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नवनिर्मित संसद भवन ः जन-गण-मन का प्रतीक

  • 07 Aug 2023

निर्माण पर पल-पल प्रधानमंत्री मोदी की निगाह 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं, "मैं अपने जीवन में वो क्षण कभी नहीं भूल सकता जब 2014 में पहली बार एक सांसद के तौर पर मुझे संसद भवन आने का अवसर मिला था। तब लोकतंत्र के इस मंदिर में कदम रखने से पहले, मैंने सिर झुकाकर, माथा टेककर लोकतंत्र के इस मंदिर को नमन किया था।” उनके इन शब्दों में लोकतंत्र के मंदिर के प्रति उनकी आस्था स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। ऐसे में जब आजाद भारत को अपना बनाया हुआ लोकतंत्र का मंदिर मिला, तो उनका उत्साह स्वाभाविक रुप से दिखा। प्रधानमंत्री मोदी ने नई संसद की रूपरेखा से लेकर शिलान्यास, निर्माण, साज-सज्जा, अत्याधुनिक सुविधाओं पर पल-पल अपनी निगाह बनाए रखी। अपने व्यस्ततम कार्यशैली में भी उन्होंने खुद निर्माण स्थल पर जाकर श्रमिकों का उत्साह बढ़ाया तो उनके सम्मान में नई संसद में कई नई पहल भी हुई हैं। 26 सितंबर 2021 को विदेश दौरे से लौटे प्रधानमंत्री मोदी ने देर शाम संसद भवन के निर्माण स्थल का औचक दौरा किया और एक घंटे से अधिक समय देकर निर्माण कार्य की समीक्षा की थी, ताकि समय पर काम को पूरा किया जा सके। उन्होंने श्रमिकों से बातचीत कर उनका हालचाल भी जाना । निर्माण में जुटे सभी श्रमिकों के लिए डिजिटल संग्रहालय स्थापित करने का निर्देश पीएम ने दिया, जिसमें श्रमिकों के नाम, स्थान का नाम, तस्वीर और व्यक्तिगत विवरण शामिल करना है। इसका उद्देश्य निर्माण कार्य में उनके योगदान को पहचान मिलनी चाहिए। सभी श्रमिकों को उनकी भूमिका और इस प्रयास में भागीदारी के बारे में एक प्रमाण पत्र देने का भी निर्देश दिया। संसद भवन के निर्माण के अंतिम चरण में भी प्रधानमंत्री मोदी ने 30 मार्च 2023 को दौरा किया। हर बारीकी का निरीक्षण कर उचित निर्देश भी दिए। प्रधानमंत्री मोदी ने श्रमिकों के साथ लगातार संवाद कर उनका हौसला बढ़ाया।
नई संसद भवन का निर्माण बेहद चुनौतीपूर्ण था। संसद की कार्यवाही को बाधित किए बिना पुरानी संसद के पास ही नई संसद का निर्माण सहज नहीं था क्योंकि पुरानी संसद को भी विरासत के रूप में संजोने की चुनौती थी।
नूतन - पुरातन के सह-अस्तित्व का उदाहरण वर्तमान संसद भवन ने आजादी के आंदोलन और फिर स्वतंत्र भारत को गढ़ने में अपनी अहम भूमिका निभाई है। आजाद भारत की पहली सरकार का गठन भी यहीं हुआ और पहली संसद भी यहीं बैठी। इसी संसद भवन में संविधान की रचना हुई, लोकतंत्र की पुनर्स्थापना हुई। बाबा साहेब अंबेडकर और अन्य वरिष्ठों ने संसद के केंद्रीय कक्ष में गहन मंथन के बाद देश को संविधान दिया। संसद की मौजूदा इमारत, स्वतंत्र भारत के हर उतार-चढ़ाव, हर चुनौती, समाधान, आशा, आकांक्षा और सफलता का प्रतीक रही है। इस भवन में बना प्रत्येक कानून, इन कानूनों के निर्माण के दौरान संसद भवन में कही गई अनेक गहरी बातें, ये सब हमारे लोकतंत्र की धरोहर है।
लेकिन संसद के शक्तिशाली इतिहास के साथ ही यथार्थ को स्वीकारना भी उतना ही आवश्यक है। यह इमारत अब करीब-करीब सौ साल की हो चुकी है। बीते दशकों में इसे तत्कालीन जरूरतों को देखते हुए निरंतर अपग्रेड किया गया। इस प्रक्रिया में कितनी ही बार दीवारों को तोड़ा गया। कभी नया साउंड सिस्टम, कभी फायर सेफ्टी सिस्टम, कभी आईटी सिस्टम। लोकसभा में बैठने की जगह बढ़ाने के लिए तो दीवारों को भी हटाया गया है। इतना कुछ होने के बाद संसद का यह भवन अब विश्राम मांग रहा था। बरसों से नए संसद भवन की जरूरत महसूस की जा रही थी। ऐसे में यह सभी का दायित्व बनता था कि 21वीं सदी के भारत को अब एक नया संसद भवन मिले। इसी दिशा में 28 मई 2023 की तारीख आत्मनिर्भर भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो चुकी है। जब नया भारत नए संसद भवन को आकार लेता देख रहा है तो वर्तमान संसद भवन परिसर के जीवन में नए वर्ष भी जोड़ रहा है।
पुराने संसद भवन ने स्वतंत्रता के बाद के भारत को दिशा दी तो नया भवन आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का साक्षी बनेगा । पुराने संसद भवन में देश की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए काम हुआ, तो नए भवन में 21वीं सदी के भारत की आकांक्षाएं पूरी की जाएंगी। आज इंडिया गेट के आगे नेशनल वॉर मेमोरियल ने राष्ट्रीय पहचान बनाई है, वैसे ही संसद का नया भवन अपनी पहचान स्थापित करेगा। देश के लोग, आने वाली पीढ़ियां नए भवन को देखकर गर्व करेंगी कि ये स्वतंत्र भारत में बना है, आजादी के 75 वर्ष का स्मरण करते हुए इसका निर्माण हुआ है।
-संकलनकर्ता
एल एन उग्र  
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