Highlights

चिंतन और संवाद

भरोसे के लिए महाप्रभुजी वल्लभाचार्य ऐसा कहते हैं कि भरोसा दृढ़ होना चाहिए.....

  • 20 May 2023

 तुलसी कहते हैं कि भरोसा ऐसा होना चाहिए कि जिसमें डर ना खरोसो .... जिसमें भय का ज़रा भी स्थान ना हो...
त्रिकम साहब कहते हैं भरोसो भारी....
भरत जी को पूछो तो वो भरोसे की क्या व्याख्या करेंगे ?... वो तो सीधी बात करेंगे ...मोहे रघुवीर भरोस.... मुझे मेरे बाप पर भरोसा है... मुझे और कुछ खबर नहीं.... वो मुझे अपना समझकर कभी मेरा त्याग  नहीं करेंगे .....
भरोसा 2 तरह से किया जा सकता है ...
1...कुछ भी सोचे बिना किसी के चरणों में समर्पित हो जाना ....
2...पूरी तरह जान लो... फिर समर्पित होना...
 सब जान लेने की कोशिश करने में तुम किससे सब जान रहे हो उस पर आधार है ....जिसके बारे में तुम जानना चाहते हो उससे वो द्वेष करता है कि उसकी तरफ प्रीति है ?... वो उससे ईर्ष्या करता है या स्पर्धा करता है ?...वो जानना जरूरी है ...वरना वो तुम्हारे दिमाग में कचरा डाल देगा....
 मुझे कोई पूछे कि भजन यानि क्या ?...तो तलगाजरडा   एक ही वाक्य कहता है कि 'भरोसा ही भजन है'.... जिसको भजन करना हो उसको ज्यादा जानने की  कोशिश नहीं करनी चाहिए ....
बार-बार मुझे पूछा जा रहा है कि बापू ....इस कथा में पात्र के विषय में ....भरोसा.... विश्वास के विषय में.... कथा पूरी हो उसके पहले इस विश्वास को अर्जित करने के लिए हमें क्या करना चाहिए ?...अथवा तो ऐसी कोई चौपाई बताओ कि हमारा विश्वास बना रहे .....
बहुत कठिन है..... मैं भक्ति रसामृत का दर्शन कर रहा था.... उसमें रूप गोस्वामी जी ने दो संदर्भ में कुछ बातें कही है ....उसका अवलोकन गुरु कृपा से मैंने ये किया है.....
 मेरे लिए तो मैं किसी भी अवलंबन का स्वीकार नहीं करता ....भरोसा मतलब भरोसा.... किसी भी साधन की मुझे जरूरत नहीं ...अंधा तो अंधा ...लो ना ...चलो.... आंख बंद करके भरोसा .....
भक्ति रसामृत सिंधु में भरोसे के जो अलंबन बताए हैं वो  तो जिसको ज्यादा जानकार भरोसा करना है उसके लिए है....
1...गुरुपादाश्रय ... गुरु के पद का ...अथवा पादुका का आश्रय करना ....
2...कृष्णदीक्षादिशिक्षणं  ....भगवान कृष्ण के नाम का.... मंत्र का ....अथवा तो भगवान कृष्ण के संबंध में जो कथाएं हैं ...उसका शिक्षण प्राप्त करना ...जैसे हम गीता का स्वाध्याय... भागवत का पारायण करते हैं... कृष्ण के अगल-बगल रही वस्तु जिससे हमें शिक्षा प्राप्त हो ....
3...विश्वममैगुह्येत....जिसके पास गए हैं उसके प्रति हमारा गुप्त भाव रहे....
4... समग्र रूप से साधुपना जिसमें हो उसकी सेवा करनी ....पूजा नहीं ....
5...सतधर्मपृच्छ: .... अपने स्वधर्म के लिए किसी परम के पास जिज्ञासा करनी....
6... भोगादि त्याग: कृष्णस्यहेतवे ....केवल कृष्ण के लिए तमाम त्यागों को छोड़ देना.... भोगो तो बस हरि को भोगो ....
7...निवासौ द्वारिकादौच गंगादरपि सन्निधौ ...भरोसा बढ़ाना हो तो दो जगह बताई है रुप गोस्वामी जी ने... द्वारिका में निवास करो ...अथवा तो गंगा के किनारे निवास करो ...जितना समय मिले....
8... व्यवहारेषु सर्वेषु यावदार्थनु .....संसार में हम हों तब व्यवहार में यथा योग्य वर्तन करें.... सबको निकालते जाएं ऐसा नहीं ....सबके साथ एक डिस्टेंस रखकर वर्तन करें ....
9...हरिवासर सम्मानौ ... एकादशी अथवा जन्माष्टमी उसको हरि वासर कहते हैं चैतन्य परंपरा में.... इन दिनों में व्रत करो ...उपवास या जो हो ....
10...उंब्रतरू विशाल ...उंब्रा का वृक्ष अथवा तो पीपल का वृक्ष समय मिले तो उसके नीचे बैठें .....
 रूप गोस्वामी जी कहते हैं आपके भरोसे को प्रारंभिक रूप में.... फिर तुम्हें धीरे-धीरे आगे बढ़ना हो तो उसके ये 10 अंग हैं....
मानस अक्षय तृतीया
(गुजराती से हिंदी अनुवाद )
जय सियाराम