूस होता है। 2006 में यूरोपियन स्पेस एजेंसी के शुक्र एक्सप्रेस स्पेस शटल ने 1000 से ज्यादा ज्वालामुखियों की खोज की थी। कुछ ओर स्पेस शटल से मिले आंकड़े बताते हैं कि शुक्र की सतह का ज्यादातर हिस्सा लावा से ढंका हुआ है।
शुक्र पर छोटे-छोटे गड्ढ़े यानी क्रेटर नहीं हैं। इसके पीछे की वजह वैज्ञानिक बताते हैं कि उल्कापिंड शुक्र की सतह से टकराने के पहले ही उसके एसिडिक वायुमंडल में जल जाती हों हालांकि, शुक्र ग्रह पर कई जगह एकसाथ गड्ढे मिले हैं, यानी कोई बड़ी उल्का सतह से टकराने से पहले कई छोटे टुकड़ों में बंट गई हो।
अब तक शुक्र ग्रह पर 20 से ज्यादा अंतरिक्ष यान भेजे जा चुके हैं। रूस ने 1961 में वेनेरा-1 मिशन भेजने की कोशिश की थी रास्ते में संपर्क टूटने से मिशन फेल हो गया। फिर अमेरिका का मैरीनर-1 भी शुक्र तक पहुंचने में असफल रहा, लेकिन मैरिनर-2 सफल रहा, जिसने शुक्र से जुड़ी की जानकारियां दीं। इसके बाद सोवियत संघ ने वेनेरा-3 यान भेजा जो शुक्र की सतह पर पहुंचने वाला पहला मानव-निर्मित यान बना।
पहले ग्रीक और रोमन लोग शुक्र को दो ग्रह मानते थे। ग्रीक लोग सुबह दिखने वाले तारे को फॉस्फोरस और रात को दिखने वाले को होस्पोरस कहते थे। रोमन इसी तरह लूसीफर और वेस्पर कहते थे। बाद में पता चला कि यह दो नहीं एक ही ग्रह है। इसके बाद शुक्र को रात में सबसे ज्यादा चमकते हुए पाया इसी कारण इसे सुंदरता और प्यार की देवी वीनस से जोड़ दिया गया।
साभार आज तक