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गुना

पीएम आवास के पैसे लिए नहीं बनाया आवास

  • 03 Sep 2022

गुना।  देश में ऐसे कई जरूरतमंद लोग हैं, जो पीएम आवास के लिए भटक रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ पैसा मिलने के बाद भी कई हितग्राही आवास नहीं बना रहे। उन्होंने इन पैसों को दूसरे ही कामों में खर्च कर दिया। कई ऐसे हैं, जो आवास की किस्त लेकर दूसरे राज्यों में चले गए। कुछ शराब पी गए। जिले में ऐसे अधूरे पीएम आवास की लिस्ट बढ़ती जा रही है। कुछ मामले ऐसे हैं, जिनमें तीन वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन आवास नहीं बन पाया।
बता दें कि पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी पीएम  आवास योजना वर्ष 2016 में शुरू हुई थी। इसके तहत शहरी इलाकों में आवास बनाने के लिए 2.50 लाख रुपए (3 किस्तों में) और ग्रामीण इलाकों में 1.20 लाख रुपए (4 किश्तों में) दिए जाते हैं। ग्रामीण इलाकों में पहली किस्त 25 हजार रुपए की दी जाती है। इन्हीं पैसों में हितग्राही को मकान बनाना होता है। लगभग 280 स्क्वायर फीट का साइज तय किया जाता है। बिल्डिंग कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि इतनी साइज के मकान को बनाने में कम से कम 2.80 लाख रुपए खर्च होते हैं। मजदूरी और मटेरियल को मिलाकर इतनी राशि खर्च हो जाती है। इतने में भी एक कमरा, किचन, लेट-बाथ ही तैयार हो पाते हैं। केवल उनका ढांचा और छत ही बनाई जा सकती है। फिर रंगाई-पुताई, खिड़की-दरवाजे अगर लगाना है, तो उन पर अलग खर्च होता है।
एक लाभार्थी पति, पत्नी और अविवाहित बेटियां/बेटे हो सकते हैं। एक लाभार्थी के पास पक्का घर नहीं होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि घर उसके नाम पर या पूरे भारत में परिवार के किसी अन्य सदस्य के नाम पर नहीं होना चाहिए। किसी भी वयस्क को उसकी वैवाहिक स्थिति पर ध्यान दिए बिना पूरी तरह से एक अलग घर के रूप में माना जा सकता है।
ये आ रही समस्याएं
जिले में 3 हजार से ज्यादा पीएम आवास अधूरे पड़े हैं। जिनके पीछे कई कारण सामने आते हैं। पहला कारण बढ़ती हुई महंगाई है, जिसके कारण इतने कम पैसों में मकान बनाना संभव नहीं हो पाता है। दूसरा एक और जो कारण सामने आया है, वह अचंभित करने वाला है। हितग्राही के खाते में पैसा तो आ जाता है, लेकिन वह इस पैसे का उपयोग दूरी जगह कर लेते हैं। मकान बनाने की जगह वह दूसरे काम कर लेते हैं। कई मामले ऐसे सामने आए, जिनमें आवास बनाने के लिए मिले पैसों को हितग्राही ने गाड़ी, मोबाइल खरीदने में खर्च कर दिया। कोई पैसे लेकर दूसरे राज्य मजदूरी करने चला गया। अब कर्मचारी उसे तलाश रहे हैं, लेकिन वह मिल ही नहीं रहा। जानिए, कुछ ऐसे ही केसों के बारे में जहां हितग्राही ने पैसों को दूसरी जगह खर्च कर दिया।