( जन्म- 29 नवंबर, 1869, ज़िला भावनगर, गुजरात; मृत्यु- 20 जनवरी, 1951)
अपने सेवा कार्यों के लिये प्रसिद्ध थे। उनकी सेवा-भावना का स्मरण करके ही डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था- "जब-जब नि:स्वार्थ सेवकों की याद आएगी, ठक्कर बाप्पा की मूर्ती आंखों के सामने आकर खड़ी हो जायेगी।" देश की स्वाधीनता के बाद ठक्कर बाप्पा कुछ समय तक संसद के भी सदस्य रहे थे। ठक्कर बाप्पा का जन्म 29 नवंबर, 1869 ई. को आज़ादी से पूर्व काठियावाड़ के भावनगर नामक स्थान पर हुआ था। उनका मूल नाम अमृतलाल ठक्कर था। बाद में सेवा-कार्य में प्रसिद्धि के बाद ही वे ठक्कर बाप्पा कहलाए। उनके पिता विट्ठलदास लालजी ठक्कर साधारण स्थिति के व्यक्ति थे। पर ठक्कर बाप्पा के ही नहीं, पूरे समाज के बच्चों की शिक्षा की ओर उनका विशेष ध्यान था। पिता की सेवावृत्ति का प्रभाव ठक्कर बाप्प के जीवन पर भी पड़ा था। उस समय समाज में छुआछूत कलंक बुरी तरह से फैला हुआ था। ठक्कर के अंदर इसके प्रति विरोध का भाव बचपन से ही पैदा हो चुका था। ठक्कर बाप्पा ने छात्रवृत्ति मिलने पर पुणे से इंजीनियरिंग की परीक्षा पास की थी।
व्यक्तित्व विशेष
ठक्कर बाप्पा
- 29 Nov 2022