बिकती है ना खुशी कहीं, ना कहीं गम बिकता है,
लोग गलतफ़हमी में हैं, कि शायद कहीं मरहम बिकता है,
इंसान ख़्वाहिशों से बंधा हुआ एक ज़िद्दी परिंदा है,
उम्मीदों से ही घायल है, उम्मीदों पर ही ज़िंदा है.
शब्द पुष्प
बिकती है ना खुशी कहीं...
- 03 Jul 2021
बिकती है ना खुशी कहीं, ना कहीं गम बिकता है,
लोग गलतफ़हमी में हैं, कि शायद कहीं मरहम बिकता है,
इंसान ख़्वाहिशों से बंधा हुआ एक ज़िद्दी परिंदा है,
उम्मीदों से ही घायल है, उम्मीदों पर ही ज़िंदा है.
© 2019, डिटेक्टिव ग्रुप रिपोर्ट | सर्वाधिकार सुरक्षित