देखो... आदमी अपने इष्ट के विरह में ज़ार ज़ार रोता है तब एक रसपूर्ण ध्यान पैदा होता है ...उसकी वृत्तियाँ कहीं भी नहीं जाएगी ....वो केवल एक ही सोच.... अब वो कहां होंगे ?....क्या करते होंगे ?.... उसने खाया होगा कि नहीं खाया होगा ?...उसकी सेहत ठीक होगी ?...
जैसे गोपियाँ ...ये गोपियों का प्रेम योग था ...
और ऐसे भीगे ध्यानी ....सूखे ध्यानी नहीं.... जिसकी आंख गीली हुई हो अपने इष्ट की याद में ...अपने परम की याद में .....
और वो ये भी नहीं सोचे कि वो हमें याद करता होगा कि नहीं ?....
मैं एक पंक्ति गाता रहता हूँ ....
तुम मुझे भूल भी जाओ ....
हे कृष्ण.... गोपियां कहती है....
ऐसी बातें कोई विशेष के पास करना प्लीज़.... विषयी के पास मत करना....
ठीक है ...साधक के पास करना ....
और साधक से भी कोई सिद्ध मिल जाए तो और खुलकर करना....
और सिद्ध से भी कोई शुद्ध मिल जाए तो तो नाचते हुए करना ....
राम कथा - मानस गुरुकुल HARIDWAR- UK
चिंतन और संवाद
तुम मुझे भूल भी जाओ
- 23 Apr 2022