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म्‍यांमार में तख्‍तापलट :  सेना ने जमकर मचाया तांडव, खूनी हिंसा में अब तक 320 लोगों की मौत

  • 26 Mar 2021

यंगून। म्‍यांमार में एक फरवरी को तख्‍तापलट के बाद सेना ने लोकतंत्र समर्थकों के खिलाफ जमकर तांडव मचाया है और इस खूनी हिंसा में 300 से ज्‍यादा लोगों की मौत हो गई है। स्‍थानीय मीडिया और मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि करीब 90 फीसदी लोगों को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया। सैन्‍य प्रवक्‍ता ने खुद भी स्‍वीकार किया है कि मंगलवार तक 164 प्रदर्शनकारी और नौ सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं।
म्‍यांमार में इतने लोगों की हत्‍या से अमेरिका समेत पश्चिमी देश भड़क गए हैं। म्‍यांमार के पड़ोसी देशों ने भी उसकी जमकर आलोचना की है। गैर लाभकारी समूह AAPP के मुताबिक मानवता के खिलाफ अपराध प्रतिदिन किए जा रहे हैं। उसने बताया कि करीब 3000 लोग अब तक अरेस्‍ट किए गए हैं। समूह ने बताया कि 25 मार्च तक म्‍यांमार में 320 लोग मारे गए हैं।
प्रदर्शनकारियों का शांतिपूर्ण बंद का आह्वान
इससे पहले गुरुवार को बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे और कुछ स्थानों पर सुरक्षा बलों ने उन्हें तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग किया। हालांकि, बुधवार को प्रदर्शनकारियों ने नयी रणनीति अपनाते हुए शांतिपूर्ण बंद का आह्वान किया था, जिसके चलते लोग अपने घरों के अंदर ही रहे थे और व्यापारिक प्रतिष्ठान दिन भर बंद रहे थे। स्थानीय मीडिया ने आज दक्षिण पूर्वी कारेन प्रांत की राजधानी हपान में, पूर्वी प्रांत शान की राजधानी ताउनग्गयी और मोन प्रांत की राजधानी मावलामयीन में प्रदर्शनकारियों पर हिंसक कार्रवाई की खबरें दी है।
म्‍यांमार की सेना के कमांडर इन चीफ जनरल मिन ने कुछ दिनों पहले ही संकेत दिया था कि अगर चुनाव में धोखाधड़ी से जुड़ी उनकी मांगों को नहीं माना गया तो वह सैन्‍य तख्‍तापलट कर देंगे। सेना ने आरोप लगाया था कि पिछले साल नवंबर में हुए चुनाव में व्‍यापक पैमाने पर धोखाधड़ी हुई जिसमें आंग सांग सू की को भारी बहुमत मिला था। जनरल मिन ने सेना के अखबार मयावाडी में छपे अपने बयान में आंग सांग सू की सरकार को कड़ी चेतावनी दी थी। उन्‍होंने कहा था कि वर्ष 2008 का संविधान सभी कानूनों के लिए 'मदर लॉ' है और इसका सम्‍मान किया जाना चाहिए। जनरल मिन ने कहा, 'कुछ परिस्थितियों में यह आवश्‍यक हो सकता है कि इस संविधान को रद्द कर दिया जाए।' सेना का दावा है कि चुनाव में देशभर में चुनाव धोखाधड़ी के 86 लाख मामले सामने आए हैं। यह चुनाव वर्ष 2011 में करीब 5 दशक तक चले सैन्‍य शासन के बाद लोकतंत्र के बहाल होने पर दूसरी बार हुए थे। चुनाव विवाद के बीच सेना के समर्थन में देश के कई बड़े शहरों में प्रदर्शन भी हुए थे।
म्‍यांमार की सेना के कमांडर इन चीफ जनरल मिन पर सेना के जरिए रोहिंग्‍या मुस्लिमों के कत्‍लेआम के आरोप लगते रहे हैं। म्‍यांमार की सेना ने अगस्‍त 2017 में रखाइन प्रांत में खूनी अभियान चलाया था और इसमें कई रोहिंग्‍या मुस्लिम मारे गए थे। यही नहीं 5 लाख रोहिंग्‍या मुस्लिमों को देश छोड़कर पड़ोसी बांग्‍लादेश और अन्‍य देशों में भागना पड़ा था। इस दौरान म्‍यांमार की सेना पर रोहिंग्‍या मुस्लिमों को गोली मारने और धारदार हथियार से उनकी हत्‍या करने का आरोप लगा था। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि म्‍यांमार की सेना ने रोहिंग्‍या मुस्लिमों को उनके घरों में बंद करके उसे आग लगा दी थी। यही नहीं जनरल मिन के नेतृत्‍व वाली म्‍यांमार की सेना पर रोहिंग्‍या मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के साथ गैंगरेप करने और यौन हिंसा का आरोप लगा था और इसके कई सबूत भी दिए गए थे। रोहिंग्‍या मुस्लिमों पर अत्‍याचार के दौरान नोबेल पुरस्‍कार विजेता आंग सांग सू की ने चुप्‍पी साधे रखी जिससे उनकी दुनियाभर में आलोचना हुई थी।
64 साल के जनरल मिन के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत कम बोलते हैं और पर्दे के पीछे से रहकर काम करना पसंद करते हैं। उन्‍होंने यंगून यूनिवर्सिटी से 1972 से 1974 के बीच कानून की पढ़ाई की है। जनरल मिन ने वर्ष 2011 से सेना को संभाला और उसी समय म्‍यांमार लोकतंत्र की ओर आगे बढ़ा। यंगून में मौजूद राजनयिकों का कहना है कि आंग सांग सू की के पहले कार्यकाल के अंतिम दिनों के दौरान वर्ष 2016 में जनरल मिन ने खुद को एक सैनिक से एक राजनेता और सार्वजनिक व्‍यक्ति के रूप में बदल लिया। पर्यवेक्षकों का मानना है कि फेसबुक के जरिए अपनी गतिविधियों का प्रचार प्रसार करना इसी प्रयास का हिस्‍सा है। फेसबुक पर उनके प्रोफाइल को बंद किए जाने से पहले वर्ष 2017 तक लाखों लोगों ने उनके प्रोफाइल को फॉलो किया था। रोहिंग्‍या मुस्लिमों पर अत्‍याचार के बाद उनके प्रोफाइल को फेसबुक ने बंद कर दिया था। उन्‍होंने संसद की 25 फीसदी सीटों पर सेना के कब्‍जे और आंग सांग सू की के राष्‍ट्रपति बनने से रोक वाले कानून पर कोई समझौता नहीं किया। आंग सांग सू की के पति विदेशी नागरिक हैं और इसी वजह से वह राष्‍ट्रपति नहीं बन पाईं।
म्‍यांमार में सैन्‍य तख्‍तापलट के बाद अब सबकी नजरें जनरल मिन पर टिक गई हैं। सू ची की पार्टी ने संसद के निचले और ऊपरी सदन की कुल 476 सीटों में से 396 पर जीत दर्ज की थी जो बहुमत के आंकड़े 322 से कहीं अधिक था। लेकिन वर्ष 2008 में सेना द्वारा तैयार किए गए संविधान के तहत कुल सीटों में 25 प्रतिशत सीटें सेना को दी गयी हैं जो संवैधानिक बदलावों को रोकने के लिए काफी है। कई अहम मंत्री पदों को भी सैन्य नियुक्तियों के लिए सुरक्षित रखा गया है। सू ची देश की सबसे अधिक प्रभावशाली नेता हैं और देश में सैन्य शासन के खिलाफ दशकों तक चले अहिंसक संघर्ष के बाद वह देश की नेता बनीं। म्यामां में सेना को टेटमदॉ के नाम से जाना जाता है। सेना ने चुनाव में धोखाधड़ी का आरोप लगाया, हालांकि वह इसके सबूत देने में नाकाम रही। देश के स्टेट यूनियन इलेक्शन कमीशन ने पिछले सप्ताह सेना के आरोपों को खारिज कर दिया था।
सोशल मीडिया मंचों पर इससे जुड़ी सूचना साझा की गई है। हालांकि, यह स्पष्ट रूप से पता नहीं चल पाया है कि सैनिकों ने प्रदर्शनकारियों पर रबर की गोलियों के अलावा क्या कारतूसों का भी इस्तेमाल किया है। ब्रॉडकास्ट और ऑनलाइन समाचार सेवा डेमोक्रेटिक वॉइस ऑफ बर्मा (डीवीबी) के मुताबिक हपान में दो व्यक्ति गोली लगने से गंभीर रूप से घायल हो गये। वहीं, देश के दूसरे सबसे बड़े शहर मंडाले सहित अन्य स्थानों पर आज सुबह प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे।
credit- navbharat times