शिमला। हिमाचल प्रदेश में सेब के दामों में भारी गिरावट से अरबों के कारोबार पर संकट पैदा हो गया है। बीते 15 दिनों के भीतर सेब के दाम 1000 से 1200 रुपये प्रति पेटी (25 से 30 किलो) तक गिर चुके हैं। मंडियों में रेट गिरने पर बागवान निजी कंपनियों से अच्छे रेट की उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन सेब खरीद करने वाली अडानी की कंपनी ने इस साल 10 साल पुराने रेट खोले हैं। 2011 में अडानी ने 65 रुपये प्रति किलो रेट पर सेब खरीद की थी। इस साल भी कंपनी करीब इसी रेट पर सेब खरीद शुरू करने जा रही है। इस साल प्रदेश में करीब साढ़े चार करोड़ पेटी सेब उत्पादन का अनुमान है। करीब 3 करोड़ पेटी सेब अभी मंडियों में जाना बाकी है। सरकार की ओर से भी कोई राहत न मिलने से बागवान निराश हैं।ओलावृष्टि और बेमौसम बर्फबारी के कारण इस साल फसल बुरी तरह प्रभावित हुई है।
सेब पर ओलों के दाग भी हैं, साइज भी अच्छा नहीं बन पाया। हालांकि विपरीत परिस्थितियों में भी कई बागवान गुणवत्तापूर्ण सेब उगा रहे हैं। बढ़िया गुणवत्ता वाला सेब इन दिनों मंडियों में प्रति पेटी औसतन 1500 रुपये तक बिक रहा है और अधिकतम 1800 रुपये से ऊपर बोली नहीं जा रही है। इसी सेब की कुछ अरसा पहले 3000 रुपये से भी ऊपर की बोली लग रही थी। कम गुणवत्ता वाले सेब को औसतन 500 से 800 रुपये रेट मिल रहे हैं। मार्केट में रेट गिरने और निजी कंपनियों के शोषण से आहत बागवान सेब के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने की मांग उठा रहे हैं। सेब बागवानों ने निजी कंपनियों के बहिष्कार के लिए सोशल मीडिया पर अभियान भी शुरू कर दिया है। सेब के रेट गिरने के बाद बागवानों ने दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में भी आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी है। बागवानों का कहना है कि सरकार ने निजी कंपनियों को करोड़ों रुपये अनुदान दिया है। बावजूद इसके कंपनियां बागवानों को राहत देने के स्थान पर शोषण करने पर उतारू हैं।