नई दिल्ली। दक्षिण-पश्चिमी मानसून तेजी से देश के बाकी हिस्सों में तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार आजकल में यह बिहार, झारखंड, गुजरात, मप्र व छत्तीसगढ़ के बचे हिस्सों को तर कर सकता है।
आईएमडी के अनुसार मानसून के अब पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और उत्तर-पश्चिम बंगाल की खाड़ी के कुछ हिस्सों, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के कुछ हिस्सों, पश्चिम बंगाल के गांगेय इलाके, झारखंड और बिहार के कुछ हिस्सों में आगे बढ़ने की परिस्थितियां बन गई हैं। सोमवार को हरियाणा, चंडीगढ़ और पश्चिमी राजस्थान में कुछ जगहों पर भारी बारिश हो सकती है। वहीं, पश्चिम मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के विदर्भ में कुछ स्थानों पर भारी वर्षा की संभावना है।
दिल्ली में पारा लुढ़का, हल्की वर्षा के आसार
राजधानी में पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता की वजह से लोगों को गर्मी से मिली राहत जारी है। तेज बारिश नहीं हो रही है, लेकिन बादलों के छाए रहने की वजह से तापमान लुढ़कने से नए रिकॉर्ड बन रहे हैं। इस कड़ी में बीते 24 घंटे में अधिकतम तापमान 30.7 डिग्री सेल्सियस रहा, जो कि बीते नौ सालों में सबसे कम दर्ज किया गया है। इससे पहले 2013 में अधिकतम पारा 32 डिग्री सेल्सियस पहुंचा था।
मौसम विभाग ने सोमवार के लिए यलो अलर्ट जारी करते हुए राहत के संकेत दिए हैं। विभाग का पूर्वानुमान है 30 से 40 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से हवाएं चलने के साथ मध्यम स्तर की बारिश दर्ज की जा सकती है। अधिकतम तापमान 32 व न्यूनतम तापमान 24 डिग्री सेल्सियस पहुंचने की संभावना है। मंगलवार को भी हल्की बारिश की संभावना है। हालांकि, 21 जून से लगातार पारा चढ़ने के भी आसार हैं। मौसम विशेषज्ञों के मुताबिक, दिल्ली में अभी मानसून पहुंचने को लेकर कोई निश्चित तिथि नहीं है, हालांकि 27 या 28 जून तक मानसून पहुंच सकता है।
पश्चिम विक्षोभ व चक्रवाती हवाओं का असर
निजी मौसम एजेंसी स्काईमेट के अनुसार जम्मू-कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र पर पश्चिमी विक्षोभ बना हुआ है। वहीं, उत्तरी राजस्थान, पंजाब और हरियाणा पर एक चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र बना हुआ है। एक पूर्व-पश्चिम ट्रफ रेखा राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तर पश्चिम बंगाल और असम तक फैली हुई है। एक चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र तमिलनाडु तट से दूर दक्षिण-पश्चिम बंगाल की खाड़ी के ऊपर भी बना हुआ है। एक ट्रफ रेखा उत्तर-दक्षिण ट्रफ रेखा कोंकण, गोवा और तटीय कर्नाटक से दूर अरब सागर में फैली हुई है। इन सब का देश के मौसम पर असर पड़ रहा है। इनके प्रभाव से मानसून के आगे बढ़ने का माहौल अनुकूल है।