प्रदेश में 7 जगह चला भाजपा फार्मूला, दूसरी जगहों पर क्यों हारे, अब होगी समीक्षा
इंदौर। प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम चौंकाने वाले आए हैं। भाजपा ने इस चुनावों में अपनी जीत के लिए कई तरह से प्रयास किए और नया फार्मूला निकाला। इसका परिणाम अब सबके सामने है। भाजपा ने अपना परचम लहरा दिया। 7 जगह पर फार्मूला चल गया, जबकि अन्य नहीं, इसके कारणों की समीक्षा की जाएगी। इंदौर की बात करें तो भाजपा को भार्गव पर भरोसा करना सफल रहा है। इंदौर में राजनीति के मंझे खिलाड़ी और कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला के धन-बल के सामने भाजपा ने नए चेहरे पुष्यमित्र भार्गव को उतारकर खेल पलट दिया।
दरअसल भाजपा की नगर निगम, पालिकाओं, परिषदों में एकतरफा जीत का एक ही फॉर्मूला निकल कर आया है। वो है- चुनाव से पहले विधायकों, नेताओं के रिश्तेदारों, उम्रदराजों को टिकट के लिए न कहना। लेकिन ये फॉर्मूला जबलपुर, छिंदवाड़ा और ग्वालियर में काम नहीं आया।
छिंदवाड़ा-जबलपुर में गैर सियासी चेहरे को उतारना ले डूबा, ग्वालियर में भितरघात भारी
भोपाल- ओबीसी सीट पर पार्टी के पास चेहरा नहीं था। कृष्णा गौर का नाम चला, लेकिन विधायक को नहीं लड़ाने पर पार्टी अडिग रही। पूर्व पार्षद मालती राय संगठन के बूते एकतरफा जीत गईं।
इंदौर- टिकट की दौड़ में सबसे आगे विधायक रमेश मेंदोला का नाम था लेकिन पार्टी ने इंकार कर दिया। युवा लॉयर पुष्यमित्र भार्गव पर भरोसा करना सफल रहा।
जबलपुर- मजबूत दावेदारों को दरकिनार कर संघ से जुड़े डॉ. जितेंद्र जामदार को टिकट दिया। वे सक्रिय राजनीति से दूर थे। जनता ने कोरोना को याद रखकर उन्हें नकार दिया।
ग्वालियर- सुमन शर्मा के टिकट पर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया में बमुश्किल सहमति बन पाई। वे भितरघात का शिकार हो गईं।
उज्जैन- भाजपा ने आरक्षित सीट से मुकेश टटवाल को लड़ाया। मंत्री मोहन यादव और स्थानीय नेताओं के एकजुट होने से सीट जीत सके। विवाद के बाद बेहद कम मार्जिन से जीते हैं।
खंडवा- पुराने भाजपाई परिवार और पूर्व विधायक हुकुम पहलवान की युवा बहू अमृता यादव पर भरोसा किया। ये टिकट परिवारवाद के हिस्से में आया, लेकिन ओबीसी महिला के कारण कोई विकल्प नहीं था।
बुरहानपुर- पू्र्व मेयर माधुरी पटेल को दोबारा टिकट दिया। कांग्रेस की शहनाज के केवल 500 वोट से हारने की वजह ओवैसी की पार्टी के 11 हजार वोट पाना रही।
सतना- संघ से जुड़े योगेश ताम्रकार पर विश्वास जताया। सांसद गणेश सिंह के भाई उमेश सिंह तगड़े दावेदार थे। पार्टी ने परिवार में टिकट नहीं देने की गाइडलाइन का पालन किया। सिंह ने साथ दिया। ताम्रकार एकतरफा जीत गए।
सिंगरौली- सबसे ज्यादा चौंकाने वाला परिणाम। भाजपा ने ओबीसी चंद्रप्रकाश विश्वकर्मा को मौका दिया। त्रिकोणीय मुकाबले में आप का जादू चला। भाजपा दूसरे और कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही।
छिंदवाड़ा- पार्टी ने असिस्टेंट कमिश्नर से इस्तीफा देकर अनंत धुर्वे को चुनाव लड़वाया। गैर राजनीतिक चेहरों को टिकट भारी पड़ गया। यहां 22 साल बाद कांग्रेस का मेयर बन गया।
सागर- संगीता तिवारी को टिकट दिया। सबसे बड़ी चुनौती तीन मंत्रियों के बीच तालमेल बैठाने में पार्टी सफल रही। विधायक शैलेंद्र जैन अपनी बहू निधि के बजाय पार्टी के लिए जुटे।
11 निगमों में नाथ के 5 प्रत्याशी हारे, 3 जीते; वीडी के 2 जीते, जिसने-जिसे टिकट दिलाया, उसका हाल
कमलनाथ के 8 में से 3 ही जीते
बड़े नेताओं ने नगर निगमों में अपने लोगों को महापौर के टिकट दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन बड़ी बात है कि रिजल्ट उस हिसाब से नहीं आए। पूर्व सीएम कमलनाथ ने अपने 8 प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन इनमें 3 ही जीते।
सिंधिया पर हावी रहा संगठन
मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे लगभग चुके हैं। पहले चरण के 11 में से 7 नगर निगमों में बीजेपी का मेयर होगा, जबकि कांग्रेस को जबलपुर, ग्वालियर और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में नगर सरकार बनाने में सफलता मिली है। ग्वालियर में कांग्रेस 57 साल बाद जीती। सबसे बड़ा उलटफेर सिंगरौली में हुआ, जहां आम आदमी पार्टी ने मप्र की सियासत में धमाकेदार एंट्री की है। बीजेपी-कांग्रेस के लिए 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले यह लिटमस टेस्ट है। हालांकि, अभी पिक्चर बाकी है, क्योंकि दूसरे चरण में 20 जुलाई को 5 नगर निगमों के रिजल्ट बाकी है। इस चुनाव रिजल्ट को सियासी तौर पर देखें, तो बीजेपी को नुकसान और कांग्रेस को फायदा हुआ है, लेकिन भोपाल-इंदौर जैसे गढ़ को बचाने में बीजेपी सफल रही है। उज्जैन और बुरहानपुर में बीजेपी बाउंड्री पर आकर जीती है। वोट बैंक के लिहाज से देखें तो ये रिजल्ट बीजेपी के लिए अलार्मिंग है। क्योंकि 11 में से 6 निगमों में ही अध्यक्ष बीजेपी का बनेगा। यानी यहां जीतने वाले पार्षदों की संख्या बहुमत से कम है।
भोपाल में बीजेपी प्रत्याशी मालती राय को जिताने के लिए मंत्री विश्वास सारंग समेत बीजेपी विधायकों ने एकमत होकर गारंटी ली थी। जबलपुर में बीजेपी के डॉ. जितेंद्र जामदार एक मात्र ऐसे महापौर उम्मीदवार हैं, जो गृह वार्ड से हार गए। उनकी उम्मीदवारी को लेकर पार्टी में स्थानीय स्तर पर नाराजगी थी, लेकिन संघ के करीबी होने के कारण खुलकर विरोध नहीं हुआ। यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तीन रोड शो किए। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्?डा ने बूथ कार्यकर्ताओं की बैठक के अलावा युवा सम्मेलन भी किया था। बावजूद इसके बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा।
अंचल पर पड़ेगा असर
राजनीति के जानकार मानते हैं कि ग्वालियर में कांग्रेस की जीत का असर अंचल में पड़ेगा। आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कड़ी मेहनत करना पड़ेगी। प्रदेश में एक मात्र सीट ग्वालियर थी, जहां उम्मीदवार के चयन को लेकर पार्टी के अंदर के झगड़े पब्लिक में आए। उम्मीदवार चयन को लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ स्थानीय नेताओं की लंबी बैठक हुई थी, लेकिन निष्कर्ष नहीं निकल पाया था। क्योंकि सिंधिया का पक्ष कमजोर करने के लिए स्थानीय नेता ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट देने के लिए अड़ गए थे। हालांकि सिंधिया ने पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा की पत्नी शोभा मिश्रा का नाम प्रस्तावित कर नया दांव खेला था।
कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ी
राजनीति के जानकार मानते हैं कि 18 साल बाद पहली बार कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ी, जबकि बीजेपी में उम्मीदवारों को लेकर उठापटक हुई। बीजेपी के कार्यकर्ता डॉ. जितेंद्र जामदार को महापौर उम्मीदवार बनाए जाने से नाराज थे, लेकिन पार्टी ने उनकी मांग को अनसुना कर दिया। कांग्रेस से राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने कहा है कि नगर निगम में ही नहीं, जिला पंचायत और जनपदों में भी कांग्रेस ने बीजेपी को हराया है।
सिंगरौली में जातीय समीकरण से बीजेपी ने गंवाई कुर्सी
बीजेपी के गढ़ सिंगरौली में आम आदमी पार्टी की रानी अग्रवाल ने महापौर की कुर्सी पर कब्जा किया है। वजह बीजेपी के अंतर्कलह और जातीय समीकरण माना जा रहा है। सिंगरौली में सबसे ज्यादा वोटर 37 हजार ब्राह्मण हैं, लेकिन बीजेपी ने चंद्र प्रताप विश्वकर्मा पर दांव लगाया। इससे यह बड़ा वर्ग नाराज हो गया था। हालांकि ब्राह्मणों को मनाने पूर्व मंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने घर-घर दस्तक दी थी। समाज की बैठकों में शामिल हुए। बावजूद इसके ब्राह्मणों का झुकाव आम आदमी पार्टी की तरफ था। बीजेपी की हार में आप उम्मीदवार रानी अग्रवाल का भी अहम रोल रहा। वे बीजेपी से इस्तीफा देकर आप पार्टी में शामिल हुई थी। उन्होंने सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए थे।
इंदौर
भार्गव पर भरोसा करना रहा सफल
- 18 Jul 2022