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व्यक्तित्व विशेष

डाक टिकटों में महात्मा गाँधी

  • 02 Oct 2021


विश्व पटल पर महात्मा गाँधी सिर्फ़ एक नाम नहीं अपितु शान्ति और अहिंसा का प्रतीक हैं। महात्मा गाँधी के पूर्व भी शान्ति और अहिंसा की अवधारणा फलित थी, परन्तु उन्होंने जिस प्रकार सत्याग्रह एवं शान्ति व अहिंसा के रास्तों पर चलते हुये अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया, उसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में देखने को नहीं मिलता। तभी तो गांधी की मृत्यु पर, प्रख्यात वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि- हज़ार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई इन्सान धरती पर कभी आया था। (आने वाली पीढ़ियाँ शायद ही इस बात का यकीन कर पाएँ कि कभी धरती पर गांधी जैसा कोई शख़्स भी पैदा हुआ था।) संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी वर्ष 2007 से गाँधी जयन्ती को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाये जाने की घोषणा की।महात्मा गाँधी दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय राजनेताओं और व्यक्तित्व में से हैं। यही कारण है कि प्राय: अधिकतर देशों ने उनके सम्मान में डाक-टिकट जारी किये हैं। देश विदेश के टिकटों में देखें तो गांधी का पूरा जीवन चरित्र पाया जा सकता है। सामान्यतः डाक टिकट एक छोटा सा काग़ज़ का टुकड़ा दिखता है, पर इसका महत्त्व और कीमत दोनों ही इससे काफ़ी ज़्यादा है। डाक टिकट वास्तव में एक नन्हा राजदूत है, जो विभिन्न देशों का भ्रमण करता है एवम् उन्हें अपनी सभ्यता, संस्कृति और विरासत से अवगत कराता है। यह किसी भी राष्ट्र के लोगों, उनकी आस्था व दर्शन, ऐतिहासिकता, संस्कृति, विरासत एवं उनकी आकांक्षाओं व आशाओं का प्रतीक है। ऐसे में डाक-टिकटों पर स्थान पाना गौरव की बात है। यह जानकर कोई आश्चर्य नहीं होगा कि डाक टिकटों की दुनिया में गांधी सबसे ज़्यादा दिखने वाले भारतीय हैं तथा भारत में सर्वाधिक बार डाक-टिकटों पर स्थान पाने वालों में गाँधी जी प्रथम हैं। यहाँ तक कि आज़ाद भारत में वे प्रथम व्यक्ति थे, जिन पर डाक टिकट जारी हुआ। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अहिंसा के बूते पर आजादी दिलाने में भले ही भारत के हीरो हैं लेकिन डाक टिकटों के मामले में वह विश्व के 104 देशों में सबसे बड़े हीरो हैं। विश्व में अकेले गांधी ही ऐसे लोकप्रिय नेता हैं जिन पर इतने अधिक डाक टिकट जारी होना एक रिकार्ड है। भारत में गांधी जी के डाक टिकट जारी होने से पहले 13 जनवरी 1948 से 18 जनवरी 1948 के बीच जिन दिनों गांधी दंगों को रोकने के लिए उपवास पर बैठे हुए थे, उन दिनों डाक व्यवस्था को प्रचार का माध्यम बना कर दिल्ली और कलकत्ता के डाकघरों से सांप्रदायिक दंगों को रोकने का संदेश मुहरों पर अंकित कर दिया जाने लगा था। बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत को ग़ुलामी के शिकंजे में कसने वाले ब्रिटेन ने जब पहली दफ़ा किसी महापुरुष पर डाक टिकट निकाला तो वह महात्मा गांधी ही थे। इससे पहले ब्रिटेन में डाक टिकट पर केवल राजा या रानी के ही चित्र छापे जाते थे। गांधी जी पर डाक टिकट जारी करने का फैसला सबसे पहले साल 1948 में लिया गया। बापू श्रृंखला के इन चारों डाक टिकटों को साल 2 अक्टूबर, 1949 में गांधी जी की 80वीं वर्षगांठ पर जारी करने का फैसला लिया गया था, हालांकि इन डाक टिकटों को जारी करने की योजना जनवरी से ही चल रही थी, जब गांधी जी जीवित थे। लेकिन इससे पहले कि टिकटें जारी हो पातीं, 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी जी की हत्या कर दी गई। तब इन टिकटों को गांधी जी को सम्मान देने के लिए चार विभिन्न दरों की मुद्राओं में विक्रय हेतु राष्ट्र की प्रथम स्वतंत्रता वर्षगाँठ पर 15 अगस्त, 1948 को जारी किया गया। इनके मूल्य डेढ़ आना, साढ़े तीन आना और 12 आना रखा गया था। इन टिकटों की ख़ास बात यह है कि बापू के हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में नाम लिखे हुए सिर्फ़ ये ही टिकट आज तक उपलब्ध हैं।

गांधी जी के साथ ‘बा’ यानी कस्तूरबा गांधी को भी उन डाक टिकटों में जगह दी गई है। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ही पहल करते हुए इन चारों डाक टिकटों पर बापू को डिज़ाइन का हिस्सा बनाया था। इस पूरे घटनाक्रम में दिलचस्प बात यह थी कि ज़िंदगी भर ‘स्वदेशी’ को तवज्जो देने वाले गांधी जी को सम्मानित करने के लिए जारी किए गए इन डाक टिकटों की छपाई स्विट्जरलैंड में हुई थी। इसके बाद से लेकर आज तक किसी भी भारतीय डाक टिकट की छपाई विदेश में नहीं हुई। इनमें से दस रुपए वाली टिकट आम व्यक्ति की पहुंच से बाहर थी। उस समय के गवर्नर जनरल के आदेश पर केवल सरकारी उपयोग के लिए इनमें से दस रुपए वाली टिकटों की सौ अतिरिक्त प्रतियां छापी गईं थी, जिन पर 'service' लिखा होता है। यह विश्व की बहुत दुर्लभ टिकटें हैं। इनमें से कुछ टिकटें कुछ गणमान्य व्यक्तियों को उपहार के रूप में दे दी गईं, और कुछ दिल्ली के 'राष्ट्रीय डाक टिकट संग्रहालय' को दे दी गईं। इनमें से अधिकतम आठ प्रतियाँ निजी हाथों में हैं, जिनके कारण वे बहुत दुर्लभ और कीमती हो गईं। इनमें से एक टिकट 5 अक्तूबर 2007 को स्विट्ज़रलैण्ड में डेविड फेल्डमैन कंपनी द्वारा की नीलामी में 38,000 यूरो में बिकी।

डाक-टिकट पर पहले गाँधी जी के लिए बापू शब्द का प्रयोग हुआ था, मगर बाद की टिकटों पर महात्मा गाँधी लिखा जाने लगा। कई देशों ने महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी, 125वीं जयंती व भारत की 50वीं स्वतंत्रता वर्षगाँठ पर कई प्रकार के अलग-अलग मूल्यों के डाक टिकट व डाक सामग्रियाँ समय–समय पर जारी की हैं। शांति के मसीहा व सहस्त्राब्दि के नायक के रूप में भी अनेक देशों ने, गांधी जी के चित्रों को आधार बनाकर डाक टिकट व अन्य डाक सामग्रियाँ जारी की हैं। कई देशों ने महात्मा गांधी पर डाक टिकट ही नहीं बल्कि मिनीएचर और सोविनियर शीट्स जारी की। आज इस बात की हैरानी है कि दुनिया के अधिकांश देशों ने बापू पर टिकट जारी कर उन्हें सम्मान दिया, लेकिन पाकिस्तान ने नहीं। शांति के इस दूत की उपेक्षा की ही शायद वजह है कि पाकिस्तान में कभी भी शांति बहाल नहीं हुई। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर सर्वाधिक डाक टिकट उनके जन्म शताब्दी वर्ष 1969 में जारी हुए थे। उस वर्ष विश्व के 35 देशों ने उन पर 70 से अधिक डाक टिकट जारी किए थे। लखनऊ फिलैटलिक क्लब के संस्थापक एवं सचिव एसएमए जैदी के मुताबिक़ बापू पर साउथ अफ्रीका ने सात, एसेडला ने नौ, भूटान ने 10, यूएसए व डोमिनिका ने छह-छह, ब्राजील, ग्रेट ब्रिटेन, सोमालिया व तनजानिया ने तीन-तीन, जर्मनी व जाम्बिया ने चार-चार और रूस ने दो डाक टिकट जारी किए। श्री जैदी ने बताया 104 देश गांधी जी पर 300 से अधिक डाक टिकट व स्पेशल कवर निकाल चुके हैं। भारत में गांधी जी पर 1948 में पाँच, 1969 में चार, 1973 में नेहरू जी के साथ, 1979 में एक बच्ची के साथ, 1980 में डांडी मार्च पर एक डाक टिकट जारी हुआ था। इसके बाद 1992 में भारत छोड़ो आंदोलन पर दो, 1995 में भारत-दक्षिण अफ्रीका पर दो, 1998 में महात्मा गांधी के 50वें निर्वाण दिवस पर चार और 2001 में महात्मा गांधी मिलिनियम पर दो डाक टिकट जारी किए गए। इनके अलावा अब तक 15 सामान्य डाक टिकट व 200 से अधिक विशेष आवरण भी जारी हो चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की 2007 में गांधी जी के जन्मदिन को प्रति वर्ष विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मनाए जाने का निर्णय भी अहम है। इसी कड़ी में अहिंसापेक्स-2, 2009 के मौके पर भी अर्न्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस से सम्बंधित स्पेशल कवर जीपीओ में सीपीएमजी कर्नल कमलेश चन्द्र, निदेशक सचिन किशोर व वीके दक्ष ने जारी किया। लखनऊ फिलैटलिक क्लब के प्रयास से पाँच रुपए की कीमत वाले इस स्पेशल कवर पर गांधी जी की फोटो के साथ राष्ट्रीय ध्वज को भी शामिल किया गया है। कवर पर सत्य अहिंसा के अनुयायी-महात्मा गांधी एवं राष्ट्रीय ध्वज भी छापा गया है।

सम्मान में जारी डाक टिकट भारतवर्ष से बाहर के देशों में लगभग 100 से भी अधिक ने गांधी जी के जीवन से जुडे विभिन्न पहलुओं को केंद्र में रखते हुए उनके जीवन पर आधारित विभिन्न डाक सामग्रियाँ व डाक–टिकट जारी किए हैं। इन देशों में विश्व के सभी महाद्वीपों के देश शामिल हैं। गाँधी जी के सम्मान में जारी विभिन्न देशों के डाक टिकट एशिया महाद्वीप में रूस (रशिया), कज़ाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, वियतनाम, बर्मा (वर्तमान म्यांमार), ईरान, भूटान, श्रीलंका, कज़ाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किरगीजिस्तान, यमन, सीरिया और साइप्रस जैसे देश इनमें प्रमुख हैं। यूरोपीय देशों में बेल्जियम, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, जर्मनी, जिब्राल्टर, ब्रिटेन (इंग्लैण्ड), यूनान, रोम, माल्टा, पौलेंड, रोमानिया, आयरलैंड, लक्ज़मबर्ग, ईज़डेल द्वीप समूह, मैकोडोनिया (मेसेडोनिया), सैन मरीनो और स्टाफ़ा स्कॉटलैंड के नाम प्रमुख हैं। अमरीकी देशों में संयुक्त राज्य अमरीका (यूनाइटेड स्टेट), ब्राजील, चिली, कोस्टारिका, क्यूबा, ग्रेनेडा, गुयाना, मैक्सिको, मोंटेसेरेट, पनामा, सूरीनाम, उरुग्वे, वेनेजुएला, ट्रिनिनाड (त्रिनिदाद) और टोबैगो, गैबॉन निकारागुआ, नेविस, डोमिनिका, एंटीगुआ और बारबुडा के नाम उल्लेखनीय हैं। अफ्रीकी देशों में बुर्कीना फासो कैमरून, चाड क़ामरूज, कांगो, मिश्र, गैबन, गांबिया, घाना, लाइबेरिया, मैडागास्कर, माली, मारिटैनिया, मॉरिशस, मोरक्को, मोजांबिक, नाइजर, सेनेगल, सिएरा लियोन, सोमालिया, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया, टोगो, यूगांडा और जांबिया के नाम प्रमुख हैं। आस्ट्रेलियाई देशों में ऑस्ट्रेलिया, पलाऊ, माइक्रोनेशिया और मार्शल द्वीप प्रमुख हैं। अतिरिक्त देशो में साईबेरिया, ग्रेनेडा, यूजेरिया, संयुक्त अरब गणराज्य, नाइजीरिया हैं।