अधिकतर समय किसी ना किसी स्क्रीन की संगत में रहना हमें इनसानी खुशियों से जुदा करता जा रहा है। बच्चों को बेचैन कर रहा है। संभले नहीं, तो जीवन पर इसकागहरा असर हो सकता है। गैजेट्स की स्क्रीन के असर और उस पर लगाम लगाने के तरीके बता रहे हैं डॉ. राहुल राय कक्कड़
कोच्चि में 10वीं का एक छात्र तब काफी आक्रामक हो गया, जब उसकी मां ने उससे मोबाइल छीन लिया, क्योंकि वह एक मिनट भी बिना मोबाइल के नहीं रह सकता था। उसने बाहरी लोगों से भी मिलना बंद कर दिया था। एक दूसरा हालिया मामला दिल्ली का है, जहां14 साल का एक लड़का ऑनलाइन गेम का इतना आदी हो चुका था कि उसने अपने परिवार के सदस्यों से बात करना बंद कर दिया था। कुछ महीने पहले तिरुवनंतपुरम में स्क्रीन-टाइम की लत का एक और मामला सामने आया था, जहां आत्महत्या करने वाला डिग्री कोर्स के प्रथम वर्ष का छात्र था। वह अवसाद में था और ऑनलाइन ना होने पर वह बेचैन रहने लगता था।
ये कुछ मामले हैं, जो बताने के लिए काफी हैं कि कैसे स्क्रीन टाइम की वजह से मानसिक संतुलन गड़बड़ा सकता है और युवाओं की मानसिक सेहत को अपना शिकार बना रहा है।
क्या बला है स्क्रीन टाइम
‘स्क्रीन टाइम’ एक स्क्रीन के सामने रहने की अवधि और उस अवधि में की जाने वाली गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जैसे टीवी देखना, कंप्यूटर पर काम करना या वीडियो गेम खेलना। स्क्रीन टाइम गतिहीन गतिविधि है, जिसका अर्थ है कि आप उस अवधि में शारीरिक रूप से निष्क्रिय रहते हैं।
हाल के कई शोधों ने अत्यधिक स्क्रीन टाइम को व्यवहार संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं से जोड़ा है, जिसके मुताबिक इंटरनेट कनेक्टिविटी और स्मार्टफोन के बिना कुछ देर रहने पर लोगों मेंचिड़चिड़ेपन की शिकायतों वाले मामलों में अचानक से वृद्धि हुई है। खराब एकाग्रता, ऑनलाइन शैक्षणिक कक्षाओं में अनुपस्थिति या नींद के चक्र में गड़बड़ी की शिकायतें इन दिनों आम हो चुकी हैं।
सहनशीलता कम कर रही ये लत
डब्ल्यूएचओ की मानें तो स्क्रीन की लत ने लोगों की शारीरिक गतिविधि और नींद की दिनचर्या को काफी कुछबदल दिया है, जिससे सिरदर्द, गर्दन में दर्द, मायोपिया, डिजिटल आई सिंड्रोम और हृदय संबंधी समस्याओं का जोखिम भी काफी बढ़ गया है। अब बच्चे ही नहीं बड़ों में भी अधीरता के मामलेबहुत बढ़ गए हैं। आप इसे ऐसे समझ सकते हैं, जैसे आप मोबाइल पर जो गेम खेलते हैं, उससे तुरंत संतुष्टि मिलती है। जैसे ही आप एक बटन दबाते हैं, आप जो चाहते हैं, वह हाजिर हो जाता है। धीरे-धीरे आपका मस्तिष्क इस तत्काल ‘उपहार’ को प्राप्त करने के लिए तैयार हो रहा है। इसी रवैये से हमारी सहनशीलता कम हो रही है।
इन लक्षणों पर जरूर करें गौर
बच्चों का स्क्रीन की लत से ग्रस्त होना उनके विकास पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। जैसे पहला है नोमोफोबिया। इसमें उनके लिए इंटरनेट की जरूरत बाकी सभी जरूरतों, जैसे दैनिक स्वच्छता, खाना-पीना, परिवार से बातें, आदि से भी बढ़कर हो जाती है। वयस्क भी इंटरनेट एडिक्शन के तहत स्क्रीन से भावनात्मक जुड़ाव विकसित कर लेते हैं, तो बच्चों के लिए तो बहुत मुमकिन है कि वे इस लत के कारण असल दुनिया से विमुख महसूस करें। बिना मोबाइल के बेचैन महसूस करना या तनाव में रहना, किसी चीज पर फोकस नहीं बना पाना, स्क्रीन टाइम सीमित करने में असहज महसूस करना... ये वो शुरुआती लक्षण हैं, जिससे पता चलता है कि व्यक्ति को स्क्रीन की लत हो चुकी है।
याददाश्त पर हो सकता है असर
कभी मोबाइल, कभी लैपटॉप, तो कभी टीवी... हर समय स्क्रीन से जुड़े रहने से नींद बाधित हो रही है। जबकि दिमाग को स्वस्थ रहने के लिए हमें गहरी नींद की जरूरत होती है, क्योंकि तभी आपका मस्तिष्क पुरानी जानकारी को काट-छांट कर नई जानकारी के लिए मस्तिष्क में जगह बनाता है। लेकिन नींद ना मिलने पर इस प्रक्रिया में बाधा आती है। इस प्रकार नई जानकारी को बनाए रखने और नई यादें बनाने की हमारी क्षमता में कमी आती है।
अगर संभले नहीं
● इससे सामाजिक और निजी जिंदगी प्रभावित हो सकती है।
● एंग्जायटी, डिप्रेशन, गुस्सा, एकाग्रता में कमी जैसी मानसिक समस्याएं आम बात हो सकती हैं। यह करियर और रिश्तों को प्रभावित कर सकता है।
● जरूरी कामों को टालने की आदत विकसित कर सकता है।
● लगातार बैठकर स्क्रीन को समय देने के कारण मोटापा, अनियमित रक्तचाप, हड्डियों की समस्या आदि का भी जोखिम बना रहता है। हाल के कुछ शोध में यह बात सामने आई भी है कि कैसे बड़ों से लेकर बच्चों में विटामिन डी की कमी हो रही है।
स्क्रीन टाइम के लिए बनाएं कुछ नियम
● कनाडा के हॉस्पिटल फॉर सिक चिल्ड्रेन के विशेषज्ञों द्वारा किए एक शोध में खुलासा हुआ है कि स्क्र ीन पर ज्यादा समय बिताने से बच्चों में डिप्रेशन और चिंता का खतरा पिछले कुछ महीनों में ज्यादा बढ़ा है। इसलिए अब सबके लिए जरूरी हो गया है स्क्रीन टाइम को मैनेज करना। बाहर की गतिविधियों से जुड़ कर इस समय को कम कर सकते हैं। दिन का एक निश्चित समय अलग रखें, जब बिना गैजेट्स के सब एक साथ बैठे हों।
● बच्चे के स्क्रीन टाइम को सीमित करने के लिए आपको भी उसके नियम मानने होंगे।
● बच्चों के साथ खुद भी खेलकूद में ज्यादा से ज्यादा दिलचस्पी लें।
(लेखक नारायणा सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल में कंसल्टेंट साइकाएट्रिस्ट हैं।)
साभार लाइव हिन्दुस्तान
Health is wealth
बच्चों के लिए क्या हैं स्क्रीन टाइम के नियम?
- 10 Jan 2022