भोपाल। श्रीमद्भागवत गीता साधारण पुस्तक नहीं है। यह मां की तरह है। जैसे मां हाथ पकडऩे के बाद कभी बच्चे को गिरने नहीं देती। इसी तरह श्रीमद्भागवत गीता की शरण में आने के बाद व्यक्ति का कभी पतन नहीं हो सकता। हमेशा उत्थान ही होता है। श्रीमद्भागवत गीता आनंदमय जीवन जीने का साध्य है। इसका पाठ करने से हमारे अंदर विराजमान परमात्मा से हमारा साक्षात्कार होने लगता है। गीता व्रती होने से जीवन का आनंदमय होना निश्चित है।
यह सद्विचार गीता परिवार समूह के विद्वान श्रीनिवास वारेनकर ने गुरुवार को सेंट्रल जेल भोपाल में हुए आनलाइन कार्यक्रम आनंदोत्सव में व्यक्त किए। यह कार्यक्रम गीता परिवार द्वारा 24 अगस्त से सेंट्रल जेल के बंदियों के लिए वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से चल रहे गीता ज्ञान प्रशिक्षण शिविर के समापन अवसर पर आयोजित किया गया था। इस शिविर में 82 बंदियों ने भाग लिया। कार्यक्रम में गीता परिवार के कार्यक्रम समन्वयक उमेश शर्मा, कविता तापडिय़ा, दीपक गुप्ता, श्रद्धा दीदी, अंशु गर्ग के अलावा राज्य मानव अधिकार आयोग के सदस्य मनोहर ममतानी, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पूर्व सदस्य दिनेश नाइक, जेल अधीक्षक दिनेश नरगावे भी आनलाइन शामिल हुए।
गीता परिवार के उमेश शर्मा ने कहा कि शीघ्र ही महिला बंदियों के लिए भी प्रशिक्षण शिविर की शुरुआत की जाएगी। आयोग के सदस्य मनोहर ममतानी ने इस पहल को बंदियों के जीवन में बदलाव लाने का सराहनीय प्रयास बताया। जेल अधीक्षक दिनेश नरगावे ने बताया कि जेल में गायत्री शक्तिपीठ द्वारा पुरुष एवं महिला बंदियों को पुरोहिताई का प्रशिक्षण दिया गया है। प्रशिक्षित होने के बाद बंदी गृह प्रवेश, सत्यनारायण की कथा जैसे अनुष्ठान संपन्न कराने में दक्ष हो चुके हैं। जेल में धार्मिक साहित्य की लायब्रेरी स्थापित करने का भी विचार किया जा रहा है। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन से की गई। इस अवसर पर बंदियों द्वारा मां सरस्वती एवं भगवान गणेश की संस्कृत में वंदना प्रस्तुत की गई।
भोपाल
जेल में बंदियों ने गीता ज्ञान के जरिए लिया सन्मार्ग पर चलने का सबक
- 23 Sep 2022