भोपाल। मध्य प्रदेश की सियासत में नया मुद्दा सन्यास, सेहरा और 2018 बन गए हैं. मसला 2023 का चुनाव कमलनाथ के नेतृत्व में लडऩे का है. कांग्रेस पार्टी ये बड़ा फैसला कर चुकी है. बीजेपी इसका मजाक बना रही है क्योंकि कमलनाथ के पास अभी एक साथ दो पद हैं. तीसरी जिम्मेदारी यानि मुख्यमंत्री पद भी वो संभाल चुके हैं और अब अगला चुनाव भी उन्हीं के नेतृत्व में लड़े जाने का ऐलान हो गया है.
चार अप्रैल को भोपाल में हुई कांग्रेस की बड़ी बैठक में कमलनाथ के नेतृत्व में 2023 का चुनाव लडऩे का फैसला किया गया. इस पर प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने तंज कसा तो कांग्रेस ने भी पलटवार करने में देर नहीं लगाई. मिश्रा ने कहा था कि कमलनाथ को सन्यास की उम्र में सेहरा बांधा जा रहा है. एक ही व्यक्ति प्रदेश अध्यक्ष के पद पर भी रहेगा और वही नेता प्रतिपक्ष भी रहेगा. अब 2023 का चुनाव भी उन्हीं के नेतृत्व में लडऩे की बात हो रही है. नरोत्तम मिश्रा के इस बयान पर कांग्रेस के उपाध्यक्ष अशोक सिंह ने पलटवार करते हुए कहा- नरोत्तम मिश्रा दरअसल 2018 के नतीजों से डरे हुए हैं. तब कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनाई थी. कांग्रेस के किसी फैसले से आखिर नरोत्तम मिश्रा को पीड़ा क्यों हो रही है.
क्या है मामला ?
चार अप्रैल को पीसीसी चीफ कमलनाथ के बंगले पर कांग्रेस की एक अहम बैठक हुई थी. उसमें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस के सभी दिग्गज नेता शामिल हुए थे. बैठक में सर्वसम्मति से ये तय किया गया था कि 2023 का विधानसभा का चुनाव कमलनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. बैठक के इसी फैसले पर सन्यास, सेहरा और 2018 के नतीजों को लेकर सियासत हो रही है.
अटकलें जारी
सियासत से इतर कांग्रेस की बैठक को लेकर ये अटकलें भी चलती रहीं कि हो सकता है कमलनाथ पीसीसी चीफ और नेता प्रतिपक्ष में से किसी एक पद को छोड़ सकते हैं. हालांकि बैठक के दौरान ऐसा कुछ नहीं हुआ. मौजूदा वक्त में मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद कमलनाथ के पास है जबकि पीसीसी चीफ भी कमलनाथ ही हैं. 2018 में मुख्यमंत्री भी वही बने थे.
भोपाल
प्रदेश की सियासत में सन्यास, सेहरा और 2018 की भी एंट्री, नरोत्तम और कांग्रेस आमने-सामने
- 07 Apr 2022