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बड़वानी का राजघाट कुकरा बना टापू, 17 परिवार के 67 सदस्य फंसे

  • 04 Aug 2023

बड़वानी। प्रदेश के कई हिस्सों में बारिश का दौर जारी है। इसके चलते नर्मदा के जलस्तर में बढ़ोतरी हुई है। बड़वानी में नर्मदा नदी का जलस्तर 131.500 मीटर पहुंच चुका है। राजघाट कुकरा इलाका पूरी तरह टापू में तब्दील हो गया। इस टापू पर 17 परिवार के 67 सदस्य फंसे हुए हैं। इनके पास 60 मवेशी भी हैं। जब तक पानी कम नहीं होता है ये लोग यही फंसे रहेंगे। बीते 4 सालों से प्रशासन नाव की व्यवस्था करता आया था। इस बार ऐसा नहीं किया गया। ऐसे में यहां रह रहे लोगों का कहना है कि हमारे खेत पानी मं डूब चुके हैंं। मंदिर में भी पानी भरा है। अब इमरजेंसी में भगवान ही मालिक है।
जिला मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर दूर है कुकरा-
जिला मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर दूर नर्मदा नदी के किनारे पर कुकरा गांव है। सरदार सरोवर बांध से डूब प्रभावित होने के बावजूद गांव में 67 लोग रहते हैं। जबकि कई परिवार विस्थापित हो चुके हैं। यहां रह रहे कुछ परिवारों के बच्चे और महिलाएं बारिश के सीजन में चार माह के लिए बड़वानी चले जाते हैं। जो शहर का खर्च उठा पाने में सक्षम नहीं हैं, वे रिश्तेदारों के यहां डेरा डालते हैं।
गांव की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां सितंबर से जून तक कभी भी आया-जाया जा सकता है। पहली नजर में यह जगह किसी पर्यटन स्थल जैसी दिखती है, लेकिन जैसे ही जुलाई का महीना शुरू होता है, यहां मुश्किलें बढऩा शुरू हो जाती हैं। इसकी वजह यह है कि जैसे-जैसे नर्मदा का जलस्तर बढ़ता जाता है, बैक वाटर गांव के चारों तरफ फैल जाता है। अगर नर्मदा का जलस्तर 131 मीटर से अधिक पहुंच जाए तो गांव से चार किलोमीटर दूर तक पानी ही पानी होता है।
गांव के कनक सिंह और बहादुर सिंह ने बताया कि हम लोग बाढ़ के बावजूद बुजुर्गों और मवेशियों के साथ यहां रहने को मजबूर हैं ’ प्रशासन ने मुआवजे की राशि भी नहीं दी है और टीन शेड में रहने के लिए कहते हैं, जहां मवेशियों के साथ रहना असंभव है।
गांव की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां सितंबर से जून तक कभी भी आ-जा सकते हैं। यह जगह किसी पर्यटन स्थल जैसी दिखती है, लेकिन जुलाई के महीने से मुश्किलें बढ़ जाती हैं।
लोगों को आवाजाही के लिए नहीं मिली नाव-
नर्मदा तट राजघाट में टापू पर अब भी कुछ परिवार अपनी मांग-अधिकार के लिए डटे हुए हैं। गांव पूरी तरह टापू बन चुका है। इसके बावजूद ग्रामीण डूब को चुनौती देकर अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। प्रशासन ने आवाजाही के लिए इनको अभी तक नाव उपलब्ध नहीं कराई है।