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खरगोन

टैक्स की मार से चार साल में आधा रह गया कपास गठान का व्यवसाय

  • 30 Aug 2022

खरगोन। प्रदेश में निमाड़ क्षेत्र की पहचान 'सफेद सोनाÓ अर्थात कपास से होती है। प्रदेश में कपास के कुल रकबे का 60 प्रतिशत से अधिक निमाड़ के चार जिलों खरगोन, खंडवा, बड़वानी व बुरहानपुर में है। इसमें अकेले खरगोन जिले की सवा दो लाख हैक्टेयर में कपास बोया जाता है, लेकिन प्रदेश में कपास उद्योग को प्रश्रय न मिलने से यहां से बड़ी मात्रा में कच्चा कपास पड़ोसी प्रदेशों को जा रहा है।
इसके पीछे सबसे बड़ा कारण अधिक मंडी टैक्स है। मप्र में 1.50 रुपए प्रति किलो (150 रुपए प्रति क्विंटल) मंडी टैक्स व 20 पैसे प्रति किलो (20 रुपए प्रति क्विंटल) निराश्रित टैक्स प्रतिकिलो अर्थात कुल 170 रुपए प्रति क्विंटल टैक्स लगता है, जबकि पड़ोसी प्रदेशों महाराष्ट्र व गुजरात में टैक्स 50 रुपए प्रति क्विंटल ही लगता है।
जिला मुख्यालय पर कपास उद्योगों में 4 साल पहले करीब 4.30 लाख गठानें बनती थी, यह संख्या अब घटकर लगभग 2.35 लाख पर आ गई है। जिले से अधिकांश कपास महाराष्ट्र व गुजरात जा रहा है। वहीं अधिक टैक्स होने के बावजूद प्रदेश में कपास उद्योग को कोई अतिरिक्त सुविधा भी नहीं मिल रही है। इससे मंडी शुल्क के रूप में मिलने वाले राजस्व का भी नुकसान है।
कपास उत्पादन व गठान का गणित
जिले में करीब सवा दो लाख हैक्टेयर में कपास की फसल लगाई जाती है। गत वर्ष करीब इतनी ही गठानें बनी कपास उद्योगों में। एक गठान का वजन 170 किलो होता है, जो कि करीब 5 क्विंटल कच्चे कपास से तैयार होती है। प्रति हैक्टेयर कपास का औसत उत्पादन 12 से 15 क्विंटल होता है। इस हिसाब से जितने कपास से यहां गठानें बन रही हैं, इससे लगभग दोगुना कच्चा कपास यहां से बाहर जा रहा है।
राजस्व का भी नुकसान
मप्र में टैक्स अधिक होने से आधे से अधिक कच्चा कपास महाराष्ट्र व गुजरात जा रहा है। इससे शासन के राजस्व का भी नुकसान हो रहा है। साथ ही स्थानीय कपास उद्योग भी खतरे में है। चार साल में कपास गठानों का कारोबार लगभग आधा हो गया है। वहीं अधिक टैक्स लिए जाने के बावजूद कोई अतिरिक्त सुविधा नहीं मिल रही है। टैक्सटाईल पार्क बनता है तो कपास उद्योगों को संजीवनी मिल सकती है।Ó
- कैलाश अग्रवाल, प्रदेश अध्यक्ष मप्र एसोसिएशन ऑफ कॉटन प्रोसेसर्स एंड ट्रेडर्स