भू बैकुंठ कहे जाने वाले और भारत के चार धामों में एक बदरीनाथ धाम मंदिर के कपाट गुरुवार को प्रात: 7 बजकर 10 मिनट पर परम्परा और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ खुल गए हैं। इस अवसर पर भारत के अलग-अलग क्षेत्रों से आए श्रद्धालु बारी-बारी से भगवान की एक झलक पाने के लिये दर्शन पर पर जुटे हैं। बदरीनाथ मंदिर भगवान विष्णु के रूप बदरीनाथ को समर्पित है। इसे बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है। अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में बदरीनाथ धाम स्थित है। इस धाम के बारे में कहा जाता है कि 'जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी' यानी जो व्यक्ति बदरीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे माता के उदर यानी गर्भ में फिर नहीं आना पड़ता है। कहते हैं कि हर व्यक्ति को जीवन में एक बार बदरीनाथ के दर्शन अवश्य करने चाहिए।
भगवान शिव से मांग लिया था निवास-
शास्त्रों में बदरीनाथ को दूसरा बैकुण्ठ बताया है। एक बैकुण्ठ क्षीर सागर है जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं। दूसरा भगवान विष्णु का निवास बदरीनाथ बताया गया है। इस धाम के बारे में कहा जाता है कि यह कभी भगवान शिव का निवास स्थान था लेकिन भगवान विष्णु ने इसे भगवान शिव से मांग लिया था।
इस तीर्थ का बदरीनाथ नाम कैसे पड़ा-
कहा जाता है कि एक बार मां लक्ष्मी जब भगवान विष्णु से रूठकर मायके चली गईं तब भगवान विष्णु यहां आकर तपस्या करने लगे। जब मां लक्ष्मी की नाराजगी खत्म हुई तो वह भगवान विष्णु को ढूंढते हुए यहां आई। उस समय इस स्थान पर बदरी का वन यानी बेड़ फल का जंगल था। बदरी के वन में बैठकर भगवान विष्णु ने तपस्या की थी इसलिए मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को बदरीनाथ नाम दिया।
दो पर्वतों के बीच बसा है बदरीनाथ
बदरीनाथ धाम दो पर्वतों के बीच बसा है। इन पर्वतों को नर नारायण पर्वत कहा जाता है। कहते हैं कि यहां भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी। नर अपने अगले जन्म में अर्जुन और नारायण श्रीकृष्ण के रूप में पैदा हुए थे।
मंदिर जलने वाले दीपक का खास महत्व
बदरीनाथ के कपाट खुलते हैं उस समय मंदिर में जलने वाले दीपक का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि 6 महीने तक बंद कपाट के अंदर देवता इस दीपक को जलाए रखते हैं।
साभार लाइव हिन्दुस्तान
बाबा पंडित
बदरीनाथ धाम के कपाट खुले
- 27 Apr 2023