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भोपाल

निर्दलीयों ने बिगाड़ दिया गणित

  • 22 Jul 2022

 अब ये ही शहरों की सरकार तय करने में निभाएंगे महत्वपूर्ण भूमिका
भोपाल। भाजपा और कांग्रेस को उम्मीद नहीं थी कि नगरीय निकाय के चुनाव मैदान में उतरे निर्दलीय सारा गणित बिगाड़ देंगे। दरअसल चुनाव परिणाम आने के बाद 347 में से 27 निकाय ऐसे हैं, जहां किसका राज होगा, यह तय नहीं है। यही नहीं, कुल मिलाकर 105 शहरों में किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। यहां भाजपा-कांग्रेस को तीसरा मोर्चा या निर्दलीयों के साथ नगर पालिका अध्यक्ष, नगर परिषद अध्यक्ष या निगम अध्यक्ष बनाना पड़ेगा। कई जगह दोनों पार्टियों के पास बराबर पार्षद हैं या एक-दो का ही अंतर है। ऐसे में किंगमेकर बनाने में निर्दलीयों की अहम भूमिका होगी।
वोटिंग और काउंटिंग के बाद अब निकायों में अध्यक्ष चुने जाएंगे। इन्हें पार्षद मिलकर चुनेंगे। 105 शहर ऐसे हैं, जहां निर्दलीयों या तीसरे मोर्चे का सहारा लिए बिना न भाजपा अध्यक्ष बना सकती है, न कांग्रेस। कुछ ही दिन में नगरीय निकायों में वोटिंग होगी, जिस पार्टी के पास सबसे ज्यादा पार्षदों के वोट होंगे, उसका अध्यक्ष कुर्सी संभालेगा।
12 नगर पालिका ऐसी ही
सीहोर में आष्टा नगर पालिका, खरगोन में बड़वाह, छिंदवाड़ा में डोंगर परासिया, बालाघाट में बालाघाट व वारासिवनी, उज्जैन में महिदपुर, छतरपुर में नौगांव, दमोह नगर पालिका, अनूपपुर नगर पालिका, भिंड में भिंड व गोहद नगर पालिका व मुरैना में सबलगढ़ नगर पालिका में भी किसी को बहुमत नहीं मिला है।
89 नगर परिषद में भी यही हाल
प्रदेश के 255 नगर परिषदों में 89 में किसी को बहुमत नहीं मिला। 27 नगर परिषदों में तो भाजपा-कांग्रेस की तुलना में निर्दलियों और अन्य दलों के इतने पार्षद जीते हैं कि वे अकेले ही मिलकर अपना अध्यक्ष चुन सकते हैं। वहीं, शेष में भाजपा-कांग्रेस दोनों के पास मौका है कि वे निर्दलीयों और अन्य के सहयोग से अध्यक्ष बना सकते हैं।
राजगढ़ : दिग्विजय सिंह के गढ़ में पेंच
राजगढ़ पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है। बोड़ा व सुठालिया नगर परिषदों में किसी को भी बहुमत नहीं मिला है। दोनों ही परिषदों में बहुमत का आंकड़ा 8 सीटों का है। बीजेपी की कोशिश है कि अपना अध्यक्ष बनाकर राजगढ़ में पूर्व सीएम के वर्चस्व को कम किया जाए।
केपी यादव के इलाके में भी यही हाल
भाजपा सांसद केपी यादव और दिग्विजय सिंह का प्रभाव माना जाता है। यहां की कुंभराज नगर और मधुसूदनगढ़ में निर्दलीयों को बीजेपी-कांग्रेस अपने पाले में करने की जुगत में जुटे हैं।
अशोकनगर -मुंगावली सांसद केपी यादव का क्षेत्र है। यहां की मुंगावली व पिपरई में बहुमत के लिए क्रमश: 2 व 1 पार्षद की जरूरत है।
कमलनाथ के इलाके में भी दिलचस्प तस्वीर
पूर्व सीएम कमलनाथ का क्षेत्र है। यहां की डोंगर परासिया नगर पालिका में सबसे दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला रहा है। यहां बीजेपी-कांग्रेस के 1010 पार्षद जीते हैं। 1 निर्दलीय जिस तरफ जाएगा, उसका अध्यक्ष बनेगा।
सिवनी-विधायक मुनमुन राय का प्रभाव वाला क्षेत्र है। यहां की छपारा व बरघाट नगर परिषदों में बीजेपी बहुमत से दूर है, लेकिन निर्दलीयों के साथ वह अध्यक्ष बनाने की कोशिश में जुटी है।
बालाघाट-पूर्व मंत्री गौरीशंकर सिंह बिसेन का प्रभाव माना जाता है। यहां की बालाघाट नगर पालिका और कटंगी नगर परिषद में दोनों दलों में निर्दलीयों को रिझाने का क्रम जारी है। वारासिवनी में निर्दलीय अध्यक्ष बनाने की भूमिका में है। सभी निर्दलीय माइनिंग कार्पोरेशन के अध्यक्ष प्रदीप जायसवाल के करीबी बताए जाते हैं।
उज्जैन- ये भाजपा के प्रभाव वाला क्षेत्र है। पार्टी के कद्दावर पारस जैन का प्रभाव माना जाता है। यहां की महिदपुर नगर पालिका में बहुमत के लिए 10 पार्षदों की जरूरत है। भाजपा के 9, कांग्रेस के 8 व 1 निर्दलीय जीते हैं।
खरगोन- दंगा प्रभावित खरगोन की बड़वाह नगर पालिका में बीजेपी बहुमत (8) से एक सीट पीछे रह गई है। उसे सात सीटें ही मिली हैं। यहां 5 निर्दलीय जीते हैं। वहीं, कांग्रेस को 4 सीटें मिली हैं।
खंडवा- मंत्री विजय शाह का ये प्रभाव वाला जिला है। मूंदी नगर परिषद में बहुमत (8) के लिए बीजेपी को 1 सीट की दरकार है। यहां 2 निर्दलीय तय करेंगे, किसका अध्यक्ष बनेगा। कांग्रेस के 6 पार्षद जीते हैं।
नरसिंहपुर- केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल का गृहक्षेत्र है। उनके भाई जालम सिंह की राजनीतिक पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है। यहां की चिचली नगर परिषद में भाजपा-कांग्रेस के 7-7 पार्षद जीते हैं। 1 निर्दलीय जीता है। अब दोनों ही दल उसे अपने पाले में लाने को बेताब हैं।